Rupa Bhattacharya

Drama Tragedy

4.8  

Rupa Bhattacharya

Drama Tragedy

खीर

खीर

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राधा का एक ही बेटा है ।'दीपक ', प्यार से दीपु ।राधा की दिनचर्या दीपक से शुरू होती औ र दीपक में जाकर खत्म होती। दीपक की इच्छाओं को पूरा करना ही राधा के जीवन का उद्देश्य बन गया ।राधा के पति सुरेश जी कभी -कभी कहते अरे राधा !कुछ समय तो मुझे भी दिया करो! राधा मुस्कुरा देती। एक दिन सुरेश जी ने कहा राधा चलो आज छुट्टी है ,मूवी देखने चलते हैं! राधा बोली अरे नहीं- नहीं ,दो दिनों के बाद दीपु की परीक्षा शुरू होने वाली है !मैं चली जाऊंगी तो वह उदास हो जाएगा । उसकी परीक्षा खत्म होने के बाद सभी एक साथ चलेंगे । सुरेश जी मन मारकर रह जाते ।एक दिन उन्होंने राधा से कहा पता है ! तिवारी जी के बेटे की शादी तय हो गई है । अरे वाह! बहुत अच्छी खबर है, राधा बोली, मैं फोन पर उन्हें बधाई दे दूंगी ।सुरेश जी बोले वो तो ठीक है , लेकिन तुम शादी में जाओगी न? कुछ सोचते हुए राधा बोली ,मैं नहीं जा पाऊंगी ! मेरे जाने से दीपु का टियूशन छूट जाएगा ।आप हो के आना। राधा दीपक का जन्मदिन बहुत धुम- धाम से मनाती थी । जन्मदिन की सुबह राधा का पहला काम होता दीपक को खीर बनाकर खिलाना,और दीपक बड़े चाव से खीर खाता।एक बार सुरेश जी ने राधा से कहा, क्यों न इस बार शादी की सालगिरह में हम बाहर कहीं घूमने जाएँ ? राधा ने तूनक कर जवाब दिया, क्या आप भूल गए कि दो दिनों के बाद दीपु का जन्मदिन आता है?!! फिर धुम-धाम से जन्मदिन मनाया गया । राधा ने खीर बनाई, दीपु के दोस्त आए, केक काटा गया खेल तमाशे हुए ,राधा खुब खुश थी।

दिन कैसे बीतते गए राधा को पता ही नही चला ।दीपक अब पढ-लिख कर इंजीनियर बन गया था ।उत्त्साह से भरपूर मोबाइल में व्यस्त रहने वाला आज का युवा!वैसे दीपक पढ़ने में ठीक- ठाक ही था ।कुछ अपनी माँ की दुआ , कुछ पिता के पैसे और कुछ खुद की मेहनत रंग लाई और एक अच्छा नौकरी का जुगाड़ हो गया। राधा खुशी से पागल हुए जा रही थी । एक सप्ताह पहले से उसने समानों का पैकिंग शुरू कर दिया था । छोटी से छोटी चीजों का ध्यान रखती कि कहीं यह छूट न जाए तो दीपु को तकलीफ होगी! उसे समझती बेटा !समय पर खाना! समय पर सोना! , दीपक बोलता, अरे माँ ! मैं कोई बच्चा नहीं हूँ! मैं खुद को संभाल लूंगा ।कहकर फेसबुक में खो जाता । राधा ने दीपक के नाश्ते के लिए मठरी , निमकी ,खजूर और भी जितने प्रकार के सूखे पकवान उसे बनाना आता ,बना के पैक कर दिया । दीपु को "पूणे "छोड़ने के लिए सुरेश जी गए थे । कम्पनी द्वारा दी गई 2BHK अपार्टमेंट में दीपक शिफ्ट हो गया । सुरेश जी दो दिनों बाद लौट आए ।

