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Hrishita Sharma

Abstract drama romance

4.7  

Hrishita Sharma

Abstract drama romance

'खत'

'खत'

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"आज मैं उसे सब बताकर रहूंगा" - मैं कॉलेज के गार्डन में लगे उस पेड़ के नीचे खड़ा अपनी लिखी कुछ लाइनें याद करते हुए खुद को ही हिम्मत दे रहा था, कि पीछे से सिड सिड…. चिल्लाती हुई वो आ रही थी। 

वो ! श्रेया मेरी सबसे अच्छी दोस्त और अब तो वो मुझे दोस्ती से कुछ ज्यादा अच्छी लगने लगी थी, प्यार करने लगा था मैं उससे लेकिन कभी हिम्मत नहीं हुई उसे ये बताने की न जाने उसकी न का डर ज्यादा था कि हमारी दोस्ती टूटने का।

"कब से बुला रही हूं कहां खोया है" - उसने गुस्से से कहा और मैं मुस्कुरा दिया। 

मैंने हड़बड़ाहट में चिट्ठी अपने जेब में रख ली,आज भी मैं नहीं कह पाया उससे और न वो समझ सकी‌।

यूं तो वो मेरी छोटी से छोटी बातें बिन कहे समझ जाती थी पर ये बात मैंने घूमा-फिराकर बहुत बार कहनी चाही लेकिन वो नहीं समझी या फिर उसने कभी समझना ही नहीं चाहा।

हम दो दोस्तों के अलावा अब हमारा एक दोस्त और भी था, कुनाल। कुनाल से हमारी दोस्ती हुए अभी कुछ महीने ही हुए थे और इन कुछ महीनों में श्रेया और उसकी बॉन्डिंग देखकर मुझे चिढ़ होने लगी थी। 

हालांकि मेरी और कुनाल की दोस्ती भी काफी अच्छी थी पर मुझे श्रेया का कुनाल की ज्यादा फिक्र करना अच्छा नहीं लगता था।

कुनाल इस शहर में नया था और उसके पापा और श्रेया के पापा एक-दूसरे के दोस्त भी थे इस वजह से अब श्रेया का ज्यादा समय कुनाल के साथ बीतता था

हम दोनों में अब बातें कम होती थीं और उन बातों में भी वो पहले वाली बात नहीं होती थी। कुनाल की तरफ श्रेया का झुकाव मुझे बहुत तकलीफ़ दे रहा था, लेकिन मैं कर भी क्या सकता था वो हाई क्लास सोसायटी के रहने वाले और मैं एक मिडिल क्लास लड़का।

उनकी तरह घूमना-फिरना, पार्टी करना ये सब मेरे लिए नहीं था मैंने तो इस कॉलेज में एडमिशन भी इसीलिए लिया था क्यूंकि मैं एक अच्छी नौकरी, अच्छा भविष्य चाहता था। श्रेया मुझे हमेशा अपने साथ चलने को कहती पर मैं ठहर जाता।

आखिर कॉलेज खत्म होने को था और कैंपस सिलेक्शन में आई कम्पनियों में से ही एक अच्छी कंपनी में मेरा प्लेसमेंट हो गया था। 

इस खुशी को श्रेया के साथ बांटने के लिए मैं बेताब था, मैंने तय कर लिया था कि आज की फेयरवेल पार्टी में मैं अपनी जॉब और अपने प्यार दोनों के बारे में उसे बता दूंगा।

मैं उस पल कल्पना ही कर रहा था कि कुनाल का फोन आ गया, मिलने बुलाया था।

"हाय सिद्धार्थ, अच्छा हुआ तुम आ गये"- मुझे देखकर कुनाल आज कुछ ज्यादा खुश लग रहा था।

"क्या हुआ"- मैंने कहा। 

"वो यार वो मुझे प्यार हो गया है" उसके इतना कहते ही मेरी सांसें तेज़ हो गई थीं, शाय़द इसलिए क्यूंकि मुझे आगे की बात पता थी।

कुनाल आज रात की पार्टी में श्रेया को प्रपोज करने वाला था और उसे भी उसी हां का इंतजार था जो मैं कर रहा था सालों से।

कुनाल की बातें सुनकर मुझे बेहद गुस्सा आ रहा था लेकिन अपनी दोस्त के लिए मैं खुश था, आखिर कुनाल अच्छे खानदान से ताल्लुक रखता था और एक अच्छा इंसान भी था।

