Sidhartha Mishra

Inspirational Children

4.0  

Sidhartha Mishra

Inspirational Children

कहानी एक आदर्श परिवार की

कहानी एक आदर्श परिवार की

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सुखदेव साहू एक रिटायर्ड स्कूल हेड मास्टर है। उनके दो बेटे हैं। दोनों की शादी हो चुकी है और बच्चे भी हैं। सुखदेव जी ने सोचा था की नौकरी से रिटायरमेंट के बाद वे अपनी पत्नी के साथ सुखी सुखी अपना जीवन जापन करेंगे। लेकिन उनके दोनों बहुएँ और बेटों के बीच रोज के झगड़ों ने उनका सारा का सारा प्लान का गुड़गोबर कर दिया!

उन्होंने सोचा की किसी भी तरह उनके दोनों नालायक बेटों को सही रास्ते पे लाना पड़ेगा, नहीं तो उनके घर का सत्यानाश हो जायेगा।

यही सोच कर वे एक रविवार को अपने पुरे खानदान को लेकर अपने मौसी के बेटे रामलाल के घर को गए। रामलाल पास वाले गाँव में रहते थे। उनके तीन बेटे हैं और तीनों एक साथ अपने परिवार के साथ रहते हैं ।

रामलाल ने उनका स्वागत किया। वे सब रोज़मर्रा की जिंदगी से तंग भी आ गए थे। तो इसलिए रामलाल जी के घर कुछ दिन रहने के लिए सभी बहुत खुश थे।

रामलाल जी ने सुखदेव से उनका हालचाल पूछा। सारी बात सुनकर वे बोले की वे इसका निवारण जरूर करेंगे।

रामलाल जी के बड़े बेटे बिनोद उनकी खेतीबाड़ी मैं मदद करते थे। उनके मझले बेटे प्रमोद ओड़िशा के सम्बलपुर जिले मैं एक कारखाने मैं नौकरी करते थे। लेकिन उनके बीबी बच्चे उदार गाँव में थे। प्रमोद की बीवी को कैंसर था। हर महीने चेकउप और इलाज के लिए शहर जाना पड़ता था। उधर प्रमोद इतनी दूर सम्बलपुर से वहां प्रतापगढ़ के शुक्लापुर गाँव मैं कहाँ आ पाते। इसलिए उनका बड़ा बेटा बिनोद या फिर छोटा बेटा अनुरोध, जिसका एक दुकान है, वो प्रमोद की बीवी को शहर चिकित्सा के लिए ले जाते थे।

कल फिर शहर जाना था। इस बार अनुरोध ने बोला की वो भाभी जी को शहर ले जायेगा। सुखराम जी ने उनके बड़े बेटे अलोक को भी साथ भेजा। तीनों शहर के लिए निकल पड़े। रास्ते में अलोक ने अनुरोध से पूछा की इलाज मैं खर्चा तो बहुत होता होगा। अनुरोध ने बताया की तीनों भाई मिलकर इलाज का पैसा देते हैं। ये सुनकर अलोक ने सोचा की उनके घर मैं जहाँ राशन को लेकर झगड़े होते हैं, वहां रामलाल चाचू के तीनों बेटे घर के सदस्य के इलाज के लिए खुशी खुशी सारा पैसा मिलकर दे रहे हैं। अलोक को उस दिन बहुत बुरा लगा। तीनों अस्पताल जाकर शाम को घर लौट आये।

उधर सुखदेव जी का दूसरा बेटा भी रामलाल जी के घर की एकता और अखंडता देखकर ताजुब था। दोनों की पत्नियां भी रामलाल जी की बहुओं से मिलकर घर चलाने के बारे मैं बहुत सारी बातें सीखी। दोनों बहुएँ भी अब से मिलकर रहना चाहती थी।

एक सप्ताह के बाद सुखदेव साहू जी अपने परिवार के साथ घर लौट आये। वो उनके बेटों और बहुओं के व्यवहार को देखकर हैरान थे। अब कोई लड़ाई झगड़ा नहीं हो रहा था। उनके नातिन और नाती सब भी मिलकर खुशी से खेलने लगे थे।

एक दिन अलोक के दफ़्तर मैं कुछ काम आया जिसके सिलसिले मैं अलोक को पांच दिन के लिए कोलकाता भेजा गया। इसी बीच उसके दस साल के बेटे सूरज को तेज बुखार हो गया। तुरंत अलोक का छोटा भाई दीपक अपनी बाइक निकल कर सूरज को डाक्टर साहब के घर ले गया और उसका इलाज करवाया। उस समय रात के बारह बज रहे थे। जब अलोक को इस बात का पता चला तो वो बहुत खुश हुआ।

जब अलोक कोलकाता से वापस आया तो सब के लिए कुछ ना कुछ गिफ्ट लेकर आया था। उसने दीपक को एक अच्छी घड़ी गिफ्ट की।

इधर सुखदेव साहू जी अपने परिवार को सुखी देख खुश थे।

कुछ महीने इस तरह हंसीं खुशी बीत गए। फिर एक दिन दीपक के बेटे कार्तिक और अलोक के बेटे ऋतिक के बारे मैं उनके स्कूल के प्रिंसिपल सर से शिकायत आयी। दीपक और अलोक गए स्कूल।

प्रिंसिपल सर ने बोला की कार्तिक का झगड़ा उसके सहपाठी सुरेश से किसी बात को लेकर हो गया। उस समय लंच ब्रेक था। ऋतिक भी वहां था। वो भी कार्तिक के तरफ से मिलकर सुरेश को मरने लगा। इधर गलती तीनों की थी। ऋतिक को दोनों को रोकना चाहिए था, ना की खुद लड़ाई शुरू कर देना।

सुरेश, ऋतिक और कार्तिक तीनों ने प्रिंसिपल सर से माफ़ी मांगी और उनके अभिभावक भी उनके बच्चों की और से शर्मिन्दा थे।

घर लौटते समय दीपक ने अलोक से बोला की भले ही उनके बच्चे आज लड़ाई करने के लिए प्रिंसिपल सर से डांट कहा कर आये, लेकिन उसे इस बात की खुशी थी की ऋतिक और कार्तिक दोनों ने एक दूसरे का साथ दिया और फिर बाद मैं सुरेश से दोस्ती भी कर ली। उनके बच्चे अब एक दूसरे की हिफाज़त करने लगे हैं । अलोक ने भी हामी भारी।

उधर दोनों बहुएँ भी अब रासन का सामान से लेकर बच्चों की पढ़ाई लिखाई सब कुछ मिलकर संभाल रही थी। दोनों सुबह सुबह अपनी सास को लेकर मॉर्निंग वाक को भी जाती थी।

तो ये थी कहानी एक आदर्श परिवार की। ये परिवार जो पहले तो एकता का मतलब भी शायद नहीं जनता था, लेकिन फिर बाद मैं रामलाल जी के घर जा के जब इन्होंने परिवार का प्यार क्या होता है, एक दूसरे की मदद करना किसे कहते हैं , अपनापन क्या है, जब ये सब चीजों को महसूस किया ; उसके बाद से इन सब का हृदय परिवर्तन हुआ। और आज ये खुद एक आदर्श परिवार बन गए है।



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