खामोशी

खामोशी

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"कैसे है आप?" एक बहुत पुरानी पर जानी पहचानी और बड़ी ही गर्मजोशी से भरी हुयी आवाज आयीं तो मेरा पीछे मुड़ कर देखना स्वाभाविक ही था।वह और कोई नही,मेरे साथ स्कूल में पढ़नेवाला मेरा बहुत पुराना दोस्त खड़ा था।मेरे स्कूल का दोस्त!

आज इतने सालों के बाद उसे देखकर बहुत ज्यादा हैरानी हुयी थी।एक छोटे से गाँव में पढ़ते पढ़ते हम बड़े हुए और फिर जिंदगी की राह में इधर उधर हो गए थे।

दिल्ली जैसे बड़े शहर में मेरे खूबसूरत से घर को वह अचरज से देखे जा रहा था और जैसे संभल संभल कर चल रहा था।हर छोटी बड़ी चीज को देख रहा था।उसके हर हाव भाव को निहारते हुए मैं मन ही मन फूल कर कुप्पा हो रहा था।

मैंने उससे हाल चाल पूछा।मेरा घर,मेरी नौकरी और मेरे वैभव को देख कर उसने सकुचाते हुए अपनी नौकरी और घर परिवार के बारे में बताया।थोड़ी देर इधर उधर की बातें हुयी और 'गुड नाईट' कह कर सोने के लिए जाते जाते उसने धीरे से कहा,"तुम्हारे घर में बहुत शांति है।बचपन में तुम्हारे टूटे फूटे घर की छत में बरसात में जो पानी टपकता रहता था और घर के छोटे बड़े बर्तन के रखने और टप टप पानी गिरने की आवाज और कागज को टर्र टर्र फाड़कर बनायी नाव पानी में छोड़ने की हमारी खिलखिलाहट की आवाज कही ज्यादा अच्छी लगती थी यहाँ की शांति से।"


और मेरे घर के कोने वाले guest room में वह चला गया पीछे एक लंबा सा गहरा सन्नाटा छोड़ कर.....


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