जिंदगी कोई खेल नहीं
जिंदगी कोई खेल नहीं
इरा मीठे सपने लेकर ससुराल आई। धीरे धीरे उसके सपने बिखरने लगे। पति रोहित की जुआ, शराब पीने की लत थी।शादी से पहले उसका जो रूप था वह छद्म था इरा के सारे अरमान मिट्टी में मिल गए।
हद तो जब हो गई जब सहकर्मी के साथ ऑफिस में रोहित को गलत अवस्था में देखा।
टूटे दिल के साथ घर लौटी सास के गले लगते रो पड़ी दुख की पराकाष्ठा हो गई जब सास ने कहा पुरुष तो ऐसे ही होते हैं ! चीख पड़ी इरा अगर मैं होती उसकी जगह तो आप मुझे स्वीकार करती ? उसके शब्द के संबोधन प्रदान करतीं.... जिंदगी कोई खेल नहीं मुझे नहीं चाहिए किसी का संबल कहती हुई वह घर से निकल गई अपने अस्तित्व की तलाश में !