कातिल ( हू नेवर मडर) भाग-8
कातिल ( हू नेवर मडर) भाग-8
शैलेश को मरे हुए तीन दिन बीत चुके थे लेकिन माधवी इस सदमे से बाहर नहीं निकल पा रही थीं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ब्रेन हेमरेज की बात सुनकर वो और भी ज्यादा डर गई थीं। उसे पूरा यकीन था कि शैलेश की डेथ नेचुरल तरीके से नही हुई हैं बल्कि किसी ने उसकी हत्या की है और यह वही इंसान है जिसने पुरषोत्तम को फ्लाईओवर पर बुला कर बड़े ही अजीब तरीके से उसकी हत्या कर दी थीं। उसके मन में पुरषोत्तम को लेकर एक शक भी पनप रहा था कि पुरषोत्तम ने अपने फोन में उस नम्बर को शैलेश की बजाय उस नाम से क्यों सेव किया था जो नाम उसकी जिंदगी के सबसे बड़े सच से जुड़ा हुआ था और जिसे वो अपनी जिंदगी की किताब से हमेशा के लिए मिटा चुका था।
उधर पुरषोत्तम की हत्या से जैसे उसके विरोधियों को फिर से सिर उठाने का मौका मिल गया था। सभी मीडिया के सामने आकर पुरषोत्तम के उनके साथ किये जुल्मों सितम के किस्से सुना रहे थे। कोई अपने बिजनेस की बर्बादी के लिए पुरषोत्तम को जिम्मेदार ठहरा रहा था तो कोई अपनी जिंदगी को तबाह करने के लिए पुरषोत्तम को उसके मरने के बाद भी कोस रहा था।
आर्थिक जगत में जिस पुरषोत्तम सिंघानिया का नाम कभी अपनी नेक नीयती और साफ छवि के लिए जाना जाता था, इस संसार से विदा लेने के बाद अब एक बदनाम और दूसरों की बर्बादी पर अपनी कामयाबी की इबारत लिखने वाला एक शातिर सफेदपोश लुटेरा बन चुका था।
इन सब बातों का असर कम्पनी के कामकाज के साथ साथ उसमें काम करने वाले लोगों पर भी हो रहा था। कम्पनी की अलग अलग शाखाओं में काम करने वाले सैकड़ों कर्मचारी अचानक हड़ताल करने लगे थे। कम्पनी की गिरती हुई साख देखकर उन्हें अपना भविष्य खतरे में दिखाई दे रहा था इसलिए सब अपनी नौकरी की स्थिति को लेकर कम्पनी के मालिक विधान सिंघानिया से कोई ठोस जवाब मांग रहे थे। यहीं कारण था कि मीडिया के सामने विधान को बार बार यह सफाई देनी पड़ रही थीं कि जो कुछ बातें भी पुरषोत्तम सिंघानिया के बारे मे कही जा रही हैं वे सभी बातें बेबुनियाद और मनगढ़ंत हैं। यह उन विरोधियों का षड़यंत्र है जो उनकी छवि को उनके जाने के बाद नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। साथ ही विधान ने यह भी कहा कि पुलिस इन्वेस्टिगेशन में सच सबके सामने आएगा और बहुत जल्द उनकी कम्पनी इस स्थिति से उबर कर अपनी पहचान फिर से हासिल करेगी।
ऐसी ही एक प्रेस-कॉन्फ्रेंस करने के बाद जब विधान घर पर लौटा तो उसने देखा कि एसीपी अर्जुन और प्रिया दीप्ति के साथ उसके घर पर आये हैं और माधवी के साथ बैठकर चाय पीते हुए राजनीति में आये बदलावों पर चर्चा कर रहे थे। विधान ने दरवाजे से अंदर आते हुए कहा- “अब मैं समझा कि क्यों माँ ने मुझे यहां जल्दी आने को कहा। यहां तो महफिल जमी हुई है। क्यों मिस्टर अर्जुन, आज कुछ अलग ही मूड में लग रहे है? लगता हैं आपने यह केस छोड़ने का मन बना चुके है क्योंकि कातिल को तो आप अब तक पकड़ नहीं पाए।” विधान सोफे पर बैठ चुका था।
उसकी बात सुनकर अर्जुन ने मुस्कुरा कर कहा- “देखिए मिस्टर विधान इन्वेस्टिगेशन अपनी जगह हैं और यह टेस्टी चाय अपनी जगह और रही बात यह केस छोड़ने की तो जब तक मैं कातिल को जेल की सलाखों के पीछे ना पहुंचा दूं तब तक मैं यह दुनिया को छोड़ने के मूड में नहीं हूँ केस तो बहुत दूर की बात है।”
“तो फिर आपके यहाँ पर आने की वजह तो कुछ खास होनी चाहिए। इस बार आप किसे अपना कातिल बनाने वाले हैं?, मिस दीप्ति को? विधान ने अर्जुन पर तंज कसते हुए कहा।
“मिस्टर विधान इस बार मैं किसी को कातिल बनाने नहीं बल्कि आपको आपके बारे में ही एक कहानी सुनाने आया हूँ। आई होप मैं आपकी इस स्क्रिप्ट को बिल्कुल वैसे ही सुना पाऊँ जैसे कि आपने इसे लिखा है। \"अर्जुन ने कहा और फिर पूछा- “आप मिस दीप्ति को कब से जानते हैं?”
