Akanksha Gupta

Thriller

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Akanksha Gupta

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कातिल (हू नेवर मर्डरड) भाग-10 अंतिम भाग

कातिल (हू नेवर मर्डरड) भाग-10 अंतिम भाग

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माधवी खुद को पंचनेर विला के उस जले हुए खंडहर में देख कर चौंक जाती हैं। विधान धीरे धीरे उनके करीब आने लगता हैं। उसे इस तरह अपने करीब आते हुए देख माधवी की धड़कनें तेज हो गई थी। उसे पसीना आने लगा। कुछ ही पल में विधान माधवी के करीब आकर जोर से हंसते हुए कहता हैं- “वेलकम बैक इन द सर्किल ऑफ योर कर्मा मिसेज सिंघानिया। मैं विधान किशोर शर्मा आपका आपके ही कर्मचक्र में स्वागत करता हूँ।” 

“यह क्या बदतमीज़ी हैं विधान? हमें यहां इस तरह बांध कर क्यो रखा है?” दीप्ति खुद को रस्सियों के बंधन से छुड़ाने की कोशिश कर रही थीं।

“अब यह तो तुम मिसेज माधवी सिंघानिया से ही पूछो कि तुम्हें यहां इस तरह बांध कर क्यों रखा गया हैं। बताइये मिसेज माधवी सिंघानिया मिस दीप्ति कुछ पूछ रही हैं।” विधान ने कुर्सियों के चारों ओर चक्कर काटते हुए बोला।

“तमीज से बात करो विधान और ये सब क्या है? हमें इस तरह यहां लाने का क्या मतलब है? पागल तो नहीं हो गए?” माधवी का शरीर गुस्से में कांप रहा था।

“अरे यार तुम औरतो के साथ यही एक सबसे बड़ी दिक्कत हैं। सेम क्वेश्चन रिपीट कर-कर के सामने वाले का दिमाग खा जाती हो और फिर उसे ही पागल डिक्लेयर कर देती हो। वैसे आप ठीक ही कह रही हैं मिसेज सिंघानिया, जो इंसान सब कुछ जानते हुए भी अपने माँ-बाप के कातिलो को पांच सालों के लिए जिंदा छोड़ दें उससे बड़ा पागल और कोई हो ही नहीं सकता लेकिन अब मैं यह पागलपन और नही करूँगा। मैं विधान किशोर शर्मा आज इस कहानी का वैसे ही अंत करूँगा जैसे इसका आरंभ हुआ था।” विधान जोर से हंसता हुआ सामने वाली कुर्सी पर जा कर बैठ गया।

“कातिल? कौन कातिल और किसके माँ-बाप? यह सब तुम क्या बकवास कर रहे हो? और यह क्या विधान किशोर शर्मा...विधान किशोर शर्मा की रट लगा कर रखी हैं? तुम विधान पुरषोत्तम सिंघानिया हो समझे और किन माँ-बाप की बात कर रहे हो जिन्होंने तुम्हें अनाथालय में सड़ने के लिए छोड़ दिया था और पलट कर तुम्हें देखा तक नहीं। मेरी एक बात कान खोल कर सुन लो, तुम्हारे माँ बाप का नाम पुरषोत्तम सिंघानिया और माधवी सिंघानिया हैं। यही सच है और हमेशा यहीं सच रहेगा।” माधवी के चेहरे पर डर साफ झलक रहा था। शायद वह कुछ छिपाने की कोशिश कर रही थीं।

विधान कुर्सी पर से उठते हुए चिल्लाते हुए बोला- “ये सच नहीं हैं। मेरे माँ-बाप का नाम किशोर शर्मा और कंचन शर्मा है जिन्हें तुमने अपने पति और उस रमेश खन्ना उर्फ शैलेश प्रजापति के साथ मिलकर मार डाला था। और रहा सवाल कि उन्होंने मुझे अपने होते हुए अनाथालय में क्यो छोड़ा था तो इसके पीछे भी जरूर तुम तीनों की कोई गहरी चाल रही होगी वरना कोई भी माँ-बाप अपने बच्चे को अपने जीतेजी खुद से दूर नही कर सकते। और उस पुरषोत्तम के साथ इतने साल रहने के बाद मैं उसके बारे मे इतना तो जान ही गया हूँ कि अपने मकसद को पूरा करने के लिए उसे अपने शिकार के करीब रहने की जरूरत नहीं थी।”

