काँटा
काँटा
"अदिति बेटा उसे आना होता तो वो आ चुका होता। मुझे उस से तेरी शादी से कोई ऐतराज नहीं है, मै तो खुशी से तुझे उसके साथ विदा कर दूँगा; लेकिन वो आये तो सही।" हीरा लाल ने अदिति को समझाते हुए कहा।
पापा के प्यार भरे शब्द अदिति को समझा नहीं पा रहे थे। उसे अब भी विश्वास नहीं आ रहा था कि पार्थ उसको छोड़ कर जा चूका है, दिन हफ्तों में बदल चुके थे लेकिन वो न आया। अब पापा एक एन आर आई लड़के का रिश्ता लेकर आये है, लेकिन वो पार्थ जैसा तो नहीं है। गर्म आँसू अदिति की आँखों से बह चले।
"रमा, अदिति को तैयार कर, लड़के वाले आते ही होंगे।" पापा ने माँ को आवाज दी तो कमरे के बाहर खड़ी माँ के साथ उसके छोटे भाई रोहन और कल्प भी चले आये और बड़ी आस से उसकी और देखने लगे। उनके मासूम चेहरों पर अभी भी उसके लिए नफरत न थी, माँ की आँखों में पहले जैसा प्यार था। ऐसे प्यार के लिए वो अपना परिवार छोड़ जाना चाहती थी जो उसका कभी था ही नहीं। नफरत है मुझे तुमसे पार्थ।
"माँ- पापा, आप जैसा चाहते है वैसा ही होगा।" कहते हुए अदिति उठ खड़ी हुई।
दो सप्ताह बाद, बेटी को दामाद के साथ अमेरिका विदा कर हीरा लाल खुश था। सबको नीचे छोड़ कर वो छत पर चला आया और अपने छोटे भाई रवि को फ़ोन लगाया और बोला, "रवि छोड़ दे उस कुत्ते को। अब हमें उसकी कोई परवाह नहीं क्या; पुलिस के पास जाने की धमकी दे रहा है ? अदिति की तलाश में अमेरिका जाना चाहता है ऐसा कर, कालू को बुला ले उसे दो लाख दे देनाचल पाँच लाख दे देना, लेकिन उसे कह देना उस कुत्ते की लाश बरामद नहीं होनी चाहिए।"