ये उदासी कब तक
ये उदासी कब तक
वह पीपल का पेड़ अब बहुत उदास रहने लगा है। दादा जी पोते को उसी पीपल के पेड़ की कहानी सुना रहे थे, पोते से जिसके नीचे बैठे हुए थे।
जानते हो बिरजू यह पीपल का पेड़ मेरे दादा के दादा जी के समय का है। जिसे अपने गांव के जमुना बाबू ने डिहबार स्थान के लिए अपने जमीन पर लगवाए थे।
यहां शादी ब्याह के मौके पर मिट्टी के घोड़े चढ़ाए जाते थे, ताकि ब्याह ठीक से निपट जाए डिहबार बाबा की कृपा से। अपने दादा जी की बात बिरजू बिना ध्यान भटकाए सुने जा रहा था।
मैं मेरे पिता जी मेरे भाई सभी इसी पीपल की छांव में पलकर बड़े हुए हैं, बिरजू हूँ करके ऊँघने लगा तब दादा जी उसे झकझोर कर जगा दिए।
बिरजू बोलिए न दादा जी मैं सब सुन रहा हूँ। दादा जी अब अगर झपकी ली न तो मैं नहीं सुनाऊंगा उदास पीपल के पेड़ के किस्से बिरजू आंख मलते हुए जग गया था। दादा जी जानते हो बिरजू यह पीपल का पेड़ अब उदास रहने लगा है बिरजू क्यों?
दादा जी इस पीपल के पेड़ के नीचे खेल कूद कर जो बच्चे बड़े हुए वह सभी बच्चे अब यहां नहीं रहते और न बैठने आते सबके सब गाॅंव छोड़कर के कुछ शहर चले गए तो कुछ विदेश चले गए ।
जब वो लोग थे तो यहां ताश की चौखड़ियां जमा करती बच्चों के हुड़दंग देखने को मिलते थे। ऊपर से चिड़ियों के बिट और पेड़ से टूट कर गिरने वाली..?
और फिर दादा जी के आंख से आंसू टपक पड़े बिरजू दादा जी आप रो क्यों रहे हो? दादा जी कुछ नहीं बिरजू पूछने के लिए कि क्या बात है जिंद पे अड़ गया। बिरजू प्रदेश से अपने पिता जी के साथ कुछ दिनों के लिए गांव आया था।
दादा जी बोले दो चार दिन रहोगे फिर तुम अपने पिता जी के साथ प्रदेश चले जाओगे फिर ये किस्से किसे सुनाऊंगा बिरजू दादा जी आप रोइये नहीं मैं वहाॅं नहीं जाऊंगा अरे नहीं बेटे नहीं जाओगे तो तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल कैसे होगा।
और फिर अंगोछे से अपने आंख के आंसू पोंछने लगे। बिरजू पाॅंच सात दिन गाॅंव में रहने के बाद अपने पिता जी के साथ प्रदेश चला गया।
अब गांव में दादा जी और कुछ उनके जैसे ही बुजुर्ग औरत मर्द और वो उदास पीपल का पेड़ रह गया है किसी के पास आकर बैठने की प्रतीक्षा में।