“और जब मैं उनसे पहली और आखिरी बार मिला था तो उन्हें देखकर लगता तो नहीं था कि उन्हें मेरे होने से कोई तकलीफ रही होगी बल्कि उस दिन तो वे दोनों कितने खुश लग रहे थे। मैं भी बहुत खुश था उस दिन कि मुझे मेरे मम्मी-पापा वापस मिल गए।इन्फेक्ट मैने तो सोच भी लिया था कि अब मैं उन दोनों को छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा, उनके साथ ही रहूंगा लेकिन तुम सबने मिलकर सब कुछ जला कर राख में बदल दिया। मुझे अनाथ बना दिया। मेरी खुशियां छीन ली और फिर मुझे एडॉप्ट करने का नाटक करके दुनिया के सामने महान बन गए।”

“लेकिन तुम्हें शैलेश....मेरा मतलब है रमेश के बारे मे कैसे पता चला?” माधवी को जैसे कोई और ही चिंता सता रही थीं।

“एक आदमी जिसने अपने गांव के लोगों का जीना इस कदर मुश्किल कर दिया हो कि उसके मरने की दुआ मांगी जाती हो। उसके मरने की खबर भर से ही पूरे गांव में जश्न का माहौल हो। ऐसे आदमी को लोग उसके मरने के बाद भी नहीं भूलते इसलिए जब मैने अपने आदमियों से उसकी जन्मकुंडली निकालने के लिए कहा तो उसके जिंदगी के पन्ने खुलते चले गए कि कैसे पूरे गांव मे गुंडागर्दी करने वाला रमेश खन्ना एक फेमस आयुर्वेदिक डॉक्टर और एक काबिल सर्जन शैलेश प्रजापति बन गया।”

फिर विधान ने एक लंबी सांस ली और पानी पिया। वो बोलते-बोलते थक गया था इसलिए उसने कुर्सी पर बैठ कर सिगरेट का एक कश लगाया। विधान का यह रूप देखकर माधवी और दीप्ति को डर लग रहा था। उन दोनों को डरा हुआ देखकर विधान को एक अजीब सा सुकून मिल रहा था। माधवी ने डरते-डरते पूछा- “तो क्या पुरषोत्तम को भी तुमने ही.....।” 

“हाँ-हाँ बिल्कुल यह नेक काम मैने ही किया है। चलो आज आप दोनों का सस्पेंस खत्म कर ही देते हैं। मैं आपको पूरी कहानी शुरू से सुनाता हूँ।” यह कहकर विधान अपनी जैकेट की जेब मे से एक लाइटर निकलता है और उसे जलाकर जमीन आग की लौ को जमीन पर लगाता है।

उसके ऐसा करते ही माधवी और दीप्ति की कुर्सियां आग के गोल घेरे में घिर जाती हैं। यह देखकर वे दोनों जोर से चीखती हुई भागने के लिए हाथ पैर मारने लगती हैं। यह देखकर विधान जोर से हंसते हुए कहता है- “डोंट वरी लेडीज। यह अग्निचक्र तब आपके करीब नही आएगा जब तक मैं अपनी कहानी पूरी ना कर लूँ। तब तक मिसेज सिंघानिया आप भी डिसाइड कर लीजिए कि आप मुझे बताएंगी या नही कि आपने मेरे माँ-पापा को क्यो मारा जबकि वे तो एक मिडिल क्लास बैकग्राउंड से थे कोई बिजनेस राइवल नही।”

“तुम्हारी दुश्मनी तो अपनी मॉम से है तो मुझे यहां क्यों बांधकर रखा हैं तुमने?” दीप्ति जो अब तक चुपचाप सारी बातें सुन रही थीं, ने हिम्मत करके पूछा तो पहले तो विधान ने एक ठहाका लगाया फिर उसकी तरफ नफरत और गुस्से से देखते हुए बोला- “मैने कितनी बार कहा है कि यह औरत मेरी माँ नहीं है। और जहां तक तुम्हारा सवाल है कि मैं तुम्हें यहां क्यों लेकर आया तो तुम्हें तो मैं उसी दिन मार देना चाहता था जिस दिन तुमने पुरषोत्तम के कहने पर उसके लिए काम करने के लिए तैयार हो गई थी।”

“पता है जब मैं तुम्हारे पास जासूसी का ऑफर झूठ बोलकर लाया था तो मुझे लगा था कि तुम इसके लिए इंकार कर दोगी लेकिन नही तुम पर तो एहसान उतारने का भूत सवार था। मुझे उसके इस एम्पायर को मिट्टी में मिलाना था लेकिन तुमने बिना किसी सवाल के इस काम के लिए हां कर दी और मेरे सारे प्लान पर पानी फेर दिया। और उस दिन जब अर्जुन ने मेरी सारी प्लानिंग तुम्हारे सामने खोल दी थीं, मैने तभी डिसाइड कर लिया था कि तुम्हें भी इसी अग्निचक्र में जलकर भस्म होना होगा।”

