ज्ञान मुरली व संगीत मुरली
ज्ञान मुरली व संगीत मुरली


संगीत और ज्ञान का आपस में गहरा सम्बंध है। ज्ञान अंततोगत्वा जो काम करता है; संगीत भी अंततोगत्वा वही काम करती है। इसलिए ही "मुरली" शब्द के दो पर्यायवाची अर्थ होते हैं। जिस प्रकार विशेष सुर ताल के स्वर की लयबद्धता के साथ जिस यन्त्र विशेष के उपयोग के माध्यम से जो संगीत उत्पन्न होता है उसे संगीत की मुरली कहते हैं। ठीक उसी प्रकार जिस भावनात्मक व मानसिक अवस्था जैसे भाव संस्थान और विचार संस्थान का उपयोग कर जैसे शब्द प्रवाहित होते हैं उसे ही "ज्ञान मुरली" कहते हैं। जैसे संगीत की मुरली से निकले हुए सुर ताल लय की अपने प्रकार की ध्वनि ऊर्जा तरंगें होती हैं ठीक उसी प्रकार ज्ञान मुरली (ज्ञान की अभिव्यक्ति) में उच्चारित शब्दों की भी अपने प्रकार की ध्वनि ऊर्जा तरंगें होती हैं। दोनों ही प्रकार की ऊर्जा तरंगें हमारे मन पर प्रभाव डालती हैं और हमारे मन को अंतर्मुखी बनाती हैं। ज्ञान (मुरली) चूंकि अलग अलग प्रकार के भाव संस्थान और विचार संस्थान से अभिव्यक्त होती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के ज्ञान (मुरली) की अभिव्यक्ति में फर्क हो सकता है। ज्ञान को भी मुरली की संज्ञा दे दी गई है। संगीत की मुरली भी आत्मा को मन की पूर्णतः शांतचित्त (निरसंकलप्ता) की स्थिति तक ले जाती है। ज्ञान मुरली को भी यदि अन्यान्य भाव से दत्तचित्त होकर सुना (पढ़ा) जाता है तो वह ज्ञान मुरली भी आत्मा के मन पूर्णतः शांतचित्त (निरसंकल्पता) की स्थिति तक ले जाती है। दोनों का अन्तिम परिणाम एक जैसा ही होता है।
श्री कृष्ण जीवन को एक नाटक के रूप में देखते हैं। इसलिए श्री कृष्ण को इस सृष्टि नाटक में एक रसीले अंदाज में अभिनय करते हुए दिखाया हुआ है। उनके हाथ में संगीत की काठ या धातु की मुरली जो दिखाई हुई है; यह भी उनके रसीले अंदाज को दर्शाने के लिए ही दिखाई है। चूंकि श्री कृष्ण स्वभावत: ही रसिक व्यक्तित्व वाले हैं, इसलिए वे जहां भी होते हैं वहां का माहौल मधुबन जैसा ही बना देते हैं। इसलिए कहा गया है कि मधुबन में मुरलिया बाजे रे....मनुष्य स्वभावत: ही ज्ञान की पिपासा जिज्ञासा रखता है। इसलिए ज्ञान (मुरली की) की इतनी आन्तरिक आकांक्षा और ज्ञान (मुरली का) का गोप गोपियों के मानसिक पटल पर मुरली का इतना ज्यादा प्रभाव दिखाया बताया गया है।
ज्ञान की मुरली का स्पष्ट और विस्तृत भावार्थ भी समझ लेना जरूरी है। ज्ञान मुरली का भावार्थ होता है कि एक विशेष प्रकार की उच्चतम मानसिक अवस्था और भावदशा के द्वारा अभिव्यक्त हुए ऐसे प्रवचन जिनमें व्यावहारिक विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, कर्म विज्ञान, भक्ति विज्ञान, आध्यात्मिक ज्ञान विज्ञान आदि के ज्ञान का समावेश हो। अर्थात वह ज्ञान विज्ञान जो भौतिक, मानसिक और आत्मिक अवस्था के विकास में उपयोगी हो, ज्ञान मुरली कहता है। उपरोक्त ज्ञान विज्ञान मानसिक अवस्था की जितनी अधिक उच्चता से अभिव्यक्त होता है उतना ही वह ज्ञान विज्ञान "ज्ञान मुरली" का रूप लेता जाता है।