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Yash Yadav

Drama

4.4  

Yash Yadav

Drama

माँँ के दिए हुए वे बारह रुपये

माँँ के दिए हुए वे बारह रुपये

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एक लड़का था। उसे स्कूल की किताबों के साथ - साथ बाहर की किताबों से बहुत लगाव था। वह किस्से - कहानियों को बड़े चाव से पढता था। ' सुमन सौरभ ' नाम की एक पत्रिका आती थी। हर महीने। बारह रुपये में। वह उसको खरीदने के लिए अपने पूरे महीने के जेब खर्च को बचा कर रखता था। वह भी उसके गऱीब माँ - बाप बड़ी मुश्किल से उसे दे पाते थे। वह उसके लिये सिर्फ एक पत्रिका नहीं बल्की एक सच्चे दोस्त की तरह थी। उसने कहीं तो पढ़ रखा था कि अगर जीवन में अच्छे दोस्त न हों तो अच्छी किताबों और पत्रिकाओं को अपना दोस्त बना लेना चाहिए। इस लिए वह उन सब को दोस्त मानता था। जिसमें 'सुमन सौरभ' पत्रिका उसकी खास दोस्त बन गई थी। वह पत्रिका किशोरों के लिए थी। उस वक्त वह बारह साल का था। उस पत्रिका में छपी कहानियां, चुटकुले, देश - दुनिया, जानकारी की बाते आदि उस का मन मोह लेती थीं। वह पत्रिका को पढ़ने के बाद अपने सीने से लगाता था और फिर सिरहाने रख कर सो जाता था।

एक समय की बात है। उस लड़के के गरीब माँ - बाप अपनी हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद उसे जेब खर्च ना दे पाये। उसकी फेवरेट पत्रिका बाज़ार की दुकान में आ चुकी थी। पर उसे खरीदने के लिए उसके पास पैसे न थे। वह स्कूल से आते - जाते वक्त उस पत्रिका को देखते रहता था, उसे न खरीद पाने के गम में बहुत उदास रहता था।

उसका मुरझाया हुआ चेहरा देखकर एक रोज़ उसकी माँँ ने वजह पूछी। वजह जानकर उसकी माँँ को बहुत दुख हुआ कि वह अपने बेटे को एक पत्रिका खरीदने के लिए बारह रुपये नहीं दे सकती।

लड़के को पता था कि माँँ के पास पैसे नहीं है। वह चुप था। फिर भी उसकी माँँ बोली, "रुक देखती हूँ"

माँँ कह कर चली गई। लड़का बैठा रहा। लगभग आधे घंटे बाद माँँ वापस आई और लड़के के हाथ में बारह रुपये रख दिए। यह देख लड़के की खुशी का ठिकाना न रहा। वह तुरंत बाज़ार की तरफ भागा।

रात को उसने सोते वक्त माँँ से पूछा,

"माँँ तुम्हारे पास तो पैसे नहीं थे, फिर पैसे कहाँँ से आये ?"

इस पर माँँ ने बताया कि वह अपनी सहेली से उधार ( कर्ज़ ) ले कर आई है जो वह बाद में लौटा देगी।

घर में खाने के लिए पैसे नहीं हैं और माँँ मेरे लिए उधार मांग कर ले आई, जानकर उसकी आँँखे नम हो गईं। माँँ के प्यार के आगे वह पत्रिका कुछ नहीं थी।

बड़े होकर उस लड़के ने माँँ के कदमों में तो ढेर सारी दौलत का ढेर लगा दिया, फिर भी उसे हमेशा एक बात का अफसोस होता रहा कि वह इतना सब कुछ करने के बाद भी, माँँ के उस वक्त के बारह रुपये न लौटा सका क्योंकि गुज़रा हुआ वक्त लौट कर नहीं आता...।


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