दीवार
दीवार


गांव के सरपंच जी को दिल का दौरा पड़ा तो भारती ने ऊंच-नीच की दीवार पार कर उनकी जान बचा ली और निकल पड़ी एक पुराने सफर पर और खो गयी उन तमाम कोशिशों के बीच उलझी अपनी जिंदगी को देखने में जो उसने जी थी इन बीते सालों में।
संघर्ष तो हर इंसान के जीवन में होता है लेकिन आदीवासी समाज की लड़की का डॉक्टर बनने का सफर कुछ अधिक संघर्षपूर्ण था।
दीवार सुरक्षा की होती है तो सुकून देती है लेकिन जो दीवार व्यक्ति के ख्वाबों में बाधक बनती है वो एक संघर्षरत जीवन देती है
जाति का भेदभाव न जाने क्यूं लोगों की सोच को दिन-ब-दिन छोटा करता जा रहा था। गांव के स्कूल में उसके समाज के लोगों को पढ़ने की मनाही थी और भारती के मन में था सपना डॉक्टर बनने का सपना।
कुछ वक्त पहले तक तो पढ़ने की एहमियत न उसे पता थी न उसकी बहनों को यहां तक की उनकी बिरादरी में भी कोई न तो अक्षरज्ञान जानता था और न ही अपने हक की लड़ाई लड़ने का जज्बा रखता था।
एक रोज़ जब भारती की दादी को दिल का दौरा पड़ा तो सब दकियानूसी विचार एक व्यक्ति की जिंदगी पर भारी पड़ गये।
एक ही डॉक्टर थे गांव में और उन्हें मजबूरन अपने फर्ज को भूल एक उच्च जाति के व्यक्ति के इलाज के लिए जबरदस्ती दूसरे गांव जाना पड़ा और सात साल की भारती ने देखा वो मंजर जो उसके जीवन पर उसके मन पर वो अमिट छाप छोड़ गया जिसने उसे डॉक्टर बनने का लक्ष्य दिया। लेकिन ये सब इतना आसान कहां होने वाला था गांव में छोटी जाति वालों के लिए केवल दसवीं तक पड़ने की ही व्यवस्था थी और उससे आगे के स्कूल में उच्च जाति वाले बच्चे ही जाते थे।
भारती ने आठवीं तक खूब मेहनत से पढ़ाई की और अच्छे नंबरों से परीक्षा उत्तीर्ण कि लेकिन आगे कि पढ़ाई के लिए भारती के सपनों पर पहली बेड़ियां तो उच्च जाति वालों ने यह कहकर डाल दी की छोटी जाति वाले स्कूल नहीं जा सकते और दूसरी बेड़ियां उसकी अपनी जाति वालों ने यह कहकर डाल दी की लड़की जाति को क्या और क्यूं पढ़ाना।
लक्ष्य के बारे में सोचना और उस तक पहुँचने के लिए प्रयास करना बेहद मुश्किल होता है और हल सिर्फ एक होता है व्यक्ति का दृढ़ निश्चय जो उसे उस मुकाम तक पहुंचा देता है जहाँ वो पहुंचना चाहता है
भारती की पढाई की ललक जब उसके स्कूल में पढ़ाने आये शिक्षक मृत्युंजय सर ने देखी तो वह वो भारती रुपी अर्जुन के वो गुरु द्रोणाचार्य बने जिन्होंने उसे मछली की आँख वाले लक्ष्य यानी की डॉक्टर बनने के लक्ष्य तक पहुँचने की तरकीब भी बताई और उसका हाथ थामकर उसे वहां पहुँचाया भी।
दसवीं के बाद भारती अपने भाई की मदद से शहर चली गयी और एक अच्छे कॉलेज में दाखिला ले लिया
पढाई में अच्छी होने की वजह से उसे स्कालरशिप मिल गयी और कड़ी मेहनत और सच्ची लगन से उसका सपना पूरा हो गया।
अपने गाँव की वो पहली डॉक्टर बनी तो, लेकिन लोगों के मन से जातिभेद मिटाने में कामयाब नहीं हो सकी गांव के कुछ लोग ही थे जो उसके समर्थन में थे बाक़ी सब तो विपक्ष में ऐसे खड़े थे जैसे वह उनका भला न सोचकर कुछ ग़लत कर रही थी।
असंख्य प्रयासों के बाद भी जब उसे अस्पताल खोलने नहीं दिया गया तो उसने अपने घर को ही दवाखाना बना लिया फिर भी कुछ लोगों को उसका परिश्रम नहीं दिखा और उच्च जाति के लोगों ने उससे इलाज करवाने से इंकार कर दिया।
यादों का सफर जारी था कि एक आवाज़ उसे फिर वर्तमान में ले आयी। सरपंच जी आज एक छोटी जाति की लड़की के सिर पर बड़े ही प्यार से हाथ फेरकर आशिर्वाद दे रहे थे
और कहीं न कहीं भारती को लग रहा था कि सालों पुरानी ऊंच-नीच की दीवार आज टूट रही थी।
कहते हैं न कि एक-एक व्यक्ति से समाज बनता है वह कथन सत्य साबित होने लगा और धीरे-धीरे सबको खुद अपनी गलती का एहसास हो गया भारती की जीत गाँववालों के लिए एक नयी सोच और नयी पीढ़ी के लिए एक नयी रोशनी लेकर आई अब जाति का भेद भूल सब एक जुट होकर भारती की इस उड़ान को और भी ऊँची करने में मदद करने लगे और शुरुआत हुयी एक नए समाज की एक ऐसा समाज जो जात का ना होकर इंसानियत का हुआ।
