PANKAJ GUPTA

Drama Romance Fantasy

4.7  

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कच्ची उम्र का प्यार (भाग-1)

कच्ची उम्र का प्यार (भाग-1)

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आज से ठीक एक वर्ष पहले मैं वाराणसी के कैंट रेलवे स्टेशन पर अपने ट्रेन के इंतजार में बैठा था। ट्रेन समय से आ भी गई। मैं अपने कोच मे प्रवेश के पहले उस कोच से यात्रियों के उतरने की प्रतीक्षा करने लगा। 

सहसा मेरी नजर उस कोच से उतरते हुए हल्की गुलाबी साड़ी पहने हुए एक नई नवेली खूबसूरत दुल्हन की तरफ गई। उसका चेहरा देख कर लगा की इससे हमारा कोई गहरा नाता है। सोचने का वक्त तक नही मिला की ट्रेन और वो दुल्हन दोनो अपने गंतव्य की दिशा मे चल पड़े। मुझे मजबूरन ट्रेन मे दाखिल होना पड़ा उस दुल्हन का चेहरा मेरे दिमाग मे चारो तरफ घूम रहा था। अपनी बर्थ पर बैठकर हम उस खूबसूरत चेहरे को अपनी यादों में ढूढ़ने लगे और फिर याद आया ये तो आरती थी ......और फिर अपनी पुरानी यादों मे खो गये......

बात उन दिनों की है जब मैं 8वी कक्षा मे पढ़ रहा था। 8वी एवम 6वी कक्षा अगल बगल ही लगती थी और दोनो कक्षा की एक- एक दीवारे एक दूसरे की तरफ खुलती थी।

चुकि मैं पिछली क्लास का टॉपर था इसीलिए मैं 8वी कक्षा का मॉनिटर था और मैं सबसे आगे वाली बेंच पर दाये कोने पर बैठता था।

क्लास के पहले ही दिन मेरी नजर 6वी कक्षा के सबसे अगले पंक्ति मे बाये कॉर्नर पर बैठी एक बेहद खूबसूरत लड़की पर पड़ी। इस लड़की को तो पहले से ही स्कूल मे देखा था लेकिन आज उसमे गज़ब का आकर्षण था। पता नही मेरी उम्र का फेर था या वो सच मे इतनी खूबसूरत थी। वो किसी अप्सरा से कम नही थी। जब उसपे नजर पड़ी, नजर हटने का नाम ही नही ले रही थी। दोस्तो से पता चला की ये आरती है पिछले क्लास की टॉपर और 6वी की मॉनिटर। जब कोई आपकी तरह हो तो उससे लगाव और बढ़ सा जाता है मेरे साथ भी यही हुआ।

आरती पढ़ने मे बहुत अच्छी थी। कभी कभी जब मैं आरती को देखता था तो लगता था कोई इतना सुन्दर कैसे हो सकता है। मैं अक्सर आरती को देखा करता था कभी कभी उसकी नजर भी हमसे मिल जाती थी लेकिन नजर मिलने के बाद वो तुरंत अपनी नजर हटा भी लेती थी । नजर हटाकर अपनी पेन को अपने मुँह से लगा लेती थी । शायद कुछ सोचने लगती थी। 

धीरे धीरे हम दोनो मे अंदर ही अंदर आकर्षण बढ़ रहा था उसकी आँखें ये साफ साफ बयान करती थी। इस आकर्षण को बढ़ाने मे विभा मैम ने अपना भरपूर योगदान दिया। मैम अक्सर आरती और मेरी साथ मे तारीफ करती थी। वो हर क्लास में कहती थी कि आरती और अमित मेरे पसंदीदा छात्र/छात्रा है। उनके मुँह से एक दूजें की तारीफ सुनना बड़ा सुकून देता था क्योकि सारे अध्यापको मे वो मेरी आर्दश थी। उनके कारण मुझमें और आरती मे आकर्षण और बढ़ा। मासिक टेस्ट मे हम दोनो के अंक भी बहुत अच्छे आते थे और हमेशा टेस्ट मे टॉप करना हम दोनो की आदत थी।

मेरे दोस्त मेरे मज़े लेते थे और उसकी सहेलिया उसकी। हम दोनो ने आपस मे अभी तक एक दूसरे से बात तक नही की थी लेकिन पूरे स्कूल मे हम दोनो की चर्चा थी। लन्च समय मे टिफिन के बाद सारे स्टूडेंट्स एक ग्राउंड मे इकट्ठा होकर अपने अपने क्लास के स्टूडेंट्स के साथ तरह तरह के खेल खेला करते थे। मैं भी क्लास के दोस्तो के साथ जंजीर खेला करता था। कभी कभी जी करता था की खेल खेल मे ही हम आरती से टकरा जाये। उस कच्चे उम्र में ही पता न क्यों मुझे ऐसे उल्टे पुल्टे ख्याल दिल मे आ जाते थे और एक दिन शायद भगवान ने मेरी सुन ली।

मैं दोस्तो के साथ जंजीर खेल रहा था और आरती अपने सहेलियों के साथ खो-खो। दौड़ते दौड़ते हम दोनो एक दूसरे से टकरा गए। मेरे टक्कर से आरती गिर पड़ी मैं उसे संभाल भी न पाया। फिर मैंने उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ाया और उसे उठने मे सहायता की। फिर मेरी नजर उसकी होठों की तरफ गये जहा से हल्का खून निकल रहा था। फिर मुझे अफसोस हुआ कि हमने ईश्वर से ऐसे टक्कर की प्रार्थना ही क्यों की थी। मेरे पास उस समय रुमाल भी न थे की मैं आरती के होठों को पोछ सकू। फिर अनायास ही मेरे हाथ आरती के होठों के तरफ बढ़ चले और मैंने अपने हाथों से ही उसके होठों पर लगे खून को पोछ दिया। सारे लड़के/लड़कियां इस दृश्य को देख कर हूटिंग करने लगे। तभी विभा मैम आरती को ऑफिस ले गई एवम उसके होठों पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाने के साथ एक दवा भी खाने को दी। 

उस घटना के दो दिन बाद तक आरती स्कूल नहीं आई। चूँकि मैं पैदल ही स्कूल जाता था क्योंकि मेरे घर से स्कूल की दूरी मात्र 500 मीटर के आस पास थी। लेकिन आरती का घर 3-4 किलोमीटर दूर था वो स्कूल वैन से आती थी। मैं अगले दिन पहुँचा तो देखा आरती अपने क्लास मे नहीं है। मेरा मन बेचैन सा हो उठा आरती आई क्यों नही। तभी एक दोस्त ने बताया स्कूल वैन अभी तक आई नहीं है। मैं बेसब्री से स्कूल वैन का इंतजार कर रहा था। मेरी क्लास चल रही थी लेकिन मेरी नजर स्कूल गेट के तरफ थी। क्लास मे पढ़ा रहे पी०डी०सर ने मुझे डांट भी लगाई

"इधर ध्यान दो अमित कहा बार बार गेट की तरफ देख रहे हो "

तभी बगल मे पढ़ा रही विभा मैम ने चूटकी ली "आरती अभी तक नही आई है इसीलिये अमित का मन नही लग रहा"

कुछ बच्चे हँस पड़े। तभी मुझे स्कूल वैन की आवाज सुनाई दी। दिल मे एक राहत की घंटी बजी और मेरी नजर वैन से उतरते स्टूडेंट्स पर पड़ी। बड़े उम्मिद भरे नज़रो से हम देख रहे थे की वैन से उतरने वाला अगला स्टूडेंट आरती हो। जैसे जैसे लड़के/लडकियां उतर रहे थे और आरती अभी तक नही उतरी थी मेरी धड़कन और तेज हो रही थी और बेचैन भी। अंत मे सारे लड़के /लडकिया उतर गये और उनमे आरती नही थी। मेरी मनोदशा विभा मैम समझ सकती थी वो बड़े ध्यान से हमको देख रही थी और उनके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान के साथ मेरे लिए दया के भाव भी थे। 

मेरा उस दिन पूरे क्लास मे मन नही लगा। और किस तरह स्कूल का समय खत्म हुआ वो हम ही जानते है।


अगले दिन जब मैं स्कूल पहुँचा उस दिन भी आरती नही थी। फिर मेरा ध्यान उन स्टूडेंट्स पर गया जो स्कूल वैन से आते थे। वो सब आये थे आरती नही थी। मैं रोने से बड़ी मुश्किल से ख़ुद को संभाल पाया।उस समय कोई भी मेरे चेहरे के भावों को आसानी से पढ़ सकता था और मेरी खराब मनोस्थिति को जान सकता था। उस दिन मैंने ना ही लन्च किया और ना ही लन्च के बाद होने वाले खेल मे हिस्सा लिया। विभा मैम ने थोड़ा साहस दिया बेटा उसे चोट लगी है न इसीलिए नहीं आ रही है..वो शायद कल से आये। 

...........(शेष कहानी अगले भाग में)


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