Shalini Prakash

Romance Tragedy

4.7  

Shalini Prakash

Romance Tragedy

काश

काश

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कभी कभी हम जिसे बहुत ज्यादा चाहते हैं उससे हम खुद ही अपने से दूर कर देते हैं। और फिर खुद को उसकी यादों में जलाते हैं। ऐसे ही मैं अनिरुद्ध , मैं अपनी जिंदगी बहुत सी यादों और बहुत से काश के बीच बीता रहा हूँ। इनमें से कुछ काश मेरी जिंदगी के ऐसे मोड़ हैं जहाँ से मैं मुड़ तो गया पर मन का एक कोना आज भी वही मोड़ पर अटका है। हम सभी शायद ऐसे ही हैं, आप भी कहते ही होंगे, कि काश ऐसा होता काश वैसा होता। पर होता वही है जो होना होता हैं। | ये काश ना हकीकत में बदलता है, ना कभी मैं अपने किये के अफ़सोस से उबर पाया हूँ। वो कभी कभी लगता है ना जैसे गले में कुछ फंसा है और कितना भी पानी पी लो निकलता ही नहीं है, पिछले २० सालों से मेरे भी जेहन में कुछ अटका हुआ है। जो निकल नहीं पाया है। 

उसका नाम सुमन था। कितना सही नाम रखा था उसकी माँ ने। वो जहाँ भी जाती उस जगह को मनमोहक बना देती। उसके उस जगह से हटने के बाद भी उसकी खुशबू से वो जगह महकती रहती। जैसा नाम वैसा ही उसका चेहरा। ऐसा जो एक बार देख ले उसे भूल नहीं सकता। जब से मैंने उसे पहली बार देखा था तब से वो मेरे जहन में समायी हुई थी। 

हमारी कहानी की शुरुआत देखो तो एक आम कॉलेज लव स्टोरी जैसी। कालेज का पहला दिन था और वो मुझे क्लास के दरवाज़े पर खड़ी अपनी दोस्त से बातें करती दिखी। पहली नज़र में ही मेरा दिल उसका हो गया। मैंने नज़रें टिका कर उसे देखा और उसने नज़रे चुरा के। एक ही पल में ऐसा लगा सब कुछ मिल गया और कुछ खो गया।

हम कॉलेज जाने वाले लड़कों के लिए अक्सर लोगों के मन में गलत धारणा बनी हुई होती है , और मेरे लिए भी बनी। उसकी एक सहेली ने मेरे बगल से निकलते हुए छिछोरा कहा। कहाँ मैं स्कूल तक एक सीधा-साधा पढ़ाकू छात्र, कालेज में कदम रखते ही छिछोरा बन गया।मुझे यह बात बेहद चुभ गई, बस मैंने सोचा ये कहानी यही ख़तम। उसके बाद मैंने ये प्रण किया कि चाहे जो हो जाये मैं उससे बात नहीं करूँगा। ऐसा क्या हुआ जो मुझे उसने इस अजीब नाम से बुलाया। अच्छी तो वो अब भी लगती थी पर क्या करें आत्मसम्मान भी कोई चीज होती है ?

समय बीतता गया। नियमित कक्षाएँ शुरू हो गई। पढ़ने में मैं हमेशा में ही अच्छा रहा, तो सारे शिक्षक मुझे पसंद करते। उनके लगभग सभी सवालों का जवाब मेरे पास होता। सारे विद्यार्थियों में मेरी अच्छी पहचान बन गई। सब मेरे पास पढाई में होने वाली समस्याओं के निवारण के लिए आने लगे। एक दिन वो भी आई। केमेस्ट्री की क्लास के बाद मेरे पास आ कर हिचकिचाते हुए बोली " हाई अनिरुद्ध ! मैं सुमन " मैंने भी जानबूझ कर बिजी होने का नाटक करते हुए अपनी किताब में ही देखते हुए उसकी हाई का जवाब दिया। फिर वो बोली " लगता है बिजी हो ? ज्यादा समय नहीं लूंगी। बस दो मिनट। " मैंने उसकी तरफ देखा वो आज सफ़ेद रंग की ड्रेस में कितनी सुन्दर लग रही थी। जी चाह रहा था नज़रें हटाऊँ ही नहीं। पर फिर वही पहला दिन याद् आ गया और नज़रें नीची कर ली। कहा " बोलो "। सुमन ने कहना शुरु किया "मुझे तुम्हारी मदद चाहिए , मैं कुछ दिनों के लिए अपने गांव जा रही हूँ। तो प्लीज मुझसे अपने नोट्स शेयर कर दोगे।" मैंने कहा " ठीक है। कितने दिनों के लिए जा रही हो ?" उसने कहा "एक सप्ताह। " मैंने कहा "ओके दे दूंगा।" 

इतना कह कर वो चली गई। मैंने सोचा इम्प्रैशन बनाने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा। उस ये पूरे सप्ताह मैंने दुगने मन से पढ़ाई की, आखिर इम्प्रेशन का जो सवाल था। नोट्स भी दुगने सलीके से बनाये। वो वापस आ गई , आते ही उसकी नज़रें मुझे तलाशने लगी। मैंने नोटिस तो किया पर अनजान बना रहा। वो ढूंढते हुए मेरे पास आई और मैंने उसको नोट्स दे दिए। फिर ऐसे ही कभी नोट्स, तो कभी क्लास की कोई समस्या को लेकर हमारे बीच में बातें होने लगी। और धीरे धीरे ये बातें दोस्ती और कॉलेज के अंत तक ये दोस्ती प्यार में बदल गई। 

कॉलेज के आखिरी साल में ही हम दोनों की नौकरी लग गई थी, सो कॉलेज के तुरन्त बाद हमने ऑफिस ज्वाइन कर लिया। हम रोज ऑफिस के बाद मिलते और घंटों बातें करते। अपने भविष्य के सपने सजाते। देखते देखते एक साल बीत गया। त्यौहार का समय आ गया था, इस साल सोचा जब घर जाऊँगा तो पिता जी से सुमन बारे में बात कर लूंगा। सपने सजाते हुए जाने का दिन भी आ गया और दोनों ने एक दूसरे से स्टेशन पर विदा ले, अपने अपने गन्तव्य की ओर बढ़ चले। सारे रास्ते मैं पिताजी से कैसे और क्या बात करूँगा यही सोचता रहा।  

जैसे ही घर पहुंचा दरवाजे पर बिंदु को देखा। बिंदु मेरे चाचा की बेटी, घर में सबसे छोटी और सब से लाड़ली। अभी २ साल पहले ही उसकी शादी हुई थी। मुझे देखते ही वो दौड़ कर गले लग गई और जोर-जोर से रोने लगी। मुझे लगा दिनों बाद मिले हैं इसलिए रो रही है। उसको शांत करवाया और भीतर ले गया। घर के अंदर का माहौल ग़मगीन दिखा। माँ ,चाची दोनों ही रोने लगी। मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैं पिताजी से मिला उन्होंने बताया कि बिन्दु का उसके पति से तलाक हो गया। बिन्दु ने अपनी पसंद के लड़के से प्रेम विवाह किया था। मेरे पिता जी प्रेम विवाह के सख़्त खिलाफ थे, पर मैंने ही उन्हें समझा बुझा कर विवाह के राज़ी किया था। पिताजी ने मुझसे कहा "देखा बड़ों की बात ना मानने का नतीजा, पूरे गाव् के सामने हमारी कितनी बदनामी हुई| ये सब ना भी सोचो तो देखो बेचारी बिन्दु को कितनी परेशान और दुःखी है। आज परिवार की मर्जी से शादी की होती तो ऐसा कुछ नहीं होता।" 

मन आया कि बोलूं पिताजी से की आपका सम्बन्धों की अटूटा मापने का ये कौन सा पैमाना है ? पर मौके की नज़ाकत को देख मैंने चुप रहना उचित समझा। मेरे जेहन अब बार बार मुझे सुमन का ही ख्याल आ रहा था। दिल सोच रहा था कि कैसे पिताजी को उसके बारे में बताऊंगा। तब तक पिताजी ने मुझे एक और फैसला सुनाया "अब तुम लोगों ने बहुत अपने मन की कर ली, अब इस घर में वही होगा जो मैं कहूँगा। अनिरुद्ध, मेरे एक मित्र हैं उनका बेटा है वो बिंदु से शादी करने को तैयार है पर उनका कहना है कि ये तभी होगा जब तुम उनकी बेटी लता से विवाह कर लो। और मैंने हाँ कर दी उन्हें। मुझे पता है कि अपनी छोटी बहन इतना तो कर ही सकते हो। " 

पिता जी इस ऐलान ने मेरे सारे सपनों को एक ही झटके में तोड़ दिया। क्या करूँ कुछ समझ नहीं आया। बिलकुल उलझ गया मैं इस परिस्थिति में। जहाँ से निकलने रास्ता नहीं दिख रहा था। एक ओर बिन्दू और दूसरी ओर सुमन। पिताजी के एक फैसले ने मुझे अजीब दो राहे पर ला कर खड़ा कर दिया था। मैं बिना कुछ बोले बाहर गया। बाहर बिन्दू बैठ थी उसके उदास चेहरे को देख कर लगा की पिताजी का सोचना गलत नहीं है। इतना तो कर ही सकता हूँ मैं अपनी बहन के लिए। 

उस रात मैंने दो खत लिखे एक सुमन को और दूसरा अपने ऑफिस में तबादले के लिए , क्यूंकि मैं सुमन का अब सामना नहीं कर सकता था। 

कुछ दिन में सुमन ने खत के जवाब आया उसमे बस दो शब्द लिखे थे "ठीक है।"

कुछ दिनों में मेरा और लता का विवाह हो गया। वो बहुत ही सुघड़ और समझदार थी। आते ही उसने घर में सबके दिलों में जगह बना ली। कुछ दिनों तक अनमना रहा। पर नियति का यही फैसला है मान कर मैं भी धीरे धीरे अपने परिवार में रम गया। सालों बीत गए। 

आज २० साल हो गए। वही त्योहारों का समय है। ऑफिस के काम से मुझे शहर जाना था। मैं जल्दी जल्दी स्टेशन पंहुचा। पता चला ट्रेन २ घंटे लेट है। मैं वही प्लेटफार्म की बेंच पर बैठ गया। अचानक मेरी नज़र सामने पड़ी , सुमन ! हाँ ये सुमन ही है। मैं जोश में आ गया और उसे आवाज लगाई| अपना नाम सुनकर उसने मेरी तरफ देखा। उसने सफ़ेद साडी पहनी हुई थी और बहुत ही सुन्दर दिख रही थी। ऐसा लगा जैसे उसके लिए वक़्त आज भी वही ठहरा है जहाँ था। बिल्कुल पुरानी सुमन।उसने मुझे पहचान लिया। वो मेरी तरफ आई। मुझे हाई कहा और बगल में बैठ गई। 

आज बहुत सालों बाद उसे देखा, मन में सवाल बहुत से थे पर पूछने की हिम्मत ना जुटा सका| बस इतना ही पूछा कि "शादी नहीं की तुमने "। उसने नम आखों से मेरी तरफ देखा और मौन रहते हुए अपने पर्स में कुछ ढूंढने लगी। एक कागज निकाल कर मेरी ओर बढ़ा दिया और कहा "शायद इसी दिन के इंतजार में हमेशा इसे साथ रखती हूँ "। उसपर कुछ लिखा था, मैं पढ़ने लगा।  

"मेरी जिंदगी का एक कतरा तुम्हारे साथ बह गया,

वक़्त बीत गया और तुमको मुझसे दूर ले गया।

सोचा था कि मांगूगी हिसाब बीते वक़्त से,

पर वो टुकड़ा टुकड़ा करके मुझे यादों का हार दे गया।

लगाए फिरती हूं उस हार को अपने सीने से आज भी,

उन यादों की खुशबू में मुझे जीने का साथ मिल गया।"

मेरी आँखें नम हो गई। ना अब कुछ सवाल थे, न कोई जवाब की जरूरत। सुमन की पूरी जिंदगी उन ६ पक्तियों में सिमट गई थी। भीगे आँखों से हमने एक दूसरे को हाथ हिला कर विदा किया। और मुझे मेरे काश ने फिर से झकझोर दिया। काश मैंने हिम्मत जुटाई होती। 


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