इसके बाद वो अपनी घड़ी में टाइम देखता है और कहता है- “चलो काफी समय बर्बाद हो गया, अब कहानी शुरू करते हैं। वैसे भी एसीपी अर्जुन यहां पहुंचने ही वाला होगा।”

“क्या? तुमने उसे भी यहां बुला लिया?” माधवी और दीप्ति विधान के दिमाग को पढ़ने की कोशिश कर रही थीं।

“हाँ, यहां उसे अपना कातिल तो मिलेगा लेकिन वह उसे गिरफ्तार नहीं कर पायेगा क्योंकि लाशें गिरफ्तार नहीं हुआ करती।” विधान ने कहा और अपनी जेब से दूसरी सिगरेट निकाल कर पीने लगा।

विधान कुर्सी पर बैठते हुए कहता है- “तो फिर कहानी शुरू करते हैं। दीप्ति तुम्हें याद है तुम्हारे साथ कॉलेज के फर्स्ट ईयर में रुचि नाम की एक लड़की पढ़ती थीं जिसके पापा जर्नलिस्ट थे। वो तुमसे हमेशा पंचनेर विला के बारे मे बताती रहती थीं जिसमें लगी आग में तीन लोगों की मौत हुई थी। यह वही पंचनेर विला हैं।” इसके बाद विधान चारों तरफ नजरें घुमाता हैं फिर लम्बी सांस छोड़ते हुए कहानी आगे बढ़ाता है- “मैं तुमसे बात करने के लिए तुम्हारा पीछा करता था लेकिन रूचि हमेशा तुम्हारे साथ घूमती रहती थी जिसकी वजह से मैं तुमसे कभी बात नहीं कर पाया।”

“ऐसे ही एक दिन जब मैं तुम्हारा पीछा कर रहा था और रुचि तुम्हें पंचनेर विला के किस्से सुना रही थीं, उसने कहा कि उस आग में पुरषोत्तम सिंघानिया की बेटी की भी मौत हुई थीं। मुझे शॉक लगा क्योंकि मैं तो उसे अपनी छोटी बहन समझता था। इस बारे मे मुझे मॉम डैड से कुछ भी पूछना ठीक नहीं लगा।”

“इसके बाद मैं जानबूझकर तुम्हारा पीछा करने लगा ताकि रूचि की बातें सुन सकूँ। एक दिन जब उसने कहा कि उसके पिता को शक था कि यह एक हादसा नही बल्कि एक साजिश हैं। इस बारे में पता करने के लिए मैं बिना किसी को बताये रूचि के पापा से मिलने गया। उन्हें पता नही था कि मैं कौन हूँ इसलिए उन्होंने मुझे बताया कि उस आग में मरने वाले लोगों को पहली जांच में बेहोश पाया गया था और वहां किसी भी बच्चे की बॉडी नही मिली। फिर उस केस के इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर की एक एक्सीडेंट में मौत हो गई।”

“इसके बाद उनकी जगह पर उन्हीं के दो जूनियर ऑफिसर्स को इस केस की इन्वेस्टिगेशन दी गई। उन्होंने डिक्लेयर कर दिया कि यह एक हादसा था और उन्हें एक बच्चे की बॉडी भी मिली हैं। उन्हें इस बात का ताज्जुब था कि मिस्टर सिंघानिया ने इस बात पर कोई ऑब्जेक्शन क्यों नहीं किया?”

“यह बात अपने मन मे लेकर मैं यहां आया और पुलिस थाने पहुंचा जहां उन दोनों पुलिस के बारे में पता चला जिन्होंने इस केस की क्लोजिंग रिपोर्ट दी थी। मेरे बारे में बिना कुछ जाने ही उन्होंने मुझे सब कुछ बता दिया था कि कैसे उन्होंने इस केस की छानबीन कर रहे अपने सीनियर ऑफिसर की गाड़ी के ब्रेक्स फेल कर के उनका एक्सीडेंट किया था और फिर एक साजिश को हादसे में बदल दिया।”

“अब शुरू होती हैं बदले की कहानी।” विधान एक लंबी सांस लेता हैं। “मैने तय किया कि अपने माँ-बाप की मौत का बदला मैं तुम लोगों से लेकर रहूंगा। इसके लिए मैने उन्हीं जहरीली पत्तियों को अपना हथियार बनाया जो मेरे परिवार को बेहोश करने के लिए इस्तेमाल की गई थी। इसके लिए पहले तो एक लैब में गया जहाँ इन पत्तियों पर रिसर्च की जाती थी। वहाँ से पंद्रह दिन की ट्रेनिंग ली और सबसे पहले उन दोनों पुलिसवालों पर एक्सपेरिमेंट किया। बेचारे शराब के नशे के साथ जहर भी पी रहे थे और उन्हें पता भी नहीं चला। उसके बाद तो धड़ाम.......।”