गांव के सरपंच जी को दिल का दौरा पड़ा तो भारती ने ऊंच-नीच की दीवार पार कर उनकी जान बचा ली और निकल पड़ी एक पुराने सफर पर और खो गयी उन तमाम कोशिशों के बीच उलझी अपनी जिंदगी को देखने में जो उसने जी थी इन बीते सालों में।
संघर्ष तो हर इंसान के जीवन में होता है लेकिन आदीवासी समाज की लड़की का डॉक्टर बनने का सफर कुछ अधिक संघर्षपूर्ण था।
दीवार सुरक्षा की होती है तो सुकून देती है लेकिन जो दीवार व्यक्ति के ख्वाबों में बाधक बनती है वो एक संघर्षरत जीवन देती है
जाति का भेदभाव न जाने क्यूं लोगों की सोच को दिन-ब-दिन छोटा करता जा रहा था। गांव के स्कूल में उसके समाज के लोगों को पढ़ने की मनाही थी और भारती के मन में था सपना डॉक्टर बनने का सपना।
कुछ वक्त पहले तक तो पढ़ने की एहमियत न उसे पता थी न उसकी बहनों को यहां तक की उनकी बिरादरी में भी कोई न तो अक्षरज्ञान जानता था और न ही अपने हक की लड़ाई लड़ने का जज्बा रखता था।
एक रोज़ जब भारती की दादी को दिल का दौरा पड़ा तो सब दकियानूसी विचार एक व्यक्ति की जिंदगी पर भारी पड़ गये।
एक ही डॉक्टर थे गांव में और उन्हें मजबूरन अपने फर्ज को भूल एक उच्च जाति के व्यक्ति के इलाज के लिए जबरदस्ती दूसरे गांव जाना पड़ा और सात साल की भारती ने देखा वो मंजर जो उसके जीवन पर उसके मन पर वो अमिट छाप छोड़ गया जिसने उसे डॉक्टर बनने का लक्ष्य दिया। लेकिन ये सब इतना आसान कहां होने वाला था गांव में छोटी जाति वालों के लिए केवल दसवीं तक पड़ने की ही व्यवस्था थी और उससे आगे के स्कूल में उच्च जाति वाले बच्चे ही जाते थे।
भारती ने आठवीं तक खूब मेहनत से पढ़ाई की और अच्छे नंबरों से परीक्षा उत्तीर्ण कि लेकिन आगे कि पढ़ाई के लिए भारती के सपनों पर पहली बेड़ियां तो उच्च जाति वालों ने यह कहकर डाल दी की छोटी जाति वाले स्कूल नहीं जा सकते और दूसरी बेड़ियां उसकी अपनी जाति वालों ने यह कहकर डाल दी की लड़की जाति को क्या और क्यूं पढ़ाना।
लक्ष्य के बारे में सोचना और उस तक पहुँचने के लिए प्रयास करना बेहद मुश्किल होता है और हल सिर्फ एक होता है व्यक्ति का दृढ़ निश्चय जो उसे उस मुकाम तक पहुंचा देता है जहाँ वो पहुंचना चाहता है
भारती की पढाई की ललक जब उसके स्कूल में पढ़ाने आये शिक्षक मृत्युंजय सर ने देखी तो वह वो भारती रुपी अर्जुन के वो गुरु द्रोणाचार्य बने जिन्होंने उसे मछली की आँख वाले लक्ष्य यानी की डॉक्टर बनने के लक्ष्य तक पहुँचने की तरकीब भी बताई और उसका हाथ थामकर उसे वहां पहुँचाया भी।
दसवीं के बाद भारती अपने भाई की मदद से शहर चली गयी और एक अच्छे कॉलेज में दाखिला ले लिया
पढाई में अच्छी होने की वजह से उसे स्कालरशिप मिल गयी और कड़ी मेहनत और सच्ची लगन से उसका सपना पूरा हो गया।
अपने गाँव की वो पहली डॉक्टर बनी तो, लेकिन लोगों के मन से जातिभेद मिटाने में कामयाब नहीं हो सकी गांव के कुछ लोग ही थे जो उसके समर्थन में थे बाक़ी सब तो विपक्ष में ऐसे खड़े थे जैसे वह उनका भला न सोचकर कुछ ग़लत कर रही थी।
असंख्य प्रयासों के बाद भी जब उसे अस्पताल खोलने नहीं दिया गया तो उसने अपने घर को ही दवाखाना बना लिया फिर भी कुछ लोगों को उसका परिश्रम नहीं दिखा और उच्च जाति के लोगों ने उससे इलाज करवाने से इंकार कर दिया।
यादों का सफर जारी था कि एक आवाज़ उसे फिर वर्तमान में ले आयी। सरपंच जी आज एक छोटी जाति की लड़की के सिर पर बड़े ही प्यार से हाथ फेरकर आशिर्वाद दे रहे थे
और कहीं न कहीं भारती को लग रहा था कि सालों पुरानी ऊंच-नीच की दीवार आज टूट रही थी।
कहते हैं न कि एक-एक व्यक्ति से समाज बनता है वह कथन सत्य साबित होने लगा और धीरे-धीरे सबको खुद अपनी गलती का एहसास हो गया भारती की जीत गाँववालों के लिए एक नयी सोच और नयी पीढ़ी के लिए एक नयी रोशनी लेकर आई अब जाति का भेद भूल सब एक जुट होकर भारती की इस उड़ान को और भी ऊँची करने में मदद करने लगे और शुरुआत हुयी एक नए समाज की एक ऐसा समाज जो जात का ना होकर इंसानियत का हुआ।