काश !
काश !
क्या ही बताऊं ? किस कदर, मुझे तुमसे मोहब्बत हो गई है। आज भी याद है मुझे वह दिन। ऐसा लगता है जैसे कि अभी कल की ही तो बात है। जब तुमने कहा था, "यश, अपनी ज़िंदगी से इस 'काश' शब्द को हटा दो तो तुम्हारी सारी हसरतें पूरी हो जायेंगी।"
और सच में तभी से, 'काश मुझे यह मिल जाता ! काश मैंने यह किया होता! काश ये! काश वो!' जैसे वाक्यों और शब्दों को जुबां पर लाना तो दूर मैंने दिमाग़ में सोचना तक बंद कर दिया था।
मेरी एक नई ज़िंदगी शुरू हो गई थी। जो चाहता था। मेहनत करके हासिल करता था। ऐसा कोई काम न करता था जिससे कि पछतावा हो।
तुम दूर थी। दिल्ली नगरी में। किंतु मुम्बई मायानगरी के इस लड़के की पलपल की ख़बर तुम्हें हमेशा रहती थी। कितना ख्याल रखती थी। कितनी परवाह थी तुम को मेरी। लेकिन मुझे तो सिर्फ़ पैसों से प्यार था। हर पल, हर घड़ी, बस अमीर बनने की धुन पर सवार था मैं।
रूह से रूह तक की, एक दूसरे में उतर जाने, भीग जाने, जन्मों तक साथ निभाने जैसी तुम्हारी बातें मुझे बहुत हास्यास्पद लगती थीं। ना जाने कितनी बार मैंने तुम्हारा दिल दुखाया। यह भी भूल गया था कि मुझे नई ज़िंदगी देने वाली भी तुम ही हो और तुम्हारे विचारों की शक्ति।
सच कहता हूॅं। आज मैं फ़िर उसी 'काश' पर आकर अटक गया हूॅं कि काश तुम्हें समझ पाता ! काश दौलत के नशे में चूर ना हुआ होता। काश तुम्हारी कदर की होती। काश !
(पछतावे की आग में एक रूह)