विधान जोर से हँसता हैं और आगे बोलता है- “फिर बारी आई पुरषोत्तम सिंघानिया की। उसका यकीन जीतने में मुझे तीन साल लग गए। फिर शैलेश बनकर उससे बात करनी शुरू की ताकि वो अपना जुर्म कुबूल कर ले लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फिर जब उस पार्टी में जब तुम दोनों दीप्ति को लेकर आपस मे कुत्ते बिल्लियों की तरह लड़ रहे थे, मैं वही बाहर खड़ा था और फिर जैसे ही वे बाहर निकले, मैं उनके पीछे गया और लॉन्ग ड्राइव के बहाने उन्हें उस फ़्लाईओवर पर ले आया और उन्हें वो जहर पिलाया। फिर जो होना था हो गया। वैसे भी जिस इंसान ने अपनी बेटी तक को नहीं बख्शा उसे तो वैसे ही मर जाना चाहिए।”

फिर विधान ने बताया कि कैसे उसने शैलेश को बेहोश करके उसके शरीर मे पत्तियों से बने जहर का इंजेक्शन लगाया और फिर उसकी मौत हुई। उसने ही पुरषोत्तम के फोन में के.के शर्मा नाम फीड किया। उसने ही हर जगह पत्तियां छोड़ी थी ताकि पुलिस को सुराग मिल सके।

फिर विधान ने माधवी और दीप्ति को देखा। आग उनके करीब पहुंच चुकी थीं। अब विधान माधवी से पूछता हैं- “क्या अब आप सच बताना चाहेंगी?”

माधवी कुछ कह पाती इससे पहले ही अर्जुन वहाँ आ चुका था। “सच बता दीजिए कंचन जी, आपका बेटा आपसे कुछ पूछ रहा है।”

“तुम आ ही गए एसीपी बट अफसोस थोड़े लेट हो गए। जहर तो मैं इन लोगों और इनके कातिल को दे ही चुका हूँ। यह आग देख रहे हो यह आग नही जहर हैं जो इनकी सांसो में घुल चुका है।” विधान जोर से हंसता है।

“मुझे तो यहां आना ही था। तुमने ही तो हमेशा की तरह मेरे लिए सुराग छोड़ा था अपने वॉचमैन के पास उससे यह कहकर कि जो कहानी जहां पर अधूरी रह गई थी उसे वहीं पर पूरा करने जा रहे हो।” अर्जुन ने बताया तो विधान ने थोड़ा जोर से कहा- “ताकि तुम अपने कानों से इनके गुनाह सुन सको। बस एक बात का अफसोस रहेगा कि मैं अपने माँ-बाप से उनका बेटा बनकर नहीं एक घटिया कातिल बनकर मिलूंगा।” विधान की आंखे नम थी और उसकी नाक से खून निकलना शुरू हो चुका था।

“अफसोस तो तुम्हें होगा विधान जब तुम्हें पता चलेगा कि बीस साल पहले उस आग में तुम्हारे नहीं बल्कि काव्यश्री के माँ बाप की मौत हुई थी।” अर्जुन ने कहा तो विधान झूमते हुए बोला- “लगता हैं इस जहर का असर तुम पर भी होने लगा है तभी तो तुम कुछ भी कहते जा रहे हो।”

तब अर्जुन ने माधवी की ओर देखा जिसे लोकल पुलिस के लोग रस्सियों से आजाद कर चुके थे। दीप्ति भी वहीं पर खड़ी थीं। अर्जुन ने कहा- “अब सच छुपाने से कोई फायदा नहीं। बेहतर होगा कि आप अपना गुनाह कबूल कर लें।”

अर्जुन के समझाने पर उसने बताना शुरू किया- “उस आग में जलकर मरने वाले कंचन और किशोर नही बल्कि असली माधवी और पुरषोत्तम है। विदेश से भारत घूमने आये इस परिवार को खत्म करने के बाद उनका नाम और पहचान हथियाने का प्लान किशोर ने बहुत पहले ही बना लिया था। इसी प्लान के तहत विधान के जन्म लेते ही हमने उसे एक अनाथालय में छोड़ दिया और उसके माँ-बाप की तस्वीर के तौर पर हमने माधवी और पुरषोत्तम की तस्वीर दी ताकि आगे चलकर विधान के लिए दिक्कत न हो। फिर हमने उन दोनों के रहन सहन और तहजीब को अपनाया। फिर किशोर ने पुरषोत्तम के सिग्नेचर करने की प्रेक्टिस की। जब छः साल बाद हमारी तैयारी पूरी हो गई तो उस साल हमने जानबूझकर ऐसी जगह पर ठहरने के लिए कॉटेज लिया जहां इन जहरीली पत्तियां आसानी से मिल सके क्योकि रमेश ने हमें बताया था कि इस जहर को पोस्टमार्टम में पकड़ पाना आसान नहीं है। फिर उस रात जब हम सब लोग डिनर कर रहे थे तो हमने पहले से ही उनके खाने की चीजों में पत्तियों का चूरा मिला दिया। उनके बेहोश होने के बाद हम तीनों विधान को लेकर बाहर सड़क पर जा खड़े हुए और किशोर ने बाहर से कॉटेज को आग लगा दी। हमने सबूत मिटाने के लिए पुलिस का सहारा लिया लेकिन गड़बड़ तब हुई जब वहां बच्ची की लाश नही मिली। हमने इस बात को दबा दिया क्योंकि अगर हम बात को बढ़ाते तो हम मुश्किल में पढ़ सकते थे।” 

तभी प्रियांशु एक डॉक्टर के साथ आकर विधान को एक इंजेक्शन लगाता हैं। उसे कुछ होश नही था वो बस हंसता ही जा रहा था। माधवी और दीप्ति भी बेहोश हो गई थी।

अगली सुबह जब माधवी को होश आया तो वो पुलिस की घेराबंदी में थी। उसके चारों ओर पुलिस वाले खड़े हुए थे। होश आते ही उसने पहले विधान की तबियत के बारे में पूछा। अर्जुन ने बताया कि विधान इस बात पर यकीन ही नहीं कर पा रहा कि उसने अपने पिता को ही मार डाला है और अपनी माँ को मारने जा रहा था। अपने इस अपराधबोध के कारण विधान अपना मानसिक संतुलन खो चुका था। माधवी यह सुनकर दंग रह गई।

दीप्ति बाहर खड़ी हुई मुस्कुरा रही थीं। तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखते हुएकहा- “आखिर तुमने अपना बदला ले ही लिया ‘काव्यश्री सिंघानिया।’ उसने पीछे मुड़कर देखा तो अर्जुन खड़ा हुआ था। अर्जुन ने उसे अपना फोन दिया जिसमें उसके साथ उसके माता-पिता भी खड़े हुए थे। उसके माथे पर उसके पिता का बर्थ मार्क था।

उसे देखते हुए दीप्ति की आंखे नम हो गई थी। उसने कहा- “अगर उस दिन मैं खाना खाने के बाद चुपके से बाहर नहीं जाती तो यह कहानी वहीं खत्म हो गई थीं। मैं बेहोश तो हुई लेकिन मरी नहीं। उस जहर की वजह से तीन महीने तक बेहोश रहने के बाद जब मुझे होश आया तो मेरे पास एक ब्रेसलेट के अलावा और कोई पहचान नही थी जिस पर दो लॉकेट लगे हुए थे। उन में माँ पापा की तस्वीर थी।” 

“आज मैने उन्ही के सच को उनकी बर्बादी की वजह बना दिया है। जिस नाम का सहारा लेकर उन्होंने अपनी कामयाबी और झूठ का जाल फैलाया था, उनके बेटे के हाथों उसे ही हथियार बना दिया।”

“यह कत्ल तो उसने किये है लेकिन कातिल हूँ मै जिसने बिना खून किये ही अपने दुश्मनों को उनके अंजाम तक पहुंचा दिया और हाँ अर्जुन जी आपका बदला भी तो लिया है मैने। यू शुड थैंकफुल टू मी।” दीप्ति ने कहा।

“मतलब?” अर्जुन कुछ समझने की कोशिश कर रहा था। उसे याद आया कि पंचनेर केस के दौरान जिस पुलिस अधिकारी की मौत हुई थी वे और कोई उसके पिता शेखर बिष्ट थे।

इससे पहले कि अर्जुन कुछ पूछ पाता, काव्यश्री वहाँ से जा चुकी थीं। उसने देखा कि बैंच पर एक कार्ड रखा था। उसने कार्ड खोलकर देखा तो उसमें लिखाथा-‘हैप्पी मैरिज एनिवर्सरी मिस्टर अर्जुन ट्रस्ट योर रिलेशन्स विद केअर। काव्यश्री।'



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