काला रंग
काला रंग
पति के आकस्मिक मृत्यु से रेणु सम्हलने की कोशिश कर रही थी। घर में मित्रों और रिश्तेदारों का आना-जाना लगा हुआ था जितने लोग उतने तरह की बाते होती थी,अधिकांश बाते सहानुभूति की चाशनी में डूबे व्यंग्य होते या ऐसी बात होती जो रेणु को ढांढस बंधाने और उसे मजबूत बनाने के बजाये उसे बेचारी और विवश होने का बोध कराते।
एक दिन दूर की एक रिश्तेदार रेणु को काले रंग की बिंदी लगाते हुवे बोली-क्या करे विधि का विधान कोई नहीं जानता उसने तुम्हारे जीवन के सारे रंग छीनकर उसे काला कर दिया अब तो इसी रंग के साथ तुम्हारा जीवन चलेगा।
रेणु ने आत्मविश्वास के साथ मुस्कुराते हुए जवाब दिया- काले रंग के ऊपर दूसरा रंग नहीं चढ़ता मेरे मन में भी इनके प्यार का रंग ऐसा चढ़ा है की दूसरा रंग कभी नहीं चढ़ेगा मेरे साथ इनके यादो का जो रंग है उसके सहारे मैं जीवन में आगे बढ़ूंगी और हम दोनों ने जो सपने देखे थे उसे मैं पूरा करुँगी यही मेरे जीवन का सम्बल है।