माफ़ी
माफ़ी
जाने अंजाने हँसी -मजाक में अगर कभी मैंने आपका दिल दुखाया हो तो हमें माफ़ कर दीजियेगा
बात बहुत पहले की है। बचपन से लेकर किशोरावस्था तक का कारवां गरीबी की कोख से होकर गुजर रहा था। स्कूल में भी पहन कर जाने के लिए एक जोड़ी चप्पल नहीं हुआ करता था मेरे पास। वक्त ने करवट बदली और मैं मुम्बई जा पहुंचा। हाथ में चार पैसे क्या आए मैंने अपने सारे शौक और अरमान ब्रांडेड कपड़ों और महंगे-महंगे जूतों-चप्पलों, घड़ी, बेल्ट आदि को खरीद कर पहनने लगा।
जब वापस गांव लौटा और कुछ दिन बीतने के बाद एक दिन अकेले में मेरी मां ने मुझसे कहा, "तुम चाहते तो और पैसे बचा सकते थे अगर फालतू खर्चों पर कंट्रोल करते तो।"
इतना सुनते ही मैं फूट-फूटकर रोने लगा। इतना रोया कि मां को ऐसा अहसास हुआ जैसे उसने ऐसा बोल कर बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो।
उसके कुछ ही दिनों बाद मैं मुम्बई आ गया। मुंबई पहुंचने कि ख़बर सबसे पहले फ़ोन करके अपनी मां को ही सुनाता था। उस दफा भी ऐसा ही किया, "हैलो मां, मैं मुम्बई आराम से पहुंच गया हूं।"
जब कुछ देर तक उधर से कोई जवाब नहीं आया और शांति छाई रही तो मैंने वापस बोला, " हैलो मां, सुन रही हो? मैं मुम्बई पहुंच गया हूं।"
"हां बेटा सुन रही हूं," मां बोली लेकिन उसकी आवाज़ भर्रा गई थी, " बेटा अगर मुझसे कोई गलती हो गई हो तो मुझे माफ़ कर देना।" मां भरे हुए गले से बोली थी। जिसे सुनकर मैं वापस एक बार फिर फूट-फूटकर रो पड़ा था।
उस वक्त मां की कही हुई एक-एक बात सही थी लेकिन मैं नासमझ था जो उसकी बात का बुरा मान कर रोने लगा था लेकिन मां ने माफ़ी मांगकर यह जरूर सिखा दिया कि अपनी किसी भी जाने-अंजाने में की गई गलती के लिए माफ़ी मांग लेना अच्छा होता है। इसीलिए आज मैंने आपसे भी माफ़ी मांगी है।