जीवन में संयोग
जीवन में संयोग
आज की चर्चा का विषय 'चर्चा साहित्य की' रखा गया।आज सुबोध ने किस्से- कहानियों , नाटक लघु कविताओं, उपन्यासों की हमारे अतीत को स्मृत रखने, वर्तमान स्थिति - परिस्थितियों से अवगत होने के साथ भविष्य की तैयारियों और संभावनाओं के बारे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के संबंध में