जन्मों का रिश्ता भाग-03
जन्मों का रिश्ता भाग-03
समीर फोन में बात करते आ रहा था, की सामने से एक तेज रफ्तार गाड़ी निकली और सड़क का कीचड़ समीर की शेरवानी में आ गया। ओह्ह मैं गाड़ी से उतर गया। समीर के पास आया औऱ बोला कोई बातनहीं, मेरी अलमारी में नया पर्पल कोट रखा पिंक शर्ट के साथ जा जल्दी से कपड़े बदल कर आ जा। मैं यही तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ। समीर ने कहा "नही यार!! तुम जाओ हम पहले ही लेट हो चुके हैं, वादा रहा तुम्हारे रिंग पहनाने के पहले पहुँच जाऊँगा। "इससे पहले की
मैं औऱ कुछ कह पाता, माँ का कॉल आ गया। मैं समीर को छोड़ कर आ गया। न जाने क्यों बहुत घबराहट हो रही थी।
इधर समीर कमरे में आया तो जैसे ही अलमारी खोलने वाला था कि उसके पैरों के नीचे डायरी उल्टी पड़ी थी। समीर उसको उठा के रख ही रहा था, की हवा के झोंकें से पन्ना खड़खड़ाया। डायरी के अंतिम पन्ना खुला हुआ उसके हाथ मे था। समीर को समझते देर न लगी, ये किसने लिखा , होगा। तुरन्त पहले पेज की लिखावट पढ़ने बैठ गया। ईधर लगातार मैं समीर को कॉल किये जा रहा था। समीर डायरी किनारे
रखकर सिर पकड़कर बैठ गया। समझनहीं आ रहा था कि वो क्या करें। एक बार के लिए समीर के मन में ख्याल आया कि उस डायरी का अंतिम पन्ना ही फाड़ दे। जिस पन्ने से मैं आज तक अनजान था। मम्मी-पापा का आना, फिर स्वास्थ खराब, औऱ फिर सगाई। फिर समीर भी तो आया हुआ था। शायद!आगे कुछ लिखता तो देख भी लिया होता। कुछ देर बाद समीर कपड़ा बदलना तो दूर, कीचड़ भी बिना साफ किये। होटल की तरफ निकल गया, जहाँ मेरी सगाई हो रही थी। इधर फलदान(एक रश्म जिसमे लड़की के ससुराल पक्ष के लोग लड़की के आँचल में शगुन डालते जाते है। )
हो चुका था। रिंग सेरेमनी भी शुरू होने वाली थी हम लोग गार्डन एरिया में आ गए। स्टेज में रिद्धि आ चुकी थी। बेशक सुंदर दिख रही होगी, पर मैने एक भी बार रिद्धि की तरफनहीं देखा। मैं समीर का इंतजार करना चाहता था। उसके आने के बाद ही रिंग पहनाना चाहता था। शुभमुहूर्त की बात कहकर पंडित जी ने रिद्धि को अंगुठी पहनाने का इशारा किया। रिद्धि मेरे अनामिका ऊँगली में रिंग पहना चुकी थी। मैं अब भी किसी चमत्कार के इंतजार में था। बार -बार नजरें समीर को ढूंढ रही थी। इस चक्कर में रिद्धि को अंगूठी पहनाते हुए फिसल कर अंगूठी स्टेज से नीचे गिर गयी। तभी मुझे समीर दिखा, ऐसे दौड़ते आ रहा था मानो आज उसकी आखिरी ट्रेन भी छूटने वाली हो। इधर अगुँठी ढूंढने में सफलता हासिल हुई। इससे पहले की समीर मुझ तक पहुँच पाता अगुँठी मेरे हाथों में आ गयी, पर मैं अब भी समीर के पास आने का इंतजार कर रहा था।
