जिम्मेदारियां
जिम्मेदारियां
यह कहानी एक शर्मा परिवार के लड़के की कहानी है यह एक मध्यमवर्गीय और छोटे परिवार की कहानी है चलिए मिलते हैं शर्मा परिवार से विनोद शर्मा इनकी पत्नी सरला शर्मा उनके दो बच्चे थे एक प्रांशु शर्मा और पिंकी शर्मा इस कहानी में मुख्य भूमिका प्रांशु शर्मा की है कहानी के शीर्षक से समझ गए होंगे कि प्रांशु की जिम्मेदारियों की कहानी है चलिए जानते हैं शर्मा परिवार के बारे में विनोद जी पेशे से पत्रकार थे सरला जी भी प्राइवेट स्कूल में टीचर थी ईश्वर की कृपा से सब कुछ अच्छा चल रहा था दोनों बच्चे भी अच्छी पढ़ाई कर थे पिंकी आठवीं क्लास में थी और वही प्रांशु छठवीं क्लास में थे फिर एक दिन अचानक विनोद जी की तबीयत खराब हो गई।
वह चक्कर खाकर गिर गया जब उनको अस्पताल ले जाया गया तो पता चला उनको कुछ सिर की नस जगने की वजह से उन्हें चक्कर आ रही है यह गंभीर समस्या उनके सामने आ गई डॉक्टर ने उनका इलाज करना शुरू कर दिया उनको कंप्लीट बेड रेस्ट कहा गया जैसे मानो शर्मा परिवार में कोई ग्रहण सा छा गया अब यहां सरला जी के ऊपर सारी जिम्मेदारी आ गई पति की तबीयत खराब थी बच्चों का स्कूल घर के सारे जिम्मेदारी टीचर शिप की नौकरी वह अकेली सब कुछ संभाल रही थी इस बात का दोनों बच्चों पर भी बड़ा असर हुआ इनकी तो पढ़ाई में बहुत तेज थी वही प्रांशु पढ़ाई से दूर भागने लगे उन्हें अपनी मां की तकलीफ से चिंता होने लगी छोटे उम्र में प्रांशु ने अपनी मां की मदद करने की सोच ली प्रांशु की उम्र उतनी नहीं थी कि वह कुछ काम कर सके पर फिर भी उन्हें कुछ करना था उन्हें कुछ ऐसे लोग भी मिले जो गलत तरीके से काम करते थे पर उनकी मां के संस्कार थे जो की प्रांशु ने गलत रास्तों को नहीं चुना और कोई गलतियां नहीं की।
इधर सरला जी की परेशानी बढ़ते जा रही थी बेटा पढ़ाई से दूर हो रहा था पति की तबीयत की चिंता बढ़ी हुई थी इधर घर की पूर्ति कैसे करें यह सोच सोच कर वह परेशान हो रही थी फिर प्रांशु ने न्यूज़ पेपर बांटने से शुरुआत की फिर धीरे-धीरे उन्होंने कुछ और काम देखा जिसने उन्हें थोड़ी बहुत इनकम मिलने लगी पढ़ाई भी चल रही थी ऐसा करते करते हो ना दसवीं पास कर लिया और पिंकी ने भी बारहवीं की परीक्षा में अव्वल दर्जे से पास हुई प्रांशु ने सोचा कि कुछ ऐसा काम करो जो काम में मजा भी आए और सारी जिंदगी काम के जरिए ही वह अपनी जीवन यापन कर सकें विनोद जी की तबीयत में भी थोड़ा सुधार आने लगा था पर उन्होंने अपनी पत्रकारिता छोड़ दी थी।
तबीयत के चलते और वह घर में ही रहते थे प्रांशु ने अपने पिता से बात की वह कुछ ऐसा काम करना चाहते हैं जो वह हमेशा कर सके पिता ने पूछा क्या करना चाहते हो बेटा जिससे तुम्हें खुशी मिले वह इतने पढ़े-लिखे नहीं थे कि वैसा कोई काम कर सके जो ऊंचे लेवल का हो क्योंकि उनकी पढ़ाई से तो मन वैसे ही कम हो चुका था उन्होंने जैसे-तैसे करके दसवीं पास किया था उन्हें गाड़ियों से बहुत प्यार था और बाहर बाहर घूमने का बहुत शौक था तो उन्होंने सोचा क्यों न ट्रेवलिंग का काम किया जाए उन्होंने ट्रेवल्स का काम शुरू किया जिसमें उनको उनके पिताजी ने मदद किया कुछ पूंजी उन्होंने लगाई कुछ प्रांशु ने जमा किया था उन्होंने लगा दो गाड़ियां खरीदी उन्होंने शुरुआत कब से चला कर शुरू किया यहां उनकी तरक्की बढ़ने लगे 2 गाड़ियों से उनके पास 4 गाड़ियां हो गए कुछ ड्राइवरों की भी चलाने लगे फिर सरला जी ने प्रांशु को बारहवीं पास करने के लिए प्रेरित किया उन्होंने भी बारहवीं पास किया उसके बाद उन्होंने पढ़ाई रोक दी क्योंकि काम का प्रेशर बढ़ने लगा था और घर के जिम्मेदारियां जैसे-जैसे बढ़ने लगी थी ।
प्रांशु की जिम्मेदारियां बढ़ी हुई थी प्रांशु को घर खरीदना था क्योंकि वह किराए के मकान पर रहते थे और बहन की पढ़ाई भी चल रही थी क्योंकि वह बहुत पढ़ाई में तेज थी वह आगे बढ़ रही थी बहन की शादी की जिम्मेदारी भी प्रांशु के सर पर थी इसलिए उन्होंने अपनी पढ़ाई को छोड़कर काम पर फोकस रखा रात दिन एक कर दिया काम में उन्होंने अपने ल
िए कभी नहीं सोचा सिर्फ अपनी जिम्मेदारियों को सबसे पहला प्राथमिकता दी फिर कहते हैं ना जिसके लिए कोई नहीं सोचता उसके लिए भगवान सोचने लग जाते हैं उम्र का पड़ाव भी ऐसा था जहां दिमाग छोड़कर दिल और मन काम करने लगते हैं प्रांशु की लाइफ में प्यार का आगमन होना शुरू हो गया उन्हें कैसी लड़की मिली जो उनकी ही तरह जिम्मेदारियों से बंधी हुई थी।
प्रांशु अपने दोस्त की बहन की शादी में गए थे वहां उनकी मुलाकात सुप्रिया से हुई जो सेम उनकी तरह थी उनकी बातचीत शुरू होने लगे आपस में एक दूसरे की बात किया करते थे हम दोनों को एक दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा छोटी-छोटी बातों में खुशियां मनाने लगे अच्छा समय बीत रहा था सुप्रिया अपनी परेशानियों से जूझ रही थी संघर्ष तो दोनों की जिंदगी में थी प्रांशु को काम थोड़ा स्लो होने लगा उसे लगने लगा कि वह अपने काम में फोकस नहीं दे पा रहा है मैं सुप्रिया से बात की कि वह अपने प्यार के चलते अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हो रहा है।
उसे अपनी बहन की शादी और घर खरीदना है उसके लिए उसे पैसे जोड़ने हैं अगर वह ऐसा ही रहा तो वह अपनी जिम्मेदारियां छोड़ सिर्फ प्यार ही सहारे रह पाएगा सुप्रिया से कहा वैसे भी हमारे धर्म अलग है तुम राठौर गुजराती हो और मैं शर्मा ब्राह्मण हम दोनों का कभी मेल हो भी नहीं सकता इसीलिए हमें दूर होना ही होगा तुम खुद अपनी जिम्मेदारियों से जूझ रही सुप्रिया ने बहुत समझाने की कोशिश की प्यार खत्म करने से कुछ नहीं होगा इसलिए अपनी जिम्मेदारियों को निभाना है पता है लेकिन उसके लिए प्यार खत्म करना जरूरी नहीं है।
लेकिन प्रांशु को यह लगता था कि जब हमारा मेल ही नहीं है तो बातें करने से क्या फायदा मिलने से क्या फायदा इसलिए दूरियां बनाना शुरु कर दिया प्रांशु के एक जिगरी दोस्त भाई प्रतीक पांडे सब कुछ थे उन्होंने भी बहुत समझाया प्रांशु को पर प्रांशु दिल से ठान लिया था सुप्रिया ने भी कोशिश नहीं छोड़ी हर वक्त प्रांशु से बात करने की कोशिश करती रही पर प्रांशु ने कोई रिस्पांस नहीं दिया सुप्रिया टूट सी गई थी लेकिन उसने सोचा जीवन जिम्मेदारियों से मिली है उसे पूरी करनी है उसे इसलिए अपनी जिम्मेदारियों से उसने रिश्ता बनाया उसे पूरा करने चल पड़ी प्रांशु ने भी अपनी जिम्मेदारियों को प्यार समझ कर उसे निभाता चला गया ।
समय बीत गया कुछ सालों बाद प्रांशु ने घर खरीद लिया उसने पढ़ाई भी कंप्लीट कर ली ग्रेजुएशन कंप्लीट कर ली उसने सुप्रिया से प्यार किया था इसलिए उसकी दो बातों को जरूर माना से एक गलत आदत थी जिसे उसने छोड़ा सिर्फ सुप्रिया के लिए क्योंकि उसने सिर्फ एक ही चीज मांग की थी कि तुम गुटखा खाना छोड़ दो उसे उसे त्याग कर दिया दूसरा उसने उससे मांग की थी कि तुम अपनी ग्रेजुएशन कंप्लीट करना इसलिए उसने उसके लिए अपनी ग्रेजुएशन कंप्लीट की थी।
इधर बहन के लिए रिश्ते भी आना शुरू होगा रिंकी की अच्छे घर में शादी कर दी यहां प्रांशु के लिए भी चलाना शुरु होगा उसने भी शादी कर लिया उधर सुप्रिया की भी शादी हो चुकी थी पर कहते हैं ना पहला प्यार नहीं बुलाया जाता प्रांशु का पहला प्यार सुप्रिया थी वह चाह कर भी उसे नहीं भूल पाता था इधर सुप्रिया की भी वही परिस्थिति थी वह भी प्रांशु को कभी नहीं भूल पाए फिर एक दिन अचानक उनका सामना हुआ।
एक दूसरे से दोनों अपनी-अपनी फैमिली के साथ थे दोनों ने एक दूसरे को देखा और बातें नहीं की लेकिन दोनों एक दूसरे के लिए खुश थे कि दोनों अपनी अपनी लाइफ में खुश है यही सोच रहे थे कि वह अपनी फैमिली के साथ खुश है लेकिन अंदर से दोनों एक दूसरे के लिए जो तड़प थी वह अपने अंदर ही महसूस कर रहे थे।
दोनों ने अपनी जिम्मेदारियों के लिए अपने प्यार का त्याग किया था लेकिन प्यार को भुला नहीं था दोनों ने अपने प्यार के लिए खुशियां चाहिए ईश्वर से दोनों एक दूसरे के लिए दुआएं मांगते थे जिम्मेदारियां कभी-कभी ऐसा कुछ कर आ जाती है जो ना चाहते हुए भी करना पड़ता है यहां पर प्रांशु की कहानी खत्म होती हैं।