Padma Agrawal

Inspirational

3.2  

Padma Agrawal

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काली कलूटी पारो

काली कलूटी पारो

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 "दीदी, मैं आपकी पारो ‘.... आपको 5 सितंबर को ‘अम्मा की रसोई’ का उद्घाटन करना है ...

आत्मविश्वास से भरपूर पारो को लेखी जी एकबारगी पहचान ही नहीं पाईं थीं . वह उन्हें कार्ड देकर उनके  पैरों पर झुकी तो उन्होंने उसे गले से लगा लिया था ...

‘’जरूर आऊँगी “... वह ठंडी हवा के झोंके की तरह जा चुकी थी ..

17-18 वर्ष की काली कलूटी लड़की , जिसकी दर्दभरी सूनी आँखें और भावहीन चेहरा देख उन्हें बहुत कोफ्त हुई थी परंतु सिंक में भरे बर्तन और धूल धूसरित घर की वजह से उन्होंने पारो को काम पर रख लिया था .पारो की कार्यकुशलता देख वह चमत्कृत हो उठीं .. खाना तो इतना टेस्टी बनाती कि सब लोग अंगुलियाँ चाटते रह जाते .

उसकी भावहीन आँखें रोबोट की तरह मुर्झाया गुमसुम चेहरा अभी भी उनके लिये प्रश्न चिन्ह बना हुआ था ....काफी दिन बीत गये तो एक दिन उनके बहुत आग्रह करने पर वह अपना दर्द बताते बताते सिसक पड़ी थी…

शराबी बाप ने चंद पैसों के लिये उसका सौदा कर लिया ...12 -13 वर्ष की मासूम कली शादी की आड़ में वहशी दरिंदों की शिकार बन गई थी . जब उसने बिलखते हुये अपनी पीठ , पेट और अन्य नाजुक स्थानों पर दाँत के गहरे गहरे जख्म दिखाये तो वह बिलख पड़ीं थीं . उन्होंने उस दिन से उसे अपनी बेटी मान लिया था .उसको अपने पैरों पर खड़े होने के लिये प्रेरित करती रहीं थीं . फिर वह 3 वर्षों के लिये विदेश चली गईं थी  आज उसके संघर्ष का प्रतिफल देख कर उन्हें आत्मिक शांति और प्रसन्नता हो रही थी .



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