राधा के ये दो दिन दो युग जैसे बीते । घर, दिल, दिमाग सब कुछ खाली ।

राधा ने अपना दिल कड़ा किया और अपने को अन्य कामों में व्यस्त रखने लगी । फोन की घंटी बजते ही दौड़ पड़ती, शायद दीपु का फोन है! रोज रात को उसे फोन करती। । बेटा ठीक से खाना खाया? मन लग रहाहै? दीपक बोलता- माँ मैं ठीक हूँ । मुझे disturb मत करो! मै प्रोजेक्ट बना रहा हूँ !अभी फोन रखो! । राधा की दशा सुरेश जी से छुपी नहीं थी ।उन्होंने कहा ,जाओ तुम दो-चार दिनों के लिए उससे जाकर मिल लो, मन बहल जाएगा ।रात को राधा ने बेटे को फोन किया ! बेटा तुझे तो छुट्टी नहीं मिल रही! कहो तो दो-चार दिनों के लिए मैं आ जाऊँ ? अरे माँ अभी आने के लिए इतना क्यों हड़बड़ा रही हो? अभी काम का बहुत प्रेशर है ! राधा ने बुझे मन से फोन रख दिया ।फिर छह महीने और बीत गए, न दीपु आया और न राधा को बुलाया । कल दीपु का जन्मदिन है , पुराने यादों को ताजा कर राधा रात भर रोती रही। सुबह उसका सर भारी- भारी सा था । सुबह दीपक को फोन पर बधाई दी ,और कहा बेटा हर साल जन्मदिन पर तू खीर खाता है ! दीपक हँस के बोला व्ट्सअप में खीर का फोटो भेज देना ,खा लूंगा! । राधा हँस पड़ी। दस बजे सुरेश जी काम पर निकल गये ।राधा ने सोचा शगुन के तौर पर खीर तो जरूर बनाउँगी! किचन में जाकर देखा चाय भर का दुध बचा है। तैयार होकर दूध लाने निकल गई । रास्ते में उसे अपना सर भारी- भारी सा लग रहा था । रोड क्रॉस करने के लिए जैसे ही आगे बढ़ी उसके पैर लड़खड़ा गये ! राधा अपने को संभाल पाती-----।। मगर तब तक देर हो चुकी थी । अहा- ------एक जोर की चीख-----------।। अरे इसे अस्पताल पहुंचाओ !अरे बस का चालक भागने न पाए------''''राधा के आँखों के सामने अंधेरा छा गया । राधा को जब होश आया तो अपने सामने उसने सुरेश जी को पाया । अरे आप रो क्यों रहे हैं? मुझे कुछ नहीं होगा ---।। सुनिए जी ! आज जब दीपु का फोन आए तो उसे मेरे बारे मे कुछ नहीं कहिएगा ---'''।आज उसका जन्मदिन है ,------।बेकार परेशान होगा- -----।मैं ठीक होकर खुद उससे बात कर लूंगी। सुनो जी ऽऽऽ तुम दूध के कुछ पैकेटऽऽ खरीद कर घर में रख ---------देना- ----। मुझे खीर- --'''''' बनानी। है ----''''।।कहकर एक लंबी साँस लेते हुए राधा ने आँखें बंद कर ली ---'----'''----------'''।। रात में दीपक का फोन आया पापा! हेलो पापा! माँ फोन नहीं उठा रही है !माँ कहाँ हैं? मैंने यहाँ आने के लिए उसका टिकट कटा लिया है । सुरेश जी भरभराकर रोने लगे, रोते हुए कहा ,बेटा! तुमने देर कर दी!! अब वह तुम्हारी मेहमान कभी नहीं बनेगी ! अब वह ईश्वर की मेहमान बन चुकी

हैं। !!! तेरहवीं के दिन भोजन में " खीर "भी बना था । दीपक एक कोने मे काला चश्मा लगा के बैठा था, शायद उसके आखो में आंसू थे । उसकी थाली में खीर परोसा हुआ धा। दूर -------राधा उसे खीर खाते देख " शायद " खुश हो रही होगी ।


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