Brajesh Singh

Abstract Fantasy Comedy

2.5  

Brajesh Singh

Abstract Fantasy Comedy

जंगल

जंगल

2 mins
15.4K


वो सड़क पर औंधी सी लेटी है। वो सो रही है। नहीं! शायद वो जग रही है। वो शायद अब उठ के काटेगी? नहीं! शायद रोएगी या चिल्लाएगी? नहीं! वो शायद सो ही रही है। वो अब बहुत देर तक सोएगी।

“वो क्या कर रही है?
“वो शायद सपने देख रही है।”

“वो सपने में क्या देख रही है?”
“उसके सपने में एक कबूतर है। कबूतर बाज बन रहा है। बाज ने एक कुत्ते पे झपट्टा मारा है। बाज अब कुत्ता हो गया है। कुत्ता भौंक रहा है। लड़की चिल्ला रही है। कुत्ता लड़की को काट रहा है। एक खरगोश आ रहा है। उसने कुत्ते को मार डाला है। लड़की ने खरगोश को अपनी गोद में उठा लिया है। खरगोश अब भेड़िया बन गया है। वो लड़की को नोच रहा है। लड़की चींख रही है। चिल्ला रही है। दूर से सियारों के हुवां हुवां की आवाजे आ रही है। भेड़िया लड़की को खा रहा है। सियारों की आवाज तेज हो रही है। सियार कहीं आस पास में है, वो नजदीक आ रहे हैं। भेड़िया लड़की को आधा खा चुका है। सियार नजदीक आ गए हैं। भेड़िया अब खरगोश बन गया है। सियार आधी खायी लड़की को घेर के चिल्ला रहे हैं। खरगोश अपने बिल में चला गया है।”

“यहाँ भीड़ में ये कौन लोग हैं?”
“ये सियारों का एक झुण्ड है।”

“ये लोग क्या करते हैं “?
“ये लोग चिल्लाते हैं, चींखते हैं। जब भी कोई लड़की सड़क पर औंधी लेटी पायी जाती है तो ये चिल्लाते हैं। फेसबुक पर काली डीपी लगाते हैं। महिलाओं के हालातों पर चर्चा-परिचर्चा करते है। मोमबत्तिया जलाते हैं। फिर चुप हो जाते हैं। फिर किसी और लड़की के सड़क पर लेटने का इन्तजार करते हैं।”

तुम कौन हो?
मैं खरगोश हूँ। नहीं, मैं भेड़िया हूँ। नहीं शायद मैं बाज हूँ, या शायद कबूतर या, या शायद कुत्ता या सियार। मुझे नहीं पता मैं कौन हूँ। मैं….मैं सब कुछ हूँ।

तुम कौन हो?
मैं एक पत्रकार हूँ।

तुम कल इसकी खबर दिखाओगे?
हाँ।

क्या दिखाओगे?
जंगल में मिला बोलने वाला खरगोश। नहीं सियार नहीं नहीं भेड़िया नहीं कबूतर……..
मैं ये कल डीसाइड कर लूँगा। चलो एक सेल्फी लेते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract