जिम्मेदारी
जिम्मेदारी
अमर नुक्कड़ पर खड़ा चाय पी रहा था और अपने साथी से चर्चा कर रहा था कि वह आज बहुत बेचैन है य, क्योंकि उसकी पत्नी को प्रसव काल की पीड़ा हो रही थी।
अमन मुजफ्फरनगर में रहता था और वहीं पर रहकर अध्यापन कार्य करता था। यूपी में बेटे-बेटियों के फ्रक को लेकर कई कहावते प्रचलित है। आज उसके मन में भी यही खलबली मची हुई थी कि बेटे का जन्म होगा या बेटी का।
धड़कनों की रफ्तार इतनी तेज थी कि वह उन्हे साफ सुन सकता। उसका दोस्त उसे समझाने की कोशिश कर रहा था।
तकरीर रात के 9:00 बजे उसके घर पुत्री ने जन्म लिया। पुत्री के जन्म के तुरंत बाद ही पूरे घर में सन्नाटा छा गया। ऐसा लग रहा है मानो कुछ हुआ ही ना हो। उसका दोस्त जा चुका था।
वह भी दूसरे कमरे में चुपचाप पड़ा हुआ था। न वह पत्नी से मिला और ना ही अपनी पुत्री से।
दाई ने आकर कहा, “बेटी का जन्म हुआ है।” उसने झल्ला के कहा, “हां मालूम है जाओ यहां से।” दाई चली गई। अमन सोचता रह गया कि, ‘भगवान तूने मुझे बेटी तो दी, इसके साथ ही बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी दी है, मैं इसकी रक्षा कर सकूं बस मुझे इतना सक्षम बनाना।’