Shalini Prakash

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5.0  

Shalini Prakash

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परिवर्तन

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आज किनारे पर बैठी दूर क्षितिज में डूबते सूरज को देखा | सारा आसमान जैसे सूरज की लालिमा में डूबा था , उसके रंग में ही रंग गया था | धीरे - धीरे सूरज डूबता जा रहा था और आसमान से उसका साथ छूटता जा रहा था | देख कर लगा की रोक लूँ सूरज को | पर सूरज ढल गया, उसके साथ के एहसास में आसमान अभी भी रंगा हुआ था | कुछ समय और बीता, आसमान का रंग बदलने लगा | उसे रात ने अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया | आसमान से सारी लालिमा गुम हो गई और एक काली चादर ने पूरे आसमान को ढक लिया | तभी एक नन्हा सितारा दूर टिमटिमाता, उस काली चादर में टँगा दिखा | जैसे- जैसे रात का साया गहराया आसमान को चाँद और अनेकों सितारों ने ढक लिया | देख कर लगा ही नहीं कि कुछ घंटों पहले यह नीला आसमान था | 

कुदरत के इस नज़ारे को देख कर लगा, लोग सही कहते हैं "परिवर्तन ही संसार का नियम है |"



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