एक कहानी मेरी भी...
एक कहानी मेरी भी...
हेल्लो दोस्तों, मैं नीलिमा आपके जैसे ही एक आम लड़की, अब लड़की कहना कुछ गलत लगेगा, एक आम औरत, जैसे आप या आपके पड़ोस में रहने वाली, वही जो सुबह सुबह उठती है घर के काम निपटती है, बच्चों को स्कूल भेजती है, खुद ऑफिस जाती है, वापस आ कर फिर से काम में लग जाती है।बस यूँ ही एक से दूसरा दिन बीतता है उसकी जिंदगी का. पर आज सुबह कुछ ऐसा हुआ जिसने मेरी भागती जिंदगी को थोड़ी देर के लिए रोक दिया, और मुझे अपने पुराने दिनों की याद दिला गया।
आज सुबह सुबह ऑफिस से एक मेल आया, मेल में लिखा था मुझे इंडिया जाना है एक सप्ताह के लिए कुछ मीटिंग के सिलसिले में, इंडिया मेरा घर, मेरा वतन, जिससे मैं सालो पहले छोड़ आई थी कभी न वापस जाने के लिए। वहाँ तुम भी थे, तुम जो कभी मेरे सब कुछ थे।
मुझे आज भी वहाँ की वो आखिरी शाम याद है, कुछ अजीब सी, कितना दर्द लिए मैंने अपना घर छोड़ा था। मुझे तुमसे दूर जाते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा था पर फिर भी जाना तो था। ये हमारी नियति ही थी जो कि एक दूसरे को इतना चाहते हुए भी हम अलग हो गए गलती शायद किसी की नहीं थी बस वक़्त का तकाजा था जो तुमको मुझसे दूर बहुत दूर ले गया।
मैं बैठी सोचने लगी, गुजरा हुआ वक़्त जैसे एक फिल्म की तरह मेरी आँखों के सामने चलने लगा,एक दम शुरुआत से, वो दिन हमारी पहली मुलाकात, जब तुम्हे पहली बार देखा था कुछ अजीब सी कशिश थी तुम्हारी आँखों में, तुम्हें देखते ही ऐसा लगा कि तुम्हारी हो गई.सोच कर ही फ़िल्मी लगता है पर कुछ ऐसा सा जादू था तुम्हारा जो एक झटके में मेरे दिल को अपने काबू में कर गए। वो दिल आज भी धड़कता तो है पर धडकन पर तुम्हारे बाद किसी का नाम नहीं लिख पाई, लगता है आज भी वो तुम्हारे ही इंतजार में हैं।
करीब १५ साल पहले की बात है कॉलेज पास करने के बाद आँखों में सुनहरे भविष्य के सपने लिए मैं मुंबई आई, नयी जगह नए लोग, पहला दिन ऑफिस का, हम सभी नए ऑफिस ज्वाइन करने वाले मीटिंग रूम में बैठे थे, कुछ आपस में बात कर रहे थे कुछ मेरी तरह चुपचाप बैठे सब को देख रहे थे, तभी तुम कमरे में आये अचानक कमरे में ख़ामोशी छा गई। मैं सबसे आगे की सीट पर बैठी थी। कॉलेज की आदत गई नहीं थी सब एक साथ खड़े हो गए, तुमने मुस्कुरा कर सब की तरफ एक नज़र डाली और सबको गुड मॉर्निंग कहा और आज का क्या क्या शिड्यूल है बताने लगे, पता नहीं मुझे क्या हुआ तुम्हे देखा और बस देखती ही रह गई, तुमने क्या बोला मैंने कुछ भी नहीं सुना, सब समझाने के बाद तुमने पूछा एनी डॉऊट्स तब मेरी तंत्रा टूटी।
उसने मुझसे मुखातिब होकर बोला "कैन यू आल इंट्रड्यूश योरसेल्फ वन बाय वन". मैंने घबरते हुए उसकी ओर देखा हमारी नज़रे मिलते ही मेरी नज़रें झुक गई, नज़रे निची किये हुए ही मैंने अपना इंट्रो दे दिया, उसने एक के बाद एक सबका इंट्रो सुना और आल द बेस्ट बोल कर चला गया, मेरी नज़रें सारा दिन उससे ढूंढती रही, वो नहीं दिखा, कुछ उदास सी हो गई मैं, फिर ये सोच कर मन को समझा लिया की जायेगा कहाँ है काम तो यही करता है मिलेगा ही इतना सोच कर खुश हो गई.इतना की चेहरे पर एक मुस्कुराहट छा गई।
एक के बाद एक दिन बीतते गए और आज इंडक्शन का लास्ट डे था और हमें प्रोजेक्ट मिलने थे. इन ५ दिनों में उसकी एक झलक भी नहीं मिली। अचानक वो कमरे में आया, मुझे लगा जैसे तेज बारिश के बाद सूरज निकल आया, मैं खुश हो गई और ख़ुशी और बढ़ गई जब पता चला की मैं उसके ही टीम में हूँ।
अब तो रोज का मिलना था क्यूंकि काम जो साथ में था, जितना मै उसको जानती गई उतना ही उसकी ओर खींचती गई, कभी कभी तो होता यूँ था वो पूरी बात बोल जाता था और ऐसा खोई हुई होती कि मुझे पता ही नहीं होता की उसने बोला क्या, मुझे ऐसा देख वो बस मुस्करा कर रह जाता, कई बार उसने मेरी चोरी पकड़ी, कभी मुझे लगता की वो भी मुझे पसंद करता है, कभी लगता की ये बस मेरा वहम है वो तो सब के साथ ऐसा ही है केयरिंग, अंडरस्टैंडिंग, बस इसी कस्मकस से गुजरते हुए १ साल बीत गए, अब हमारी अच्छी दोस्ती हो गई थी, वो सुबह ऑफिस आते ही सबसे पहले मुझे कॉल लगता और गुड मॉर्निंग विश करता, कुछ चीजें उसकी आज भी मेरी आदतों में शामिल है जैसे गुड मॉर्निंग करना, आज भी जिससे भी मेरी सुबह मुलाकात होती है मैं उसको विश जरूर करती हूँ, इसी बहाने तुम्हे याद जो कर लेती हूँ।
दिन बीता और धीरे-धीरे हम और भी करीब आ गए, ना तुमने कभी मुझे कहा की तुम मुझे चाहते हो ना कभी मैं हिम्मत कर पाई, एक दिन अचानक वो दिन भी आ गया जो नहीं आना चाहिए था, मेरा प्रोजेक्ट और लोकेशन दोनों बदल दिए गए, मैं उससे दूर हो गई , सोचा कोई बात नहीं कहीं किसी दिन उसको भी मेरी कमी खले तो कहीं वो मुझे और मेरे प्यार को समझ जाये। एक रात मै सोने जा रही थी अचानक मोबाइल की घंटी बजी, इतनी रात में कौन होगा? सोचते हुए नंबर देखा कोई अनजान नंबर था कॉल रिसीव किया उधर से आवाज आई " हेलो". आवाज सुनते ही दिल जोर जोर से धरकने लगा, मैंने जानबूझ कर अनजान बनकर पूछा " कौन", उधर से आवाज आई इतने से दिन में ही मेरी आवाज भूल गई " मैं बोल रहा हूँ " फिर कहा " सोचा आपके पास टाइम नहीं है तो हम हीं आपको डिसट्रब कर ले " फिर बहुत सारे गीले शिक़वे हुए, और बहुत सी बातें हुई, फिर अचानक से उसने मुझसे पूछा " तुमने मुझे मिस किया " मैंने कहाँ "हाँ किया " उसने कहा " क्यों तुम क्या अपने सभी दोस्तों को ऐसे ही मिस करती हो"मैंने कहा "हाँ".
तो क्या हम आपके लिए ख़ास नहीं हैं? मैं चुप हो गई, चाह तो रही थी कहूँ कि तुम्हारे सा कोई ख़ास नहीं है, पर पता नहीं क्या हुआ जुबान से कुछ ना निकला, कुछ देर दोनों ओर ख़ामोशी रही, फिर उसने बोला " बुरा मान गई क्या? अरे मैं तो तुम्हे अपने आप से भी ज्यादा ख़ास मानता हूँ, और मुझे बात घूमा कर बोलने की आदत नहीं है जो मेरे दिल में है वो ही जुबान पर। ऐसे ही बातें करते हुए सारी रात बीत गई , जब सुबह हुई तब हमारा ध्यान गया की हम तो सारी रात बातें करते रह गए। हमने एक दूसरे को बाय बोला और ऑफिस के लिए तैयार होने लगी। पहली बार अच्छे से तैयार होने का मन हो रहा था। अलमारी में कोई ड्रेस अच्छी नहीं लगी। क्या पहनू? कुछ समझ नहीं आ रहा। फिर जैसे तैसे एक ड्रेस पसंद की और तैयार हो गई। जैसे ही ऑफिस पहुंची मेरी साथ काम करने वाली एक मेरी मित्र ने पूछा "आज कुछ ख़ास है क्या? बहुत अच्छी लग रही हो " मैं बस मुस्करा कर रह गई,उससे क्या समझाती की क्या खास हैं। मेरी पूरी दुनिया ही बदल गई थी, बस उस एक फ़ोन कॉल से। मैं बेसब्री से लंच टाइम का इंतजार कर रही थी, और वक़्त जैसे थम सा गया था गुजर ही नहीं रहा था। जैस ही लंच टाइम हुआ मैंने अपनी सहयोगी से कहा की आज क्यों न हम बगल वाली बिल्डिंग में लंच करने चलें। उसने फिर पूछा कोई खास बात, मैंने कहा " आज वहां की पाव - भाजी खाने का मन हो रहा है ".धड़कते दिल से मैं वहां पहुंची सोचा वो जब लंच करने आएगा मुझे देख सरप्राइज हो जायेगा, मैंने अपना लंच लिया और खाने लगी पर मेरी नज़रें उसी को ढूंढ़ रही थी वो वहाँ नहीं था मैं धीरे-धीरे खा यही थी असल में मैं उसके आने का इंतजार कर रही थी,अचानक मेरी सहयोगी ने कहा " जल्दी खा मेरी मीटिंग है आधे घंटे में " मन मार कर मैंने जल्दी-जल्दी खाना ख़त्म किया और हम वापस अपनी बिल्डिंग में आ गए बेचारी मैं, एक प्लान बनाया वो भी फेल हो गया। मेरा सारा अच्छे से तैयार होना गया, मुझे अपने पर ही गुस्सा आ रहा था। बहुत सरप्राइज देने जा रही थी मुझे ही सरप्राइज मिल गया। सोच रही थी की एक मैसेज ही कर देती उसको क्यों नहीं किया मैंने ऐसा, अब तो जा भी नहीं सकती थी क्यूंकि एक के बाद एक शाम तक मीटिंग्स थी , काम में मन ही नहीं लग रहा था। पर क्या करें नौकरी की है तो काम तो करना ही हैं। शाम में जैसे ही फ्री हुई उसको मैसेज किया कि क्या कर रह है वो ? पर कोई जवाब नहीं आया, गुस्स्सा आया मुझे मैं उठी और घर वापस आ गई।
रात में फ़ोन की घंटी बजी उसी का फ़ोन था गुस्से में मैंने फ़ोन काट दिया फिर मैंने सोचा मैं गुस्सा क्यों हूँ उससे मैंने तो उससे उसे बताया भी नहीं था की मैं उसके कैफेटेरिया में जा रही हूँ , उसे सपने तो नहीं आ जायेंगे मेरे बिना बताये यही सब सोच कर फ़ोन उठा लिया और उसको कॉल करने ही जा रही थी की फिर से उसका कॉल आ गया मैंने फ़ोन उठाते ही पूछा "कहाँ थे सारा दिन" उधर से आवाज आई यहीं था। आज घर पर ही था ऑफिस नहीं गया। मेरे एक मित्र का एक्सीडेंट हो गया था तो सारा दिन बस उसी में लगा रहा इतना सुनते ही मेरा सारा गुस्सा हवा हो गया। उसके दोस्त की खैरियत पूछी और फिर इधर उधर की बातें की फिर मैंने ही कहा की आज सो जाओ जल्दी कल भी लेट गये थे और आज भी सारा दिन तुम्हे आराम नहीं मिला बाय किया और सो गए अगला दिन यूँही ऑफिस में बीत गया ना कोई फ़ोन ना मैसेज मै बस इंतजार ही करती रह गई। दो दिन और बीत गए उसकी कोई खबर ही नहीं जी घबरा रहा था, मैंने कॉल किया कोई जवाब नहीं आया मन में कई सवाल उठ रहे थे पर कोई जवाब देने वाला नहीं था। मैंने उसके डिपाटमेंट में पता किया वो ४ दिनों से ऑफिस नहीं आया था। अब तो घबराहट और भी बढ़ गई क्या हुआ? न कोई मैसेज न फ़ोन, ना बंदा ऑफिस आ रहा है न किसी को कोई खबर नहीं उसकी न ही उसके दोस्त को।
एक सप्ताह बाद मेरी सहयोगी ने बताय " तुझे पता है समीर ने शादी कर ली " सुन कर ऐसा लगा जैसे मेरी तो किसी ने जान ही निकल दी। इतना ही कह पाई "क्या?" उसने बताया की उसके नानाजी की तबियत ठीक नहीं थी घर गया था उनके पास और कल ही आया है और उसकी शादी हो गई उसके नाना जी के मित्र की पोती से। मेरा सबसे प्यारा सपना टूट गया थथा। ऐसा लगा अब जिंदगी में कुछ बाकी नहीं रहा मैंने आधे दिन की छुट्टी ली और घर आ गई घंटो रोइ, पर रो कर होना क्या था कुछ देर में आसूँ भी सूख गए मैंने पापा को फ़ोन किया पापा मुझे घर आना है और आपने जो ओस्ट्रेलिया वाले लड़के की बात की थी उनको हाँ बोल दीजिये, मैंने उसी दिन अर्जेंट में अपना इस्तीफा दिया और आज मैं ऑस्ट्रेलिया में हूँ, पर आज भी कभी उसकी याद आती है तो दिल में एक टीस सी उठती है
"जिंदगी में हजारों दोस्तों का काफिला मिला, बस वो ही नहीं मिला जिसकी हमें जुस्तजू थी"
फ़ोन की घंटी बजी और मैं वर्तमान में वापस आ गई। ऑफिस से फ़ोन था , मेल का जवाब जल्दी माँगा था , मैंने हाँ लिखकर भेज दिया। तय दिन मैं इंडिया के लिए रवाना हो गई ,वैसे भी कितने दिनों तक अपनों से भगा जाए। अगले दिन मीटिंग थी, वही ऑफिस और वही मीटिंग रूम और मीटिंग में उसके ही नाम का शख़्स जैसे नियति सब कुछ वैसे ही दोहरा रही थी जैसा पहले हुआ था मैं मीटिंग के लिए पहुंची रूम का दरवाजा खोला सामने वो ही था हम मिले एक दूसरे को हाय किया, उसने कहा " लॉन्ग टाइम ना " मैं कहा " हाँ " बस जैसे तैसे मैंने मीटिंग ख़तम की और जाने को हुई, उसने पीछे से आवाज दी " जल्दी में हो क्या ? बहुत दिन बाद मिले हैं चलो एक कप कॉफी ही साथ में पी लो या आइसक्रीम चलेगी जब दो दोस्त बहुत समय बाद मिलते है तो मीठा खाना चाहिए"सुनते ही मुझे हँसी आ गई और मैं उसके साथ चल दी।
काम ख़त्म कर मैं वापस ऑस्ट्रेलिया आ गई अपनी दुनिया में। अब सोचती हूँ तो लगता है इस मुलाकात का होना जरुरी था दिल का सब बोझ उतर गया ,मैं और वो अब बहुत अच्छे दोस्त हैं जो एक दूसरे को बहुत बेहतर समझते हैं।