जो मेरे साथ हुआ, वह तुम्हारे साथ नहीं होगा बहू
जो मेरे साथ हुआ, वह तुम्हारे साथ नहीं होगा बहू
"अरे संगीता, जल्दी से तैयार हो जाओ। आज डॉक्टर से रूटीन चेक -अप के लिए अपॉइंटमेंट है। " मितेश ने किचन में काम कर रही अपनी पत्नी को कहा।
"अरे बेटा, मुझे कल मितेश ने बताया था और मैं बिलकुल भूल गयी। तुम अभी भी यहाँ खड़े होकर क्या कर रही हो ?जाओ जल्दी से तैयार होकर आओ। " लता जी ने अपनी बहु संगीता के हाथ से कलछी लेते हुए कहा।
"माँ, आप भी चलो न मेरे साथ। आप साथ में होते हो तो हिम्मत बनी रहती है। "संगीता ने सासु माँ के गले में बाहें डालते हुए कहा।
"नहीं बेटा, तुम होकर आओ। तब तक में लंच की तैयारी कर लूंगी।आते -आते तुम्हे भूख भी लग जायेगी और ऐसे समय में ज्यादा देर तक भूखा रहना सही नहीं है। " लता जी ने संगीता के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
संगीता तैयार होने के लिए अपने रूम में चली गयी। उधर मितेश और मितेश के पापा सुबोध जी बातें कर रहे थे।
"मितेश डॉक्टर से सारी बात हो गयी है। तुम पहले सोनोग्राफी करवा लेना बहु की।यदि होने वाली संतान बेटी है तो बाकी तो तुम समझ ही गए होंगे। इस घर की परम्परा टूटने नहीं देंगे। यहाँ पर हमेशा पहली संतान बेटा ही हुई है। बहु को सम्हालना और समझाना अब तुम्हारी जिम्मेदारी है। "सुबोध जी ने कहा।
"जी, पापा। आप निश्चिंत रहिये। इस घर की परंपरा बनाये रखना अब मेरी जिम्मेदारी है। " मितेश ने कहा।
"यह हुई न मर्दों वाली बात। मुझे तुम पर नाज़ है बेटे। चलो, जल्दी निकलो कहीं देर न हो जाए। "सुबोध जी ने संगीता को आते देखकर तुरंत बात पलट दी।
संगीता और मितेश हॉस्पिटल के लिए निकल गए।
"हे भगवान तुने फिर मुझे उसी दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया। पहले तो मैं मजबूर पत्नी थी जो अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। अपनी ही हाथों से एक नहीं, दो -दो बार अपनी अजन्मी बेटियों को मार डाला। लेकिन इस बार यह सास मजबूर नहीं है मजबूत है। अपनी बहु के साथ ऐसा कुछ नहीं होने दूँगी। "लता जी ने अपने आप से कहा।
लता जी 'कली' NGO की संचालिका सुहासिनी जी को फ़ोन लगाती हैं। लताजी को उनकी एक पड़ोसन ने इस NGO के बारे में बताया था। लताजी को जैसे ही अपनी बहु के गर्भवती होने का पता चला था, तब से ही वह इस NGO के संपर्क में थी। सुहासिनी जी ने उन्हें निर्देश दिए थे कि, "जिस दिन उनका बेटा बहु की सोनोग्राफी करवाने और लिंग जांच कराने के लिए लेकर जाए। वह उस दिन तुरंत उन्हें सूचित करें। "
लताजी ने सुहासिनीजी को फ़ोन किया और उनसे बात की। सुहासिनी जी ने कहा, "लता जी,हमारे पास दो तरीके हैं और क्यूंकि आप एक माँ भी हैं इसलिए मैं आपको बिना किसी अँधेरे में रखे सब कुछ पहले ही बता देना सही समझती हूँ। "
"सुहासिनी जी, मैं तो बस इतना चाहती हूँ कि मेरी बहु को उस पीड़ा से न गुजरना पड़े जिससे मैं गुजरी थी। "लताजी ने कहा।
"अगर हम पुलिस कि मदद से क्लिनिक पर जाते हैं तो आपके बेटे को भी पुलिस गिरफ्तार करेगी। साथ ही जब तक डॉक्टर पर केस चलेगा तब तक आपको भी कोर्ट में बयान आदि के लिए जाना पड़ेगा। डॉक्टर काफी शक्तिशाली और पहुंच वाला है तो हो सकता है कि आपको बाद में परेशान भी करे। दूसरा तरीका यह है कि आप अपने बेटे को डरा -धमका कर, पुलिस और NGO का भय दिखाकर समझाओ। आप चाहो तो डॉक्टर को भी धमकी तो दे ही सकती हैं। वैसे भी एक केस कम हो जाने से उसकी आमदनी पर तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन अगर पुलिस केस बना तो उसका पैसा और समय दोनों ही खर्च होगा। "
"मुझे आप १० मिनट्स दीजिये सोचने के लिए। "लता जी ने कहते हुए फ़ोन रख दिया।
"मितेश कि तो इसमें गलती नहीं है। वह तो अपने पापा के पद चिन्हों पर चल रहा है। गलती तो मेरी है जो मैं मेरे बच्चे में सही समझ विकसित नहीं कर पायी। वैसे भी मुझे महान नहीं बनना, बस अपने घर को हत्याओं के बोझ से मुक्त करना है.पुलिस और कोर्ट के मामलों में पड़कर कुछ हासिल नहीं होने वाला है। मुझे मितेश और डॉक्टर दोनों को ही डरा धमकाकर इस हत्या को होने से रोकना होगा। "लता जी सोचते हुए अंतिम निर्णय तक पहुंच ही गयी थी। उन्होंने सुहासिनी जी को अपने निर्णय से अवगत कराया और उनकी मदद से पहले डॉक्टर से बात की.डॉक्टर थोड़े से न नुकर के बाद मान ही गया।
उधर सोनोग्राफी की रिपोर्ट से पता चला कि, "संगीता के गर्भ में पलने वाला शिशु कन्या है। "मितेश डॉक्टर से संगीता के एबॉर्शन की बात ही कर रहा था कि तब ही घर से सुबोध जी का फ़ोन आ गया, "अरे मितेश जल्दी से घर आ जाओ संगीता के लिए डॉक्टर से कल का अपॉइंटमेंट ले लेना। तुम्हारी मम्मी को शायद हॉस्पिटल ले जाना पड़ेगा। सांस लेने में तकलीफ हो रही है। "
मितेश तुरंत घर पहुँचता है तब तक लता जी सामान्य हो जाती हैं।
"क्या हुआ पापा माँ को ?" संगीता पूछती है।
"अरे, कुछ नहीं तुम्हारे पापा को तो जानती ही हो कितनी जल्दी घबरा जाते हैं ?और सब ठीक है न ?डॉक्टर ने क्या कहा ?"लता जी ने कहा ।
"हाँ, माँ सब ठीक है। आप मेरी इतनी फ़िक्र करते हो न कि खुद का ध्यान रखना ही भूल जाते हो। "संगीता ने कहा।
"जाओ बेटा, खाना खाकर कुछ देर आराम कर लो। "लता जी ने कहा।
संगीता अपने रूम में आराम करने चली जाती है। मितेश सुबोध जी को हॉस्पिटल में जो भी हुआ सब बताता है। सुबोध जी कहते हैं, "ठीक है कल जाकर एबॉर्शन करवा लेना। "
सुबोधजी की बहिन माया भी शाम को लताजी के हालचाल पूछने आ जाती है। माया को भी जब पता चलता है कि संगीता के गर्भ में पलने वाला शिशु लड़की है तो वह भी अपने भाई का ही साथ देती है और कहती है कि, "मुझे तो बच्चियां फूटी आँख नहीं सुहाती। पता नहीं क्यों पैदा हो जाती हैं ?गर्भ में ही मार दो तो सही रहेगा। "
लता जी कब से उन सबकी बातें सुन रही थी। उन्होंने सबको दो टूक बोल दिया, "इस घर में अब पुरानी कहानी नहीं दोहराई जायेगी। मेरी पोती को कोई भी जनम लेने से पहले मारने की जुर्रत भी नहीं करना। नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। "
"लता, तेरी जुबान तो कतरनी की तरह कब से चलने लग गयी। अभी तो घर के फैसले लेने के लिए सुबोध है और मैं हूँ। तू इन सब के बीच में मत पड़। इस घर में पहली संतान लड़की पैदा नहीं हो सकती। "माया ने कहा।
"वाह जीजी, तुम तो अभी भी इस घर के फैसले ले सकती हो। मुझे क्या अभी तक भी हक़ नहीं मिला इस घर के फैसले लेने का। अगर अम्माजी भी ऐसा ही सोच लेती तो अच्छा होता कम से कम तुम तो अपने भाई का साथ देने के लिए यहाँ नहीं होती। तुम कैसी औरत हो जो बेटियों से इतनी नफरत करती हो। मितेश मैंने एक कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए काम करने वाले NGO में बात कर ली थी। तुम्हारे डॉक्टर को भी यह बता दिया है कि अगर उसने संगीता का एबॉर्शन किया तो उसका क्लिनिक और प्रैक्टिस दोनों ही बंद हो जाएंगे। तुम अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो सकोगे। "लता जी ने बात समाप्त की।
तीनों के तीनो मजबूर से मजबूत होती हुई लता जी को बुत बने खड़े होकर देखते रह गए। दरवाजे के पीछे खड़े होकर सब सुन रही संगीता दौड़कर लता जी के गले लग जाती है।