 

उस रोज़ मेरा सारा दिन बेचैनी से बीता और मैंने कुनाल को हर नजरिए से अपने आप से बेहतर मानकर उनकी जिंदगी से दूर जाना तय किया।

श्रेया और कुनाल के अनगिनत फोन आए थे उस दिन मुझे लेकिन मेरी भावनाओं से हार जाने से बेहतर था कि मैं उन लोगों को दिल में बसाकर कहीं दूर चला जाऊं।

उस रोज़ के बाद न मैं श्रेया से मिला न ही कुनाल से अपने दोस्तों के साथ ही मैंने दिल्ली शहर को भी अलविदा कह दिया और उसी रात नौकरी के लिए बैंगलोर चला गया।

आज उस बात को पांच साल बीत चुके हैं लेकिन लगता है जैसे कल की ही बात हो। 

कभी-कभार सोचा भी की एक दफा उनसे बात कर लूं लेकिन हिम्मत नहीं हुई। श्रेया की और प्यार की जगह मेरी जिंदगी में अब भी खाली थी।

आज इतने सालों बाद मैं फिर उसी शहर की ओर वापस जा रहा था, शहर बेहद खूबसूरत हो चला था। शहर के शोर-शराबे के बीच मन में बसी यादें भी शोर मचाने लगी थी। तभी न जाने मुझे क्या सूझा मैंने ड्राइवर से टैक्सी कॉलेज की तरफ घूमाने को कहा।

कॉलेज मेरा कॉलेज, मन इतना खुश था मानो उन्हीं पलों को दोहरा रहा हो। मैं एक बार फिर यादों को जी रहा था।

तभी एक आवाज़ ने वर्तमान में लाकर खड़ा कर दिया, कोई बता रहा था- "मिस श्रेया लाइब्रेरी में मिलेंगी"।

"श्रेया" इस नाम को सुनकर आज भी धड़कने तेज़ हो जाया करती हैं। फिर मैंने दिल को समझाया कि ये वो नहीं हो सकती पर दिल कहां मानने वाला था ले गया मुझे लाइब्रेरी की ओर।

अंदर जाकर देखा तो लगा जैसे वक्त पीछे चला गया वहीं आंखें, वही अदा, वही हंसी। लेकिन 'मिस' ?

मुझे देखकर एक पल के लिए वो भी हैरान थी। फिर खुद को संभालते हुए बोली- "हाय सिड, आई मीन सिद्धार्थ"!

मैं चुप था आंखों में ढेरों सवाल लिए। 

कुछ ही देर में हम हमारे पुराने अड्डे पर थे, उसी पेड़ के नीचे।

कुछ देर चुप रहने के बाद मैंने अपनी सवालों की झड़ी लगानी चाही पर मेरे कुछ कहने से पहले ही उसने एक कागज मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा "तुम्हारे सब सवालों का मेरे पास सिर्फ एक ही जवाब है ये।

"ये, ये तो वही लैटर था जो मैंने तुम्हें अपने दिल की बात बताने के लिए लिखा था, पर ये तुम्हारे पास कैसे ?" - मैंने कहा‌ और फिर उसने लैटर पढ़ना शुरू किया

"दोस्ती और प्यार दोनों का मतलब अब सिर्फ तुम ही हो मेरे लिए, यूं तो हमने बहुत बार एक-दूसरे का साथ उम्रभर निभाने का वादा किया है,‌ लेकिन मैं तो तुम्हारे साथ साथ जिंदगी जीना चाहता हूं, तुमसे एक ऐसा रिश्ता जोड़ना चाहता हूं जो जन्मों तक साथ रहे। हम एक-दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त हैं और हमेशा रहेंगे चाहें तुम्हारा जवाब कुछ भी हो।"

"इसका मतलब तुम सब जानती थी ? फिर कुछ कहा क्यूं नहीं ?"

"कैसे कहती, कैसे देती इस खत का वो जवाब जो तुम सुनना चाहते थे, क्यूंकि तुम तो मुझसे बिना मिले ही चले गए थे ?" - श्रेया ने नम आंखों से कहा और मैंने उसका हाथ कसकर थाम लिया फिर कभी न छोड़ने के लिए आज मुझे मेरी दोस्त के साथ ही मेरा वो प्यार भी वापस मिल गया था।


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