"जल ही जीवन है"
"जल ही जीवन है"


" बेटा वेदांत ! अब बस भी करो ! कब से नहा रहे हो ? कितना पानी गिराओगे ?"
" क्या मम्मा ! थोड़ा और नहाने दो न ! कितना मजा आ रहा है नहाने में ! और फिर हमारे बंगले में पानी की कोई कमी थोड़े न है ? इतना सारा पानी तो हमेशा भरा रहता है हमारे टैंक में ! "
अर्चना अपने दस वर्षीय बेटे वेदांत को पानी बचाने की अक्सर सलाह देती रहती लेकिन मानना तो दूर उसका एक ही जवाब होता ' इतना सारा पानी तो है न मम्मा ! '
पौधों में पानी डालना हो साईकल धोना हो या कोई भी काम हो उसे पानी बहाना और पानी के साथ खेलना बहुत अच्छा लगता था जिसकी वजह से वह माँ की बात भी अनसुनी कर देता।
वेदांत के साथ साप्ताहिक बाजार से लौटते हुए अर्चना जानबूझकर झुग्गियों के रास्ते अपने घर की तरफ चल पड़ी।
जगह जगह कचरे के ढेर , बेतरतीब बनी झुग्गियाँ और मैले कुचैले कपड़े पहने नंग अधनंगे बच्चों को देखते हुए वेदांत कुछ सोचते हुए माँ के साथ चल रहा था।
तभी पानी के एक टैंकर वहाँ आ पहुँचा और बस्ती में एक शोर सा मच उठा। क्या बड़े क्या बूढ़े जिसके हाथ जो बर्तन मिला , लेकर टैंकर की तरफ दौड़ पड़े और कतार में लग गए।
वेदांत ने देखा एक सात आठ वर्षीया बच्ची भी अपने हाथों में दो तीन बड़े डब्बे लिए कतार की तरफ बढ़ रही थी। मैले कुचैले कपड़े पहने डब्बों को संभालते बच्ची की बेबसी देखकर वेदांत को उस बच्चे का बचपन इन्हीं कामों में डोलता नजर आया साथ ही बाथरूम में अपनी पानी की फिजूलखर्ची याद आ गई।
"मम्मा पानी के लिए इतनी तकलीफ झेलनी पड़ती है ? मुझे पता नहीं था।"
" हाँ बेटा ! ये लोग यहीं से पानी भरते हैं और पूरे दिन इसी तीन चार बाल्टी पानी से काम चलाते हैं।"
"इतने कम पानी में पूरा दिन ? फिर तो ये लोग पानी बहुत संभालकर खर्चा करते होंगे। है ना मम्मा ?"
"हाँ बेटा! "
" सरकार इनके लिए कुछ नहीं करती ?"
"करती है ना! पर हमारा भी फर्ज बनता है कि हम पानी का इस्तेमाल सोच-समझकर करें। इसलिए कहती हूँ ना कि तुम भी पानी का इस्तेमाल सोच समझ कर किया करो। ताकि पानी बचाया जा सके और वह समाज के हर वर्ग तक पहुँच सके।"
"अब से मैं भी पानी बर्बाद नहीं करूँगा। कल से हम अपनी गाड़ी और मेरी साइकिल पाइप से नहीं धोकर बाल्टी में पानी लेकर धोएंगे और फूलों में भी पाइप की बजाय बाल्टी से ही पानी देंगे। ग्लास में भी उतना ही पानी लूँगा जितने की जरूरत होगी।"
"अब मै समझ गया कि तुम सब्ज़ी धोए हुए पानी को बाल्टी में इक्कठा क्यों करती हो, ताकि उस पानी को पौधों में डाल सकें, इसलिए ना मम्मा ?" वेदांत ने मुस्कुरा कर कहा।
"हाँ , बिल्कुल ! और हाँ ! ब्रश करते समय जो तुम पानी से खेलते हो ना उसका भी ध्यान रखना है। .....फिर तुम स्कूल भी जाते हो इसलिए भी तुममें ये समझदारी तो होनी ही चाहिए। "
"हाँ मम्मा !" बरबस ही वेदांत को उस बच्चे का स्मरण हो आया। इतना कहते हुए वो अर्चना से लिपट गया।