खट्टा-मीठा
खट्टा-मीठा
आज सुबह का अनुभव कुछ खट्टा कुछ मीठा रहा।
खट्टा ऐसे कि जब मैंने घर में दो राॅड लगवाने के लिए अपने अपार्टमेंट के मैनेजर के माध्यम से एक कारपेंटर को बुलवाया तो वह कारपेंटर पहले तो पूरा एक घंटा लेट आया और फिर कहने लगा दो राॅड लगाने के में ₹500 लूंगा मंजूर हो तो बोलो । मेरे पास कील और लकड़ी का गुटका भी नहीं है यह दोनों आपको ही मुझे उपलब्ध कराने होंगे। तब मैंने कहा अभी यह दोनों मेरे पास नहीं है। जब ले आऊंगी आपको फोन करके बुला लूंगी।
और मीठा ऐसे की जब उसके जाने के बाद मैंने हार्डवेयर की दुकान पर फोन कर पूछा कि, क्या आप कोई कारपेंटर भिजवा सकते हैं तो उस दुकानदार ने मेरी फोन पर एक कारपेंटर से बात कराई। उसने कहा एक राॅड का 120 ₹ और दो राॅड लगाने का मैं ₹250 लेता हूं। अगर आपको मंजूर है तो अभी आ सकता हूं।
मैंने तुरंत हां कर दी। 5 मिनट के अंदर ही वह आ गया और 10 मिनट में पूरी सफाई से अपना काम पूरा कर ₹250 लेकर चला गया।
इस पूरे घटनाक्रम ने मुझे चिंतन के लिए विवश कर दिया और जो निष्कर्ष निकल कर सामने आया वह यही कि यह व्यक्तित्व का दोष है। कुछ लोग दूसरों की मजबूरी का फायदा उठाकर खुश होते हैं। तो कोई अपना काम इमानदारी से करके। कोई दूर की सोचता है तो कोई छोटे-छोटे अवांछित लाभों में फंसा रहता है। हमारी संस्कृति हमें बार-बार समझाती है कि "अच्छे कर्मों का फल अच्छा व बुरे का बुरा" फिर भी कई लोग चिकने घड़े की तरह ही बर्ताव करते हैं।
