काश तुम मुझे मिल जाती
काश तुम मुझे मिल जाती
यूं तो घर में मेहमानों का आना जाना लगा रहता था। कभी अपने सगे तो कभी जुड़े रिश्ते से बने नए सदस्य। मैं अपने नाना नानी के घर रहता था गांव से दूर शहर में नाना का अपना बड़ा मकान था , जिसमें उनके खुद के २ बेटे उनका परिवार और वो खुद भी रहते थे ,शहर में अच्छी पढ़ाई के लिए मैं ने मुझे वहां भेजा था। दिमाग बचपन से तेज था इसलिए पढ़ाई के साथ साथ मोबाइल रिपेयरिंग का काम भी सीख रहा था। मामा जी दोनों ने एक बड़ी मोबाइल की दुकान खोली थी जिसमें मोबाइल और उनसे जुड़ी सारी वस्तुएं बेचने का सामान था साथ ही खराब मोबाइल रिपेयर करने का काम भी दुकान पर होता था ,जिसके लिए वहां कुछ लड़के तनख्वाह पर रखे थे।
मामा ओर मुझमें उम्र का अधिक फासला नहीं था इसलिए वह भैया बुलवाना ही पसंद करते थे ,काफी मिलनसार स्वभाव के थे। सप्ताह में कभी कभी गांव जाता और अधिकतर समय काम देता ,मोबाइल का बारीक काम सीखने में मैंने खुद की आंखों की रोशनी खो दी जिसके बाद मुझे चश्मे लग गए। मामी की बहन जो मेरी ही उम्र की थी और हम एक ही स्कूल में पढ़ने जाते थे। साथ में स्कूल का करते और परीक्षा की तैयारी करते थे ।लेकिन धीरे धीरे मैंने जाना की वह मुझे चाहने लगी थी और उसने मुझे कहा था क्या कि क्या हम अच्छे दोस्त बन सकते हैं ,ना तो मुझे तब कुछ समझ आया था और न मैं कुछ कह पाया था ।और सबसे बड़ी बात थी कि मामा को पता चलेगा तो क्या होगा ??
इसलिए मैंने उसे ना में जवाब दिया, और उसने फिर कुछ नहीं कहा कभी। लेकिन उसकी एक करीबी दोस्त के साथ मैंने एक तस्वीर देखी और वह मुझे पसंद आई तो मैंने सीमा से उस लड़की का फोन नंबर.
मांगा और उसने अगले दिन का समय देकर उससे पूछकर फिर देने को कहा।और अगले दिन मिलने पर उसने न का ही जवाब दिया और मुझे यह लगा कि शायद मैंने उससे दोस्ती नहीं की इसलिये उसने मेरा काम ही नहीं किया होगा। लेकिन कुछ समय बाद आरती ने खुद उसका नंबर मांगा है और फोन करने के लिए कहा था। और मैं भी उसके फोन का इन्तजार कर रहा था, ताकि मैं ये पूछ सकूंं कि उसने पहले क्यों मना किया था। फोन आया बातें हुई और पूछने पर बताया कि अब वह पसंद करने लग गई है इसलिए।
दोस्ती हुई धीरे धीरे बातें बढ़ी, एक दूसरे को समय देने लगे और दोस्ती प्यार में बदल गई। फिर रोज स्कूल में मिलना और छुट्टी पर घूमने निकलना जैसे आदत बन गई, कभी बाइक से तो कभी कार से घूम कर आते।
एक बार कार से घूमने निकले थे काफी दूर शहर से और शायद कुछ चोर गिरोह हम पर पहले से ही नजर बनाए बैठे थे। जो इस मौके की तलाश में थे कि कब अकेले में यह दोनों निकले और हम इन पर हमला करें। मेरे पास दो मोबाइल हाथ की उंगली में सोने की अंगूठी पर्स और आरती के पास भी उसका पर्स और गले में सोने की चेन थी। चोरों के गिरोह नेे हमला और मैंने आपको कार के अंदर दरवाजा बंद रखने को और बाहर ना निकलने को कहा। चोरों ने मेरा पार्सल मोबाइल से लिया था सब कुछ लेने और मेरे कहने पर भी उन्होंने आरती पर हमला किया। और मैंने। एक को खींचने की कोशिश की और फिर मारपीट शुरू हो गई। आरती तो बच गई थी क्योंकि वहां शायद किसी के कहने या फोन करने से वहां पुलिस आ गई थी, पर उनमें से एक ने मेरे सर पर ईंट से मार दिया और भाग गया। मैं सड़क के किनारे नाले में गिर गया, पुलिस ने मुझे उठाया और समझाया कि कभी भी अकेले इस सुनसान रास्ते की तरफ न आएं।
पुलिस ने मुझे घर छोड़ने को कहा पर मेरे निवेदन से उन्होंने मेरी बात मान ली और मुझे अस्पताल ले जाकर पट्टी करवा दी। आरती ने अपने पैसे से नई शर्ट ली और खून से रंगे पहली शर्ट को फेंक दिया ताकि घर पर किसी को खबर न लगे। मैंने आरती। को घर छोड़ और खुद भी आराम के लिए घर निकल गया और घर जाकर बिना किसी को कुछ बोले लेट गया। मुझे लगा दवा और पट्टी की वजह से सर की चोट ठीक हो जाएंगी और मैं घर पर कुछ बहाना बना लूंगा। लेकिन जब शाम के ४ बजे मेरी नींद खुली तो मैंने पाया कि घर के सारे सदस्य मेरे सामने खड़े थे और मेरा तकिया खून से लथपथ हो चुका था। मैं कोई बहाना बनाता कि इससे पहले मामा ने बोला कि उनके किसी दोस्त ने उन्हें फोन किया था जो पुलिस में थे और उन्होंने उन्हें सारी बातें बता दी हैंं।और मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि अब मेरे साथ क्या होने वाला है। जो ठीक हुई और जैसे ही मैं आरती से मिलने वाला था, तब नाना जी ने कहा कि उन्होंने उसके रिश्ते की बात की है और मुझे लड़की देखने जाना है। मानो मेरे पैर के नीचे से जमीन खिसक गई, मैं कुछ सफाई में बोलता और अपनी बात रखता कि नानाजी ने कहा कि उन्होंने रिश्ता सोच समझ के देखा है और शगुन भी दे आए हैं और यदि वह रिश्ता मंजूर न करेगा तो वह उससे सारे रिश्ते तोड़ देंगे जिससे मेरी मां भी पहले से ही सहमत हो चुकी थी ।
उन्होंने आगे कहा कि जिस लड़की की वजह से उसकी जान को खतरा हुआ था, वह बहुत ही निम्न जाति की है और वह अपने घर में उसे बहु बनाकर नहीं ला सकते। अब मेरी शादी की तैयारी हो रही थी और मुझे जबरदस्ती इस रिश्ते को बनाने के लिए बोला जा रहा था ,मैं कुछ कर नहीं सकता थाा। हालांकि मैंने आरती को सारी बातें चोरी छिपे फोन करके बता दी थी। मैं अपनी शादी के पहले दिन तक आरती से मिला और उससे माफी मांगने लगा। वह बस चुप शांत रोती रहती। और कहती जब है ही नहीं मिलना तो क्या कर सकते हैं? मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा, अपनी हल्दी की रस्म के बाद मैं पूरी रात घर से गायब रहा। मैं परेशान था कि मैं कैसे अपनी जिंदगी बसा सकता हूं वो भी उस इंसान के साथ जिसे मैं अपने गम में ना देखने गया था और न ही जानता हूं। मैं आरती को लेकर परेशान था, और अगले दिन मेरी शादी हो गई। मैंने तब से लेकर अब तक एक पति और पिता दोनों का कर्तव्य निभाता आया हूं और आज भी आस है कि फिर वह समय आए और मैं आरती को अपनाकर उसे खुशियां दे सकूं जो उसने मेरे साथ सोचे बुने थे।
हालांकि उसकी भी शादी हो गई है पर खुश दोनों ही नहीं हैं ।
