काश
काश
चारों तरफ घनघोर अंधेरा था।
सोने का प्रयास कर रहा था वह काफी देर से पर नींद कहाँ नसीब में। बदनसीबी भी तो उसने खुद ही मोल ली थी आखिर अपने दोस्त के बहकावे में आकर। शराब के नशे और उस रात ब्लू फिल्म के जलवे ने जिस्म पाने की ऐसी चाहत पैदा कर दी थी कि वह अपनी चाचा की दस वर्षीय मासूम बेटी को अकेला पाकर बहक गया। उसके जिस्म पर तो अभी उभार भी नहीं थे, पर वो ब्लू फिल्म की नायिका की मादकता..उफ्फ।
उसे कोल्डड्रिंक में बेहोशी की दवा देने का विचार जो दोस्त ने दिया था, बहुत काम आया। बड़े आराम से उसके कपड़े.. पर वो बेहोशी में भी डर गई थी किसी अनहोनी से.. सब कुछ तो आसानी से कर लिया उसने, पर यह क्या, खून से लथपथ..छिः, यह सब क्या हो गया.. भागकर उसी दोस्त के पुराने घर में शरण ले ली..अब नींद कहाँ, उफ्फ, नींद की गोलियां भी तो काम नहीं कर रही। यह मैंने क्या कर दिया गुड़िया.. मुझे माफ कर दे..अब क्या होगा ? जेल..नहीं, सीधे फाँसी..बहुत बड़ा गुनाह हो गया मुझसे.. नींद की और गोलियां लेता हूँ..बिना विचारे ही सारी गोलियां एक साथ...और प्रायश्चित पूरा हो गया था..हमेशा के लिए।