जिम्मेदारी का बोझ
जिम्मेदारी का बोझ
बिजली के खंभे पर चढ़ा बेताल नीचे आने का नाम नहीं ले रहा था।
उधर जिम्मेदारी के बोझ तले दबे राजा विक्रमादित्य बड़े चिंतित लग रहे थे, की कब बेताल खंभे से नीचे आए और मैं अगला सवाल पुछूं।
काफी मान मनौव्वल के बाबजूद भी बेताल नीचे नहीं आया तो नीचे से ही महाराज विक्रमादित्य बेताल से अपने मन में विचरण कर रहे सवाल पूछ लिया।
अच्छा तो बेताल भाई ये बताओ कि दुनिया का सबसे बड़ा बोझ क्या है?
अनपढ़ बेताल सदमे में आ गया कुछ देर सोचा और बोल पड़ा वैसे चुप रहने की आदत नहीं मेरी ये बात आप जानते हैं महाराज।
देखिए महाराज मैं आपके इस प्रश्न का उत्तर भले रूप से तो नहीं जानता लेकिन फिर भी जवाब देने की कोशिश करता हूॅं ताकि आप निराशा से उबर सकें।
बेताल- मेरे हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा बोझ है पारिवारिक जिम्मेदारियों का भली प्रकार निर्वहन करना अर्थात परिवार का मुखिया होना।
जैसे जितनी जिम्मेदारी राजा की होगी उससे भी बड़ी जिम्मेदारी प्रजा की होती है।
यदि किसी राजा का चुनाव प्रजा न करे तो कोई राजा बन सकता है।
महाराज विक्रमादित्य मुस्कुरा दिए बस किया था बड़ी तेजी से बेताल बिजली के खंभे से नीचे उतरा और महाराज विक्रमादित्य के कंधे पर आकर बैठ गया।
गनीमत ये कि खंभे पर बैठते समय बिजली नहीं थी अन्यथा बेताल को करंट लग सकता था।
खुश होने वाली बात ये रही कि खंभे से उतरते ही बिजली आ गई और मुहल्लेवासियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी।
महाराज विक्रमादित्य कंधे पर बैठे बेताल से बोले बताओ कहां चलना है।
बेताल बोला वहां चलिए महाराज जहां रोशनी के बाबजूद अंधेरा हो।
एक बार फिर कंधे पर बैठे बेताल के साथ महाराज विक्रमादित्य चिंतित हो उठे अब ऐसी जगह कहां ढूंढूं जहां रौशनी रहते हुए अंधेरा ही अंधेरा है।