कासिम
कासिम
कासिम एक मजदूर हैं,हाँ वही कासिम जो पेट पालने के लिये मेहनत करता हैं,कभी हिचकता नहीं काहे कि कासिम पाँच समय का नमाजी भी हैं,वह खुदा का फरमादार है ,पर कासिम को शाम का खौफ खा जाता है वह सोचता है जब शाम को घर पहुँचेगा तो कोई भूखा ना सोये कुछ कर नहीं पाता हैं जब उसको मजदूरी नहीं मिलती तो बडा परेशान हे जाता कैसे अपने बालको का पेच पालेगा अबबू इस उमर में.भूखे सोये यह.मुमकिन नहीं है अपनी बेगम को तो आदत है पानी पी कर सोने की पर ,खुद को तो बुरा लगता है खुदा कभी भी माफ नहीं करेगा यह सोच कर ही दिल दहल जाता है रसूलेपाक दूसरे को भूखा रखना नहीं सहन करते यह तो हो गयी कासिम के मन की बात अब बेगम भी परेशान है कैसे मदत करूँ अपने शौहर की आमदनी का कोइ जरिया नहीं उपर से चार बालक ना पढ़ाई ना लिखाई तन के कपड़े भी नहीं बड़ी मुसीबत है कभी मन होता है जहर दे कर मार डालूँ पर ऐसा मुमकिन नही हैं जब किसी को जिंदगी नहीं दे सकते मार कैसे सकते है,इसी उधेड बुन में नमाज पढ़ने बैठ गयी नमाज पढ़ते ही लगा कुछ जैसे राह मिल गयी अरे कुछ कसीदेकारी के नमूने पड़े थे लेकर बाजार में दीदी के दिखाया और बढ़िया ऑर्डर भी मिला कुछ एडवांस लेकर खुशी खुशी थोड़ा सामान ले आयी आज कासिम को भी मजदूरी मिली यह होता है उपरवाले पर भरोसा करने का नतीजा ,वह सबको राह दिखाते है बस भरोसा करवा होता हैं,आज बस यही कहना चाहते की मेहनत का फल हमेशा मीठा ही होता है।