जीवनसाथी
जीवनसाथी


"तुम किचन में क्या कर रहे हो?" माला ने अपने पति आलोक से पूछा।
"कुछ नहीं, बस चाय बना रहा था और कुछ महसूस कर रहा था।"आलोक ने कहा।
"क्या महसूस कर रहे थे जनाब, जरा हमें भी बताइए।" हंसते हुए माला ने पूछा।
"थोड़ी देर किचन में खड़े हुए गर्मी में आफत लग रही थी मुझे, तुम औरतें कैसे अपना आधा समय यहां बीता लेती हो समझ नहीं आता, महसूस कर रहा था इस गर्मी को, उसके बाद भी और भी काम होते हैं घर के वो भी करती हो और तब भी हम आदमी कितनी आसानी से बोल देते हैं कि पूरे दिन घर में करती क्या हो?" आलोक ने कहा
"कोई नहीं मेहनत तो आप आदमी भी करते हो।" माला ने मुस्कुराते हुए कहा।
"पर, कम से कम रोटी तो आराम से बैठकर खाते हैं और तुम औरतों कभी ताना नहीं देती कि आप बाहर करते क्या हो सारा दिन, आज के बाद मैं तुम्हें कभी नहीं कहूँगा कि तुम करती क्या हो और जितना मुझसे होगा तुम्हारे काम में साथ दे दिया करूँगा, एक दूसरे कि परेशानियों को समझने वाले और साथ देने वाले को ही जीवनसाथी कहते हैं, ये बात मैं हमारे बेटे को भी सिखाऊंगा।" आलोक ने कहा।
माला खुशी के आँसू लिए अपने पति के अंदर बदलाव को देख रही थी।