कहानी-अनोखा उपहार
कहानी-अनोखा उपहार
शीर्षक- बचपन " निश्चल अहसास "
धूल से भरे फूल की सूनी आँखों ने पलाश के टूटे हुए फूलों की भांति बिखरते हुए कुछ अनकहा सा कहना चाहा।
मेरे माली काका का पोता गाँव से शहर घूमने के उत्साह में मेरे घर आया था।
सहमा सा माली काका की अंगुलि थामे हमारे घर, बगीचे को निहारते हुआ। मासूमियत और शालीनता की भीनी मुस्कान बिखरता हुआ। संस्कारों की सौंधी खुशबू में सिमट हुआ। मुझे प्रणाम करके बोला।
माँ जी क्या मैं माली दादा के साथ यहाँ रूक जाऊँ। बस दो चार रोज में चला जाऊँगा।
मैंने अपना चश्मा ठीक करते हुए उसकी ओर जब देखा
वह सहम कर माली काका के पीछे छिप गया।
मैंने पलकें झपकाते हुए अनुमति दे दी।
तभी मेरे 7साल का पुत्र अंकित मेरे पास आया। बोले माँ यह कौन है।
माली काका के पोते का नाम सूर्या था।
मैं जब तक उत्तर देती। अंकित ने अपनेपन से उसका हाथ पकड़ा और सूर्या को अपने कमरे में ले जाने का आग्रह किया। चंद घंटों में वह एक दूसरे से मिल गए।
अंकित अपनी पुस्तकों को सूर्या को दिखाने लगा। चित्र कला में निपुण अंकित रंगों को दिखाने लगा। परंतु सूर्या ने फीकी मुस्कुराहट में कहा मुझे पुस्तक पढ़ना नहीं आता।
ये इतने सुंदर चित्र में रंग भरना बहुत अच्छा लगता है।
अंकित सूर्या की बाते सुन रहा था सूर्या को मिट्टी के खिलौने बनाने बहुत खूब आते है।
अगले दिन अंकित का जन्मदिन था। सभी से दुलार लेते हुए भी अंकित की आँखें सूर्या को ढूंढ रही थी
अरे! तुम......
कहते ही अंकित ने सूर्या को आलिंगन किया। तुम्हारे हाथ में इतने सुंदर रंग-बिरंगे मिट्टी के खिलौने मेरे जन्मदिन पर तुमने विशेष उपहार.......
पिताजी देखो सूर्या कितने मोहक खिलौने बनाता है। कहते हुए अंकित पिता जी की गोद में बैठ कर हौले से बोला।
पापा..........वादा करो।
पिता जी कार का हार्न बजा कर बुलाया। अंकित सूर्या का हाथ पकड़ कर दौड़ते हुए बोला पिताजी आप मेरा उपहार देंगे।
पिताजी अंकित के विघालय जा पहुंचे सूर्या का दाखिला अंकित के विघालय मे करवा कर। पुस्तकें लेकर अंकित को थमा कर बोले मेरे पुत्र मुझे तुम पर गर्व है।
अंकित सूर्या को पुस्तकें देकर बोला आज से तुम भी इन किताबों से पढ़ोगे । मेरे साथ ......
कह कर अंकित ने सूर्या की आँखों में सच्ची मित्रता की चमक तथा विघालय में पढ़ने की खुशी की अनुभूति देखी।
अंकित के अनोखे मैत्री पूर्ण अपनत्व ने मेरे हृदय को भाव विभोर कर दिया।