“ढाई साल पहले से जब डैड का एक्सीडेंट हुआ था। तब मैं मिस दीप्ति से पहली बार मिला था।” विधान ने बताया।
“क्या इससे पहले आप मिस दीप्ति से कभी नहीं मिले?” अर्जुन ने कुछ तस्वीरें मेज पर रखी जो किसी ऑफिशियल पिकनिक टूर की थीं जिसमें विधान और दीप्ति एक ग्रुप में साथ खड़े थे।
दीप्ति ने उन फोटोज को हाथ में लेकर देखते हुए कहा- “ये तो आठ साल पहले की फोटोज हैं जब हमारा कॉलेज ट्रिप के लिए नैनीताल गया था। यह हमारे फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट्स की ग्रुप फोटो है लेकिन यह आपको कहाँ से मिली?” दीप्ति ने हैरान हो कर पूछा।
“आपके कॉलेज एल्बम से मिस दीप्ति लेकिन आपने बताया नहीं कि आप और मिस्टर विधान एक दूसरे को पहले से जानते है?” अर्जुन ने दीप्ति से पूछा तो उसने विधान की ओर देखा।
जब दीप्ति कुछ देर तक कुछ नहीं बोली तो अर्जुन ने प्रिया की ओर देखकर इशारों में उससे दीप्ति से सवाल करने को कहा तो उसने दीप्ति से पूछा- “क्या हुआ मिस दीप्ति? आप चुप क्यों है?”
“वो क्या हैं ना मिस प्रिया, मैंने अपने माता पिता को जब आखिरी बार देखा था तब मैं सिर्फ चार साल की थीं। एक हादसे में उनके गुजर जाने के बाद मैंने खुद को एक अनाथालय में पाया। तब मुझे समझ मे ही नही आया कि मुझे इस नये घर मे क्यों लाया गया हैं और मम्मी पापा कहाँ हैं लेकिन जैसे जैसे मैं बड़ी होती गई मुझे समझ में आने लगा था कि मै जिनका इंतजार कर रही थीं वे कभी लौट कर ही नही आने वाले और अब मुझे जिंदगीभर उनके बिना ही रहना होगा।”
“मैने धीरे-धीरे इस सच को मान लिया और जीजान से पढ़ाई में जुट गई। मेरी पढ़ाई पूरी होने से पहले ही मुझे इनके कॉलेज में स्कॉलरशिप मिल चुकी थीं। ये उस कॉलेज में मुझसे दो साल सीनियर थे। हमने एक दूसरे को देखा जरूर था लेकिन हमारे बीच हाय हैलो से ज्यादा कभी कोई और बात नहीं हुई। इस फोटो में भी हम साथ इसलिए हैं क्योंकि उस समय इन्हें हमारे ग्रुप का लीडर बनाया गया था। मेरा फर्स्ट ईयर पूरा होते ही इनका कॉलेज खत्म हुआ और उसके बाद मुझे इनके बारे में कोई खबर नही मिली।”
अभी दीप्ति अपनी बात कह ही रही थीं कि माधवी जी के सिर में दर्द होने लगा और वे उठकर अपने कमरे मे चली गईं। अर्जुन को यह बात कुछ अजीब लगी लेकिन उसने नजरअंदाज कर दिया क्योंकि उसका ध्यान दीप्ति की बातों में था। उसने दीप्ति से कहा- “यह सब तो हमें आपके कॉलेज से पता चल गया है लेकिन आपने अभी तक हमारे सवाल का जवाब नहीं दिया। आखिर आप दोनों में से किसी ने हमें सच क्यों नहीं बताया?”
दीप्ति ने आगे बताया- “आज से लगभग ढाई साल पहले पुरषोत्तम सर के एक्सीडेंट से कुछ दिन पहले ही मैं इस शहर मे नौकरी की तलाश में आई तो एक दिन अचानक ही इनसे मुलाकात हो गई। फिर इन्होंने मुझे उसी जॉब इंटरव्यू के बारे में बताया था जिस दिन पुरषोत्तम सर का एक्सीडेंट हुआ था। मुझे नही पता था कि जिनको मैने बचाया हैं वो और कोई नहीं बल्कि इनके ही डैड हैं। जब इनसे हॉस्पिटल में मुलाकात हुई तब मुझे सच का पता चला और तब हमने तय किया कि हमारी जान-पहचान मीडिया के सामने नहीं आना चाहिए वरना बात का बतंगड़ होने में टाइम नहीं लगेगा और हमारी लाइफ में और मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।” दीप्ति ने बात खत्म की।
विधान जो अब तक चुपचाप बैठकर पूरी कहानी सुन रहा था, अर्जुन की ओर देखते हुए बोला- “क्यों एसीपी अर्जुन क्या आप भी यही कहानी सुनाने वाले थे?”
“नही मै आपको इस कहानी के वो किस्से सुनाऊंगा जो आपके अलावा शायद सिर्फ मैं जानता हूँ।” अर्जुन ने कहा
“अच्छा तो देर किस बात की? चलिये शुरू कीजिए। आखिर हमें भी तो पता चले कि आप हमारे कितने राजदार हैं।” विधान ने कहा
अर्जुन ने दीप्ति से पूछा- “क्या आपको याद हैं मिस दीप्ति, आपके कॉलेज के फर्स्ट ईयर में एक लड़का जो आपको परेशान करता था अचानक एक दिन कॉलेज छोड़ देता हैं?”
“हाँ सर उसे मैं कैसे भूल सकती हूँ। जब से मैने उस कॉलेज में कदम रखा था, तभी से वह मेरे पीछे पड़ा हुआ था फिर एक दिन अचानक उसने कॉलेज छोड़ दिया। शायद उसे अपनी गलती का एहसास हुआ होगा।” दीप्ति ने अफसोस जताया।
“यह आपकी सबसे बड़ी गलतफहमी हैं मिस दीप्ति। उस लड़के ने कॉलेज अपनी मर्जी से नहीं बल्कि विधान के धमकी देने पर छोड़ा था।”अर्जुन ने दीप्ति के सामने खुलासा किया।
“व्हाट? डू यू नो एसीपी अर्जुन आप क्या कह रहे है? इन्होंने उस लड़के को धमकी दी लेकिन क्यों? ये ऐसा क्यों करेंगे?” दीप्ति ने तेज आवाज में पूछा। अर्जुन की बात सुनकर वो हैरान थीं।
“क्योंकि ये आपको परेशान नही देख सकते थे। आपसे प्यार जो करते थे मिस्टर विधान या कहूँ कि अब भी करते है। क्यों मिस्टर विधान मैं कोई गलती तो नहीं कर रहा आपकी कहानी के किस्से सुनाने में?” अर्जुन ने विधान की ओर देखा जो शांत होकर अर्जुन की बातें सुन रहा था।
दीप्ति जो इन सब बातों पर यकीन नहीं कर पा रही थी, ने अर्जुन से पूछा- “जो आप कह रहे हैं, क्या वाकई में सच है?”
“जी मिस दीप्ति यह सभी बातें बिल्कुल सच है। आपको अपने करीब रखने के लिए यह कुछ भी कर सकते है। कॉलेज से जाने के बाद भी इन्होंने आप पर अपनी नजर बनाये रखी। फिर तीन साल पहले जैसे ही इन्हें पता चला कि आप इनके शहर में नौकरी ढूंढने के लिए आने वाली हैं वैसे ही इन्होंने अपना प्लान एग्जीक्यूट करना शुरू कर दिया।”
“इन्होंने अपने डैड के दिमाग में यह बात डाल दी कि मिस्टर रॉय को फंसाने के लिए एक्सीडेंट का नाटक करने का इससे अच्छा मौका नहीं है। इसके बाद ये जानबूझकर आपसे कुछ दिन पहले टकराये और एक ऐसे जॉब इंटरव्यू के बारे मे बताया जो कभी होना ही नहीं था। और फिर आपको उसी रास्ते पर भेजा जहां मिस्टर पुरषोत्तम सिंघानिया का एक्सीडेंट हुआ था ताकि आप उनकी जान बचाकर उनके मन में अपने लिए विश्वास जमा सके क्योंकि वे किसी ऐसी लड़की को अपनी बहू नही मानेंगे जो एक अनाथ हो और उसके परिवार का कुछ अता पता ना हो। इसलिए उन्होंने आपको वहाँ जानबूझकर अपने पिता का रक्षक बना कर भेजा। उसके बाद जो कुछ हुआ आप जानती हैं मिस दीप्ति।” अर्जुन ने परत दर परत षडयंत्र दीप्ति के सामने खोलकर रख दिया।
“इसका मतलब यह हैं कि जो कुछ भी न्यूज चैनल्स पर दिखाया जा रहा है और लोग जो कुछ भी कह रहे हैं वे सभी बातें सच है?” दीप्ति गुस्से में विधान की ओर देख रही थी।
“जी मिस दीप्ति लेकिन आप भी तो अपनी मर्जी से मिस्टर सिंघानिया के लिए जासूसी करने का काम करती थीं तब आपको कुछ गलत नहीं लगा?” प्रिया ने पूछा।
“नही सर मैं तो कम्पनियों के बीच चल रहे डिफेरेंसेस को दूर करने के वहां के अधिकारियों से बतौर सिंघानिया ग्रुप की प्रतिनिधि बन कर उनसे मिलने जाती थीं। विधान ने मुझसे तो यही कहा था। इसलिए मैंने इनकी मदद करने के लिए इनका साथ दिया। अगर मुझे जरा सा भी अंदाजा होता कि यह सब एक साजिश है दूसरों की जिंदगी तबाह करने के लिए तो मैं इनकी मदद कभी नहीं करती।” दीप्ति रुआँसी हो गई।
“जो इंसान आपको अपने करीब रखने के लिए अपने बरसो पुराने वफादार ड्राइवर उर्फ जासूस को अपाहिज कर सकता है वो आपको अपनी कम्पनी में रखने के लिए आपसे एक छोटा सा झूठ तो बोल ही सकता है। क्यों मिस्टर विधान आज आप कुछ नही बोल रहे। क्या मुझसे कही कुछ छूट गया है?” अर्जुन ने विधान की ओर देखा।
“आपकी बात बिल्कुल सही है लेकिन अफसोस आपके पास कोई सबूत नही है इसे सच साबित करने के लिए।” विधान ने अर्जुन की आंखों में देखते हुए कहा।
“वो क्या है ना मिस्टर विधान आप जैसे मुजरिमों का यही ओवर कॉन्फिडेंस उन्हें एक दिन ले डूबता हैं। डोंट वरी तुम्हारे डूबने का इंतजाम मैं खुद करूँगा।” अर्जुन ने कहा और प्रिया के साथ बाहर निकल आया। दीप्ति भी रोते हुए अपने घर जाने के लिए निकल पड़ती हैं।
जीप में अर्जुन और प्रिया अपने घर जा रहे थे। प्रिया के दिमाग में उथलपुथल मची हुई थी। उसने अर्जुन से कहा- “इस विधान के दिमाग मे चल क्या रहा हैं जो यह बिल्कुल आसानी से अपने हर गुनाह को खुद ही सामने लाता जा रहा है। उसे लगता है कि उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलेगा।”
“नहीं बात कुछ और ही है जो हमें नजर नहीं आ रही। उसने कभी हमसे कुछ छिपाने की कोशिश नही की। सब कुछ हमारे सामने खोलकर रख दिया जैसे वो इसी के इंतजार में था। उसकी अकड़ उसका गुस्सा सब कुछ एक दिखावा हैं। यह बात तो कुछ और ही है।” अर्जुन ने अपना शक जाहिर किया।
हाँ कुछ बात तो है जो हमसे छुपाई जा रही हैं। मैने माधवी को कभी भी विधान का सपोर्ट करते नहीं देखा। जब भी हम उनके घर पर विधान के साथ थे, माधवी ने किसी बात पर कोई रिएक्ट नही किया जबकि शैलेश के साथ उसने के.के. शर्मा के बारे मे रिएक्ट किया था। उसकी डेथ के समय भी उसने के.के शर्मा के नाम पर कुछ रिएक्शन दिया था लेकिन बाद में सच छुपा लिया था लेकिन ये के.के शर्मा है कौन?” प्रिया ने सिर पर हाथ मारा।
“इन लोगों की हिस्ट्री पंचनेर विला की मिस्ट्री में छुपी हैं।” अर्जुन ने कहा तो प्रिया को हँसी आ गई। तुमने प्रियांशु की बात को कुछ ज्यादा ही सीरियसली ले लिया। वो तो तीन साल पहले की बात है। तुम्हें तो हमारी मिस्ट्री के बारे में सोचना चाहिए। आखिरकार तुम हमारी रिलेशनशिप कब अनाउंस करोगे? मुझे मिस प्रिया सुनना पसंद नहीं है।” प्रिया ने अर्जुन को देखते हुए कहा।
“बहुत जल्द लेकिन फिलहाल घर चलते है। बहुत थक गया हूँ।” अर्जुन ने कहा और जीप घर की ओर दौड़ा दी।
उधर दीप्ति ने अपना रेजिग्नेशन कम्पनी को मेल किया और लेपटॉप बंद करके लिविंग रूम में आ गई। उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान आ गई और उसने कॉफी का घूंट लेते हुए कहा- “यू आर गोइंग वैल एसीपी अर्जुन। \" और फिर दीवार पर टंगे हुए केलेंडर पर एक तारीख पर क्रॉस लगाते हुए कहती हैं- “बस दो दिन और।”
उधर विधान भी दीप्ति का रेजिग्नेशन अपने लेपटॉप पर देखकर मुस्कराया और बोला- “बस दो दिन और।”