जिल्लत़....
जिल्लत़....
उपासना.... ओ उपासना.... कहां मर गई? कहा था ना कि पूजा की थाली और लोटा मांजकर रखना लेकिन मैं नहाकर आ भी गई और तूने मेरा काम नहीं किया.... हां... हां..सास का कहा सुन लेगी तो पाप में नहीं पड़ जाएगी, आई महारानी बड़ी, पता नहीं क्या सिखाकर भेजा है मां बाप ने, बीस साल हो गए शादी को, बच्चे जवान होने को आए लेकिन इसे अभी तक गृहस्थी चलाना ना आया.... उपासना की सास ललिता ने उपासना को कोसते हुए कहा।
इन्हें ऑफिस को जल्दी निकलना था इसलिए इनका नाश्ता बनाने में लग गई थी, लाइए अब मांज देती हूं पूजा की थाली और लोटा, उपासना ने अपनी सास ललिता से कहा।
रहने दे...रहने दे, ये अच्छा बनने का नाटक मुझे मत दिखाया कर, मैं सब जानती हूं कि तू ऐसा क्यों कर रहीं हैं, अभी गौतम घर में है ना इसलिए तू उसके सामने अच्छा बनने का नाटक कर रही है, नहीं तो तू मुझे झिड़क देती, ललिता बोली।
कैसी बातें करतीं हैं आप मां जी! मैं भला कब आपके साथ ग़लत व्यवहार करती हूं? उपासना बोली।
कितनी जुबान चलाती है, मुझ बुढ़िया पर तुझे जरा भी तरस नहीं आता , क्या करूं? विधवा जो ठहरी, जिसका मन होता है सो चार बातें सुनाकर चला जाता है, मैंने तो इसे अपनी नियति ही समझ लिया है, हे... ऊपरवाले उठा ले मुझको , अब और नहीं देखा जाता, ललिता सबको सुना सुनाकर जोर जोर से चिल्लाने लगी।
ललिता की आवाज सुनकर अपने कमरे में तैयार हो रहा गौतम भागकर आया और उसने अपनी मां ललिता से पूछा....
क्या हुआ मां? तुम रो क्यों रही हो? किसी ने कुछ कहा क्या?
मुझसे क्या पूछता? जाकर अपनी बीवी से पूछ जो हर रोज मुझ पर ज़ुल्म ढाती है, ललिता बोली।
क्या बात है ? उपासना! ऐसा तुमने मां से क्या कहा ? जो मां इतना रो रही है, गौतम ने उपासना से पूछा।
जी! ऐसा तो मैंने कुछ नहीं कहा, उपासना बोली।
अरे, मैंने इससे पूजा की थाली और लोटा मांजने को कहा था लेकिन इसने इनकार कर दिया, ललिता ने झूठ बोलते हुए कहा।
मां जी! मैंने ऐसा तो नहीं कहा था, आप झूठ क्यों बोल रहीं हैं? उपासना बोली।
तुम मेरी मां से जुबान लड़ाती हो, उन्हें झूठा कहती हो और ये कहते हुए गौतम ने उपासना को दो तीन झापड़ रसीद दिए....
ये सब तमाशा अठारह साल की पीहू और पन्द्रह साल का उदय भी देख रहे थे, ये सब देखकर पीहू से ना रहा गया और वो गौतम से बोली.....
पापा! ऐसे कैसे आपने पूरी बात जाने बिना मम्मी पर हाथ उठा दिया...
पीहू! तू अभी छोटी है, हम बड़ों के बीच में मत बोल और लड़कियों को ज्यादा बोलना शोभा नहीं देता, गौतम बोला।
छोटी नहीं हूं मैं, पूरे अठारह साल की हो चुकी हूं, वोट देने का और ड्राइविंग लाइसेंस का अधिकार मुझे मिल चुका है , मुझे ये पता है कि मेरे मौलिक और संवैधानिक अधिकार क्या है? शायद आपने और दादी ने संविधान नहीं पढ़ा, इसलिए तो आप मम्मी के साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं....
बचपन से देखती आ रही हूं कि आप लोग मम्मी के साथ कितना अत्याचार करते आ रहे हैं, ये वही उपासना है जब आपके पिता जी पैरालाइज्ड होकर बिस्तर पर पड़े थे, तो उनकी सेवा इन्हीं ने की थी, दादी तो ये कहकर किनारा कर लेतीं थीं कि भाई मेरा तो बुढ़ापा है, मुझसे नहीं होगा ।
और जब तक बुआ ब्याह कर ना गई तो कुछ ना कुछ लगाई बुझाई करके उन्हें आपसे पिटवा ही देती थीं, फिर चाची के आने पर मम्मी ही सारा काम करतीं थीं क्योंकि दादी ने ही तो चाची को सिर पर चढ़ा रखा था, लो वो रहने चलीं गईं अलग घर में चाचा के साथ, तब क्यों ना लें गईं वो दादी को अपने साथ, वो तो दादी की चहेती थी ना!
तभी उपासना ने पीहू को चुप कराते हुए कहा....
बस कर पीहू! ज्यादा मत बोल, क्या मैंने तुझे यही सिखाया है, यही संस्कार दिए हैं....
नहीं मम्मी! आज तो मुझे बतमीज हो जाने दो, अगर अपने अधिकारों की बात करना बतमीजी है तो हां ! मैं हूं बतमीज, जब तक बेटी या बहु अपने अधिकार नहीं मांगती तो वो शरीफ़ बनी रहती है लेकिन जिस दिन भी वो अपने अधिकारों की बात करने लगें तो एकाएक बतमीज हो जाती है...
वाह....भाई....वाह...ये समाज और इसके अनोखे नियम और आपको पता है पापा! महिला आयोग सुना है आपने, अगर मम्मी उसमें आपकी और दादी की कम्पलेंट कर दे तो क्या हाल होगा आप लोगों का या फिर डोमेस्टिक वायलेंस का आरोप लगा दे तो पुलिस डण्डे भी मारेगी और जमानत भी नहीं देगी।
अच्छा! अब मुझे ये बताइए कि संविधान के किस अनुच्छेद और किस धारा में लिखा है कि मम्मी को ही दादी की पूजा की थाली और लोटा मांजने होंगे, वो तो आप भी मांज सकते हैं ना! किस अनुच्छेद और धारा में लिखा है कि मम्मी को ही खाना बनाना पड़ेगा, किस अनुच्छेद और धारा में लिखा है कि मम्मी ही घर का बाथरूम साफ करेगी, किस अनुच्छेद और धारा में लिखा है कि मम्मी ही बच्चों को पालेगी, आखिर क्यों औरत ही सब करें, बाद में गालियां, झूठे इल्जाम और मार भी वो ही खाएं, ये क्या है?
और सबसे बड़ी गलती मम्मी जैसी औरतों की जो खुद ही अपने संवैधानिक और मौलिक अधिकारों की धज्जियां उड़ातीं रहतीं हैं, सब सहकर, मूक बनकर, ये सोचकर चुप रहतीं हैं कि आज नहीं तो कल जरूर सब ठीक हो जाएगा।
कैसे ठीक होगा भाई? जादू से, जब तक तुम उसे ठीक नहीं करोगी, तब तक कुछ भी ठीक नहीं होगा।
मुझे तो लगता है कि फेरें लेते वक्त मंत्रों का उच्चारण नहीं करना चाहिए, ये कहना चाहिए कि____
दुल्हन ही खाना बनाएंगी, ओम स्वाहा:
दुल्हन ही बच्चे पालेगी, ओम स्वाहा:
दुल्हन ही मार और गालियां खाएगी.....
इत्यादि.... इत्यादि... मैं कोई बदजुबानी नहीं कर रही हूं, सालों से मम्मी को इतनी जिल्लत झेलते हुए देखा है इसलिए आज जुबान खुल गई, आखिर मम्मी कब तक इतनी जिल्लत झेलती रहेगी,
आज पीहू की बातें सुनकर गौतम और ललिता का मुंह खुला का खुला रह गया।
समाप्त__
