छप्पन भोग
छप्पन भोग
बच्चों के पास आजादी है कभी भी कुछ भी खाने पीने घूमने की जिद करने लगता है।
एक स्लम बस्ती में किसी झुग्गी के अन्दर एक बच्चा टी वी देख रहा था टी वी पर किसी मन्दिर का दृश्य चल रहा था जिसमें भगवान को छप्पन भोग लगाए जा रहे थे।
वहीं आस-पास हजारों धूप दीप जल और जगमगा रहे थे।
तभी टी वी देखना छोड़कर बच्चा अपने मां से जिद करने लगा मां मुझे भी छप्पन भोग खाना है वो देखो टी वी पर भगवान कैसे छप्पन भोग खा रहे हैं।
बच्चे के माता-पिता ने उसे खूब समझाया बेटे हम लोग गरीब आदमी हैं।
मेहनत मजदूरी करके बड़ी मुश्किल से घर चलाते हैं।
हम तुम्हें छप्पन भोग नहीं खिला सकते।
छप्पन भोग खाने के लिए बहुत पैसे खर्च करने पड़ेंगे।
लेकिन बच्चा टस से मस नहीं हुआ नहीं मुझे छप्पन भोग ही खाना है अन्यथा मैं आज से कुछ नहीं खाऊंगा चाहे मुझे भूखा ही क्यों ना मरना पड़े।
देखो ना भगवान के सामने कैसे छप्पन भोग लगा हुआ है धूप दीप जल रहें हैं।
कितना अच्छा लग रहा है।
तब गरीब मां बाप ने एक उक्ति सोची देख बेटा तूं यदि नहीं मानेगा तो तुम्हारे लिए कुछ सोचता हूं।
उक्त दंपत्ती ने तब छप्पन रूपए अपने पाकेट से खर्च किया और खाने के लिए कुछ अच्छी चीजें खरीद लाए और बच्चे के साथ मिल बांट कर खा लिया।
खाते हुए बच्चे ने सिर्फ इतना ही कहा आज भगवान ने हमारी सुन ली नहीं तो अनर्थ हो जाता।
क्या पता मुझे कितने दिन तक भूखा रहना पड़ता।