Archana Tiwary

Inspirational

4.2  

Archana Tiwary

Inspirational

जिम्मेदारी

जिम्मेदारी

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माथुर जी का एकलौता लड़का ध्रुव ने जब आगे की पढ़ाई विदेश में करके डॉक्टर बनने कीअपनी इच्छा पिता के सामने जाहिर की तो वे बहुत खुश हुए पर मन ही मन पैसों की चिंता सताने लगी ।उन्होंने अपने रिश्तेदारों से जब इस बारे में बात की तो उनमें से कइयों ने तो ध्रुव को विदेश न भेजने की सलाह दी ।बड़े भैया ने तो यहाँ तक कहा की इकलौती संतान को विदेश भेज दोगे फिर वह लौटकर वापस कभी न आयेगा बुढ़ापे में तुम दोनों की जिम्मेदारी कौन उठाएगा? पर माथुर साहब और उनकी पत्नी ने सबकी बातों को अनसुना कर अपने बेटे के इस निर्णय में उसका साथ देने का निश्चय किया।उसकी डॉक्टर बन कर लोगों की सेवा करने के सपने को पूरा करने के लिए कोशिश करनी शुरू कर दी। भागदौड़ करके किसी तरह से लोन का इंतजाम कर उन्होंने ध्रुव को पढ़ने के लिए विदेश भेज दिया। उसके जाने के बाद घर और मन दोनों रिक्तता से भर गया। पति पत्नी ने वक़्त से समझौता कर अपनी दिनचर्या सामान्य बनाने की कोशिश में लग गए।खाली घर काटने को दौड़ता था।इधर समय पंख लगा के उड़ता जा रहा था।

आखिर ध्रुव का डॉक्टर बनने का सपना सच हुआ। डॉक्टर बनने के बाद उसने वही शादी की और अब उसके दो बच्चे भी हैं। इस बीच जब भी ध्रुव इंडिया आता तो अपने माता-पिता को साथ ले जाने की जिद करता पर वे इंडिया से बाहर जाना नही चाहते थे। हमेशा की तरह वो अपने इस कोशिश में नाकामयाब ही रहता। 

अचानक एक दिन माथुर साहब को हार्ट अटैक आया और रोती बिलखती पत्नी को इस दुनिया में अकेला छोड़ वे चले गए। 

इस बार ध्रुव ने अपनी माँ को कहा- "अब तुम यहाँ अकेले नहीं रह पाओगी। पापा थे तो बात कुछ और थी ।वहां हमारे साथ रहोगी तो पिंकू और मोनू के साथ तुम्हारा समय कट जाएगा"।

मैं अब इस बुढ़ापे में अपने देश को छोड़कर नहीं जा सकती। अगर मुझे वहाँ कुछ हो गया तो अपने देश की मिट्टी भी न मिलेगी और फिर यहाँ तुम्हारे मामा जी है न। तुम मेरी चिंता मत करो-कहकर माँ ने उसे चुप करवा दिया।ध्रुव उनके निर्णय से असंतुष्ट हो वापस चला गया ।

कुछ दिनों बाद एक दिन बिना कोई सूचना के दरवाजे पर ध्रुव को देखकर माँ अचंभित हो कुछ कहती इससे पहले ही ध्रुव बोल पड़ा- "माँ, मेरी एक मीटिंग इंदौर में है। उसी सिलसिले में आया हूँ। कल सुबह इंदौर जाना है और आप भी तैयार हो जानाआपको महाकाल के दर्शन करा दूंगा"। 

इतने दिनों बाद ध्रुव कोअचानक देख वो बहुत खुश थी।उसने उसकी पसंद के खाने बनाए खूब सारी बातें की। दूसरे दिन फ्लाइट ने जैसे ही उड़ान भरी तब ध्रुव ने अपनी माँ का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा- "माँ, हम इंदौर नहीं जा रहे हैं ।हम तो विदेश जा रहे हैं। वहां सब आपका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं"। 

"पर तुमने बताया क्यों नहीं"? 

"बता देता तो आप आने से मना जो कर देती"। 

मैंने मामा जी से भी बात कर ली है। उन्होंने भी मेरे इस निर्णय को खूब सराहा। माँ मैं चाहे जितनी भी उड़ान भर लूँ पर मुझे अपनी जिम्मेदारियों का एहसास है।पापा के जाने के बाद मैं एक दिन भी शांति से सो न पाया।मुझे हर पल तुम्हारी चिंता सताती रहती थी।अब तुम साथ रहोगी तो मेरी चिंता कम हो जायेगी। 

वहां पहुँचकर पिंकी, मोनू और नेहा से मिलकर वो खुशी से झूम उठी।अब अपनों के पास पहुँच कर उन्हें अपनी खोखली ज़िद पर अड़ने की भूल का अहसास हो रहा था।

ध्रुव ने अपनी जिम्मेदारी निभा कर तेजी से बदल रहे समाज को अपनी परंपरा और कर्त्तव्य का बोध करा बेटे होने का फ़र्ज़ निभाया था। 



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