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पानी का महत्व

पानी का महत्व

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उसे पानी के साथ खेलना बहुत अच्छा लगता था। बकेट में रखे साफ पीने के पानी को भी हाथ से छपछप करता था। कहीं पानी दिखता था, कूद जाता था। सब उसकी इस आदत से परेशान थे। नामसमझ था वो। सात साल का था वो। जब उसे एक दिन पानी के महत्व का एहसास हुआ।

रात के दो- तीन बज रहे होंगे। जब उसे जोरो से प्यास लगी। प्यास से गला सूखने लगा,'' पानी- पानी,'' कह कर वह तड़प उठा।

सब लोग गहरी नींद में सो रहे थे। वह बगल में सोए बाबू जी को जगाया।

उसे प्यास से व्याकुल देख बाबू जी परेशान हो उठे। वे पास में पानी रखना भूल गऐ थे। वह जा कर बड़े घर का दरवाजा खटखटाने लगे। पर किसी की नींद ना खुली।

उस रात के अंधेरे में हैरान - परेशान बाबू जी पानी के लिए इधर - उधर बहुत भागे। पर पानी कहीं न मिला।

वह लड़का जो पानी की बरबादी करता था। आज उसी पानी के लिए उसे ऐसा लग रहा था जैसे कि आज अगर उसे पानी न मिला तो उसके प्राण निकल जायेंगे।

उसकी आँखों में आंसू थे। उसे लगा वह अब नहीं बचेगा। वह बेहोशी के कगार पर था।

तभी बाबू जी बकेट में पानी ले कर आते हुऐ दिखे। वह दोनो हाथों से बकेट में से पानी निकाल कर पीने लगा। उसका कलेजा तऱ हो गया। जान में जान आ गई और पानी के महत्तव के बारे में सोचते हुऐ सो गया।

सुबह हुई। आँखें खुली। उसका ध्यान उस रात के बकेट पर गई। जिसमें बाबू जी पानी ले कर आये थे। उस बकेट में ढेर सारी मिट्टी लगी थी। वह उठ कर पानी को देखा तो उसमें चारपांच किड़े घूम रहे थे और पानी गंदा था।

वह भाग कर खेतों में काम कर रहे बाबू जी के पास गया,'' बाबू जी... बाबू जी..,'' कह कर बोला,'' आप ने रात को मुझे इतना गंदा पानी पिलाया, उसमें कीड़े घूम रहे हैं,''

'' क्या करता बेटा,'' बाबू जी दीनहीन स्वर में बोले,'' मजबूर था। पानी जो कहीं नहीं मिल रहा था। इस लिए सामने वाली बावड़ी में से ले कर आना पड़ा। जिसमें सब बारीश का पानी जमा हुआ था।''

सुन कर उस लड़के की आँखें भर आईं।


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