पंडित जी ने फिर इशारा किया। मैं अंगूठी रिद्धि के अनामिका उंगली में पहनाने लगा। नजरें एक बार फिर समीर की ओर गयी। वो चिल्ला कर कुछ बोल रहा था। अब भी मुझसे दूर भीड़ का हिस्सा था। न जाने क्या कहना चाह रहा था, तेज संगीत, और लोगों के शोर में उसकी आवाज गुम हो गयी। मैं अगुँठी अभी भी नहीं पहनाया था। समीर कहके पलट कर देखा तो समीर करीब आ चुका था। ओह्ह शीट ! उसके मुँह से निकला, इससे पहले की मैं कुछ कह पाता। लोग रिंग सेरेमनी के लिए स्टेज पे आते जा रहे थे। समीर फिर पीछे हो गया। रिद्धि भी समीर की हरकतों को देख रही थी। न जाने क्या सोच रही थी। मेरा बेस्ट फ्रेंड है, रिद्धि की तरफ बिना देखे मैंने बोला। तब तक समीर पुनः करीब आ गया। रिद्धि की तरफ अभिवादन की मुद्रा में हाथ जोड़े। मैं समझनहीं पा रहा था, की आखिर इसे हुआ क्या, कभी समीर को देखता , तो कभी उसके कीचड़ लगे शेरवानी को। समीर क्या हुआ ?, समीर ने कुछनहीं की मुद्रा में गर्दन हिला दी। न जाने कौनसा तूफान अंदर लिए घूम रहा था। ईधर पंडित जी अगुँठी के लिए बोले। मैंने अगुँठी पहनाने के लिए हाथ बढ़ाते हुए समीर को अपनी कसम दे डाली। समीर कान में कुछ फुसफुसाया। रिद्धि की अनामिका ऊँगली अब भी मेरे हाथ में थी, पर मेरा हाथ कंपकपाने लगे। समीर ने मुझे सम्हालते हुए अगुँठी रिद्धि के उँगली में पहना दी। पुष्प वर्षा होने लगी सबको यही लग रहा था कि मैंने अगुँठी पहनाई, पर अगुँठी समीर ने मेरे हाथ की आड़ में हड़बड़ी में खुद ही पहना डाली थी। जिसे मैं समझनहीं पाया पर शायद रिद्धि ने देख लिया था। मैं धम्म से सोफे में गिर गया। यूँ लगा आसमान फट जाएगा। मेरी हृदयगति रुक जाएगी। खुद को इतने देर से सम्हाले हुए था। , आँखे अब छलछला आई। आसमान से हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गयी। लोग कहने लगे शुभ शगुन है, पर मुझे ऐसे लग रहा था, आज मेरे दिल के दर्द में बादल की आँखे भी छलछला आई। "सम्हालो खुद को गगन"मुझे समीर की आवाज भी सुनाईनहीं दे रही थी, बस घण्टियाँ बज रही थी, दिलोदिमाग में जिसकी शोर में सबकी आवाज दब गई। पापा और कुछ रिश्तेदार स्टेज में आये। "क्या हुआ गगन को इतना परेशान क्यो लग रहा है ?"पापा ने कहा समीर ने " बी पी .लो कह दिया। "
डिनर के लिए रिद्धि अपनी सहेलियों के साथ टेबल में थी, मेरा इंतजार करते हुए। मैं खुद को सम्हालनहीं पा रहा था। इतना लापरवाह मैं कैसे हो सकता हूँ। मैं क्या करूँ कुछ समझनहीं आ रहा था। इधर पूरे मेहमान जिनके केंद्रबिंदु मैं, और रिद्धि थे। मैं खाने के टेबल तक तो गया। अगले ही पल बिना एक निवाला गटके गाड़ी की तरफ भागा। मेरे लिए खुद को सम्हालना मुश्किल हो रहा था। मैं एकांत चाहता था। भीड़ से दूर कहीं , जाकर अकेले में, खुद की किस्मत पर रोना चाहता था। मेरे पीछे -पीछे समीर भी दौड़ता आया। तु जा सब सम्हाल लेना, मैंने समीर से कहा!"नही मैं तुझे अकेलेनहीं छोड़ सकता मेरे भाई!"समीर ने कहा। समीर के लाख बोलने के बाद भी मैं उसे पीछे छोड़कर आ गया।
रास्ते में एक नदी पड़ती है। उसके किनारे बैठ कर फुट-फुट कर रोने लगा। कुछ देर बाद कंधे पे किसी के हाथ का स्पर्श हुआ ! पलटकर देखा तो, समीर था। मुझे माफ़ कर दे मेरे यार!, मैंने गलत समय पर तुम्हे बताया, पर तुमने अपनी कसम दे दी। मैं क्या करता, नही समीर!, अच्छा हुआ, तुमने जो बता दिया। एक तसल्ली, एक सुकून तो मिला। अब तो मैं उसे कभी नहीं भूल पाऊँगा। रिद्धि !नहीं...ये क्या हो गया। मेरी उससे सगाई हो गयी, सगाई के बाद ..मैं उसे कैसे छोड़ सकता हूँ। क्या करूँ तुम्ही बताओ ?"एक बार उससे बात कर लो नम्बर तो होगा", समीर ने कहा !हाँ है, पर क्या बात करूँ, क्या कहूँगा, तुमसे प्यार करता हूँ, पर सगाई किसी ओर से हो गयी। काश कि ये सब नहीं हुआ रहता। मैं आजाद रहता, जिंदगी दोराहे पे तो नहीं खड़ी होती।
समीर ने कहा !"अच्छा ठीक है कल बात करते है अब चलो घर, सब परेशान हो रहे होंगे। "दो बार घर से कॉल आ गया।
मैं समीर के साथ घर आ गया। सब थके थे, थोड़ी बातचीत के बाद सोने चले गए। कितनी खुश लग रही थी, मम्मी !, रिद्धि को बहू के रुप में पाकर। मैं कैसे इनसे इनकी खुशियां छीन लूँ। फिर रिद्धि उसका क्या दोष !, दोष तो मेरा है, मना कर देता की, कहीं रिश्ता तय मत करो, भरोसा रखता भगवान पे। बोझिल कदमों के साथ कमरे में आकर , बिस्तर पे निष्प्राण सा गिर गया। समीर मुझे सोया देख, मेरे पैर से जूते, मोजे निकाला। समीर काफ़ी देर की खटर-पटर के बाद सो गया। सोने के पहले, मेरे बेतरतीब कमरे को ठीक किया।
पर मैं तो अर्द्धचेतना में था। समीर की गहरी नींद लगते ही उठ गया।
मैं इधर-उधर कुछ ढूंढने लगा। दराज, अलमारी जगह-जगह पूरा कमरा अस्त-व्यस्त हो गया। न जाने समीर ने मेरी डायरी क्यों छुपा दी थी। अचानक कबर्ड के अंदर कपड़े के नीचे ठुसे डॉयरी पर नजर पड़ी। मैं दबे पाँव बालकनी में चला गया। स्ट्रीट लाइट की आती मध्यम रोशनी में, आँखे, फाड़-फ़ाड़कर उस लिखावट को पढ़ने की कोशिश कर रहा था। चाहकर भी पढ़नहीं पा रहा था। अक्षर को छू -छूकर उसके वजूद को महसूस करने की कोशिश कर रहा था। डायरी को सीने से लगाया था, की हल्की झपकी आ गयी। अचानक नींद खुली उस पन्ने को फिर पढ़ने की कोशिश कर रहा था, की टार्च की रोशनी डायरी पे पड़ी। समीर ने मेरे कंधे पे हाथ रखा। मैं डायरी पढ़ने लगा। एक -एक शब्द में उसने मानो अपना दिल निकाल कर रख दिया हो। अंतिम पंक्ति पढ़कर तो हँसी आ गयी।
"मैं शादीशुदानहीं हूँ बुध्धू ! "रैनी"
रैनी भी मुझसे प्यार करती है गगन, मैं...मैं बतानहीं सकता कि मैं कितना ज्यादा खुश हुँ। उसने... उसने
मुझे प्रपोज़ किया गगन। मैं डायरी को अपने सीने से लगा आँख बंद कर लेता हूँ।
"गगन क्या सोच रहा नम्बर है तुम्हारे पास"समीर ने कहा!हाँ है न। "तो लगाना इतना सोच क्यो रहा है"
समीर ने कहा। अरे तो इतनी सुबह -सुबह यार वो क्या सोचेगी। समीर:- "कुछ भी सोचे पर अब तू बिना एक भी पल गंवाये उससे बात कर ले। "अच्छा ठीक है पर मैंने कहा !."पर वर कुछनहीं। "समीर ने कहा मैंने कहा ठीक है और रिद्धि उसे क्या कहूँगा। वैसे भी वो बहुत तेज है मुझे कच्चा चबा जाएगी। समीर ने कहा!"रिद्धि को मैं कॉल करता हूँ, उसके पास अभी तक तुम्हारा नम्बरनहीं है। मेरे नम्बर से बात करके मामला यही खत्म करते है। मैंने कहा!"समीर मुझे सोचने का मौका तो दे, घरवाले से क्या कहूँगा। "अरे यार सोच-सोच कर तू तो देवदास बन गया है। अब मेरे हिसाब से काम कर, ज्यादा अपना दिमाग मत लगा। वैसे भी कल शाम को मुझे वापस भी जाना है। "समीर की बात अनसुनी कर मैंने उसका फोन , उसके हाथ से ले लिया। जिसमे वो रिद्धि का नम्बर डायल हो चुका था। शायद रिंग भी चली गयी। तुरन्त मैंने कॉल काटा। 7 बज चुके थे, किसी ने दस्तक दी दरवाजे पर मैं समीर के साथ खुद को सामान्य करते हुए दरवाजा खोला।
मम्मी सामने कॉफ़ी का कप लेकर खड़ी थी। "अरे मेरे लाडले ! इतनी जल्दी उठ गया। चल जल्दी से तैयार हो जा। हमे स्टेशन छोड़कर आ जा। सगाई यहाँ से कर ली, पर शादी तो गाँव से ही करेंगे न, बहुत तैयारी करनी है, अब इस मचिस के डिब्बे में कुछ कामनहीं हो सकता। "मम्मी एक सांस में सब कहकर चली गयी।
समीर तू चले जा यार ! मैं बहुत थका हुआ हूँ। समीर तुरन्त तैयार होकर छोड़ने जाने लगा। जाते समय पापा ने सर पे हाथ रखा। "बेटा कोई भी समस्या हो दिल में मत रखना, हमें बता देना। "पापा ने कहा मैंने पैर छूते हुए कुछनहीं है कहकर गर्दन हिला दी, पर मम्मी से लिपट गया। कुछ दिन और रुक जाओ। पापा ने कंधे पे हाथ रखा और बाहर जाने लगे, ये कहकर की शादी की खरीददारी यही से करेंगे, तब कुछ दिन आकर रुक जाएंगे। वो लोग चले गए, पर शादी का नाम सुनकर फिर से मन खराब हो गया। मेरी सगाई हो चुकी मैं उफ्फ मैं परेशान होकर बिस्तर पर निढाल हो गया।
कुछ देर बाद समीर आया, मुझे कॉल करने के लिए बोला। उसके कहने पर मैंने नम्बर डायल किया, सर्विस मेंनहीं है बताया, फिर भी 10...11 बार! मैं नम्बर को डायल करता रहा। समीर ने मोबाइल हाथ में लेकर जब नम्बर डायल किया तो फिर से वही बताया। अब..अब क्या करे समीर! मैं तो कुछ भीनहीं जानता उसके बारे में, की वो कहाँ रहती है, कहाँ काम करती है। "ओके तुम्ही पहली बार कहाँ मिली थी। "समीर ने पूछा मैंने बताया। "चल जल्दी तैयार हो जा मेरे यार!, आज तो तेरा प्यार ढूंढ के रहेंगे। समीर ने कहा!उसके नहाकर आते तक , मैं अब भी उसी स्तिथि में बैठा था। समीर ने टॉवेल मेरे कंधे में डाल मुझे उठाया। मैं भी कुछ देर बाद रेडी हो गया। तब तक समीर मेरी फेवरेट स्ट्रांग कॉफ़ी बनाकर ले आया। कुछ देर बाद हम दोनों हवा से बात करते, उस मोड़ तक पहुंच गए जहाँ वो पहली बार मिली थी। 'अब'...मैंने समीर की ओर देखते हुए कहा !
समीर ने कहा "कि शाम के वक्त हर कोई घर लौटते है", मतलब! "मतलब ये की वो यहाँ आस
-पास काम करती हॉगी। "समीर ने मेरी ओर देखते हुए कहा। और हम दोनों आस-पास के एरिया घूमने लगे।
सब जगह से थक हारकर हम जिसे पहले छोड़ दिये थे, वहाँ गए। "थियेटर कम्पनी !" बेहद शानदार औऱ भव्य
हमने रैनी के बारे में पूछना चाहा पर सब व्यस्त थे। रिशेप्सन पे बैठे। कॉफी देर तक कोईनहीं आया तो अंदर गए। जहाँ रैनी की खूब सारी तस्वीरें लगी थी। किसी में वकील तो किसी में पुलिस ऑफिसर की वर्दी में न जाने कितने अवार्ड लेते तस्वीरें थी। तभी नजर ठिठकी रैनी को तस्वीर जिसमें वो एक वयस्क महिला के रूप में खूब सारी चूड़ियां, माँग सिंदूर लगाई थी। मैं उस तस्वीर को स्पर्श करने लगा, की यहीं से मैं गलतफहमी का शिकार हुए। शायद वो ड्रेस तो चेंज की होगी और मेकअप उतारते वक्त मांग में सिंदूर रह गया, जो बारिश के पानी में फैल गया होगा। तभी किसी की चिल्लाने की आवाज आने लगी। "रैनी के जैसा करो उसके भाव , चरित्र में पूरी तरह उतर जाता है। तुमने कितनी सारी रैनी की वीडियोस देखी फिर भी। तुम समझनहीं पा रही कि तुम्हे क्या करना है। "शायद डायरेक्टर था, जो जूनियर आर्टिस्ट को समझा रहा था।
"मैं रैनी की जगहनहीं ले सकती"जूनियर आर्टिस्ट खीजते हुए लगभग बोली, और रोते हुए वहाँ से चली गयी। कहीं रैनी ने यहाँ का काम करना छोड़ तोनहीं दिया होगा। कई सारे प्रश्न मन में उठ रहे थे। तभी समीर जाकर डायरेक्टर से बात किया, शायद रैनी के बारे में पूछा। पतानहीं डायरेक्टर ने क्या कहा! समीर परेशान सा हो गया। मैं भी समीर के करीब गया। समीर अब भी बात कर रहा था, औऱ मुझे चलने का इशारा किया। मैं पूरी बात जाने बिना जानानहीं चाह रहा था। समीर गाड़ी स्टार्ट किया, हम वहाँ से निकल गए। मैंने समीर से बहुत जिद की तो समीर ने सड़क किनारे उस पेड़ के पास गाड़ी रोकी। "तुम्हे रैनी से मिलना है न बस चलो हम वही जा रहे है। "समीर ने कहा उसके घरनहीं!, तो..."बस चलो" समीर ने कहा ! पता नहीं क्यो जाने के पहले बैठ गया, घुटने के बल और जहाँ वो खड़ी थी। उस जगह की मिट्टी हाथों में भर लिया। पतानहीं ये सब क्या हो रहा है। समीर ने गाड़ी का हॉर्न बजाया मैं चुपचाप उसके पीछे बैठ गया। पूरे रास्ते समीर मौन रहा, न जाने क्यों मेरी भी बातचीत करने की इच्छानहीं हुई। रैनी की हर याद एक-एक करके सामने आती जा रही थी। मेरी दिल की धड़कन बहु तेज हो गयी थी। करीब एक घण्टे बाद हम शहर के सबसे बड़े हॉस्पिटल के सामने थे। गाड़ी से उतरने के बाद जैसे ही नजर हॉस्पिटल पर पड़ी, मेरे कदम लड़खड़ा गए। समीर ने मुझे सम्हालते हुए बताया कि उसका एक्सीडेंट हो गया है। मैं दौड़ते हुए रिसेप्शन की तरफ पहुँचा, जल्द से जल्द रैनी के पास पहुँचना चाह रहा था।
