कागज तलाक के
कागज तलाक के
लो हो गया आज तलाक नेहा और राकेश का।
नेहा अपनी मां के साथ कोर्ट में आई थी। अपने दस वर्ष के बेटे रवि को घर पर ही छोड़ कर। वो अभी बहुत छोटा था कोर्ट कचहरी की बातों को, रिश्तो की बारीकियों को समझ न पाएगा। कोर्ट से बाहर निकलते समय नेहा ने राकेश से कहा_ "मैं अपने सामानों के लिस्ट के साथ तुम्हारे घर पर चलती हूं"। राकेश ने कड़वा सा मुंह बनाया और कहा_ हां, हां चलो। अपने सामान घर से ले लो और कोर्ट ने जो दस लाख की रकम देने की बात कही है वह भी मैं आज ही तुम्हें दे देता हूं। नेहा अपनी मां के साथ ऑटो से घर पहुंच गई। राकेश अपनी बाइक पर थोड़ी देर में आ गया। उसने घर खोला और वहीं पड़े सोफे पर धम्म से बैठ गया। नेहा अंदर गई तो घर में फैले दुर्गंध ने उसका स्वागत किया। दीवारों पर मकड़ी के जाल लगे थे। चारों तरफ नजर घूमाते ही उसे इस घर में बिताए हर एक पल याद आने लगे। उसे तो मकड़ी के जाले से कितनी नफरत थी और उफ्फ ये दुर्गंध.... राकेश की पीने की आदत इतनी हद तक बढ़ गई । अब तो उसे कोई रोकने वाला भी नहीं है और तब भी रोकने से कहां रुका था वो। उसने प्रेम विवाह किया था। मां को तो राकेश पसंद न था पर मेरी जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा। आज तलाक मिलते ही मां ने मेरे सामने फिर से वो सारी बातें दुहराई जो विवाह न करने के लिए कहती थी। मैंने सोफे की तरफ नजर घुमाई तो राकेश काफी बदला बदला सा लगा । असमय बुढ़ापे ने उसे जकड़ रखा था ।बालों में सफेदी, धंसी आंखें और मुरझाया चेहरा। मैंने पूछा_" मेरा सामान कहां रखा है"? उसने कमरे की तरफ इशारा किया। कमरे में पहुंचकर देखा कमरा पूरी तरह से कबाड़खाने में तब्दील हो गया था।
अपने बिस्तर को देख फिर से यादों की उथल-पुथल। कैसे पैसे जोड़ जोड़ कर हम दोनों ने इस घर को सजाया था ।आंगन में रखी सूखी तुलसी मानो मुझ से मूक शिकायत कर रही थी। उस दिन शराब पीकर राकेश ने मुझे मारा न होता तो शायद यह नौबत न आती। मैंने तो उस घटना के दो दिन बाद तक इंतजार किया था कि शायद राकेश को अपनी गलती का एहसास हो जाए और वह मुझ से माफी मांग ले पर पुरुषों का अहं राकेश पर भारी पड़ने लगा था।मैंने घर छोड़ने का फैसला किया और रवि को साथ ले मायके आ गई। मां ने तलाक लेने का सुझाव दिया। जो मुझे भी उचित लगा ।आखिर कब तक इंतजार करती। जिससे हम प्रेम करते हैं उससे उम्मीदें भी बहुत अधिक होती है ।उसने मुझ पर हाथ उठा कर मेरे स्वाभिमान पर जो ठेस लगाई थी उसे मैं कैसे भूल जाती।मैं सामान लेकर कमरे के बाहर आई तो राकेश ने एक थैली मुझे थमाते हुए कहा_ देख लो, इसमें तुम्हारे सारे गहने हैं इसे भी रख लो तुम्हारे काम आएंगे। तुमने अभी तक इसे संभाल कर रखा है ?
अब इसका मैं क्या करूंगी जब तुम ही.....। रख लो जिंदगी में जब परेशानियां आएगी उस समय ये तुम्हारे काम आएगी और रवि की जिम्मेदारी भी तो तुम पर ही है। तुम्हें मेरी इतनी परवाह है तो तुमने तलाक क्यों दिया ?तलाक तो तुम चाहती थी। मैंने तो इस बारे में कभी सोचा ही नहीं था ।चलो मैंने तलाक मांगे पर तुम मना भी तो कर सकते थे ।अगर उस दिन तुम मुझसे माफी मांग कर मुझे मायके से बुला लेते तोआज हम साथ....। देखो, तुमने अपनी हालत कैसी बना ली है। मैं तुम्हें ऐसे ऐसे टूटकर बिखरते नहीं देख सकती। तुम्हारी आंखें कल रात भर रोने की दास्तां सुना रही है ।देखो अब भी कितनी लाल है। राकेश ने नेहा का हाथ पकड़ते हुए कहा _"मैंने तब बहुत बड़ी गलती की थी पर अब उसे फिर दुहराना नहीं चाहता।हो सके तो मुझे माफ कर दो। मुझे ऐसे अकेले छोड़कर मत जाओ"। नेहा की आंखें भर आई। वह भी तो राकेश के गले लग जी भर रोना चाहती थी। तलाक के कागज फाड़ते हुए उसे अपनी गलती का एहसास हुआ जिसकी गवाही उसके बहते आंसू दे रहे थे।दूर खड़ी नेहा की मां बोल पड़ी_" तलाक के ये कागज रिश्तो की गहराई कहां समझ सकते"? मैं भी अपनी गलती पर शर्मिंदा हूं। मैंने भी तुम्हें गलत राय दी। तुम दोनों मुझे माफ कर दो कहते कहते उनकी आंखें छलक आई।आज सबकी आंखों से आंसू बह रहे थे जिसमें सारे गिले शिकवे बह गए थे।