काश आप मुझे समझ पाते
काश आप मुझे समझ पाते
हमेशा चहकते रहने वाली साक्षी गुमसुम रहने लगी थी। चेहरे पर उदासी लिए बैठी रहती। एक छोटी सी आहट से भी घबरा उठती। पढ़ाई में आगे रहने वाली साक्षी अब परीक्षा में पास भी बड़ी मुश्किल से कर पाती।
साक्षी को हमेशा से ही रंगों से खेलने का शौक था, जो भी देखती एक नजर में ही हूबहू कैनवास पर उतार देती। आज वही साक्षी रंग और तूली देखते ही डर जाती। साक्षी एक चित्रकार बनना चाहती थी लेकिन उसके मम्मी पापा की इच्छा थी कि वो एक डॉक्टर बने जो धीरे धीरे एक दबाव के रूप में बदलती जा रही थी। ऐसे ही एक दिन जब वो कैनवास पर अपने सपनों में रंग भर रही थी कि उसके पापा ने आकर सारे रंग-तूली उठा कर फेंक दिए और कैनवास फाड़ दिया। उस दिन के बाद साक्षी को हँसते हुए किसी ने नही देखा। जब देखो अपने कमरे में किताबें लिए बैठी रहती। उसके पाप का अच्छे नंबर लाने और डॉक्टर बनने का दबाव दिन पर दिन बढ़ने लगा। सारा दिन साक्षी का इसी आतंक में बीतता कि अगर वो अच्छे नंबर ना ला पाई तो उसके पापा की इज्जत खराब हो जाएगी। एक तरफ अपने चित्रकार बनने के सपनों को मरता देख और दूसरी तरफ अपने पापा के सपनों को पूरा करने के दबाव में साक्षी अपना दिमागी संतुलन खोने लगी थी। उसकी दिमागी हालत बिगड़ती जा रही थी और ऐसे ही एक दिन इस मानसिक दबाव को सहन ना कर पाने के कारण उसने आत्महत्या कर ली।
मरने से पहले साक्षी ने अपने पापा के नाम एक खत लिख छोड़ा था जिसमे लिखा था,
" प्रिय पापा, मैं रंगों से प्यार करती थी और अपनी दुनिया उन रंगों से सजाना चाहती थी। नही पढ़ी जाती मुझसे ये मोटी मोटी किताबे, नही बनना चाहती मैं डॉक्टर। मेरे सपनों की हत्या तो आप पहले ही कर चुके हैं तो अब मैं भी जी कर क्या करूंगी। काश आप मेरी मानसिक हालत जान पाते। काश आप मुझे समझ पाते।"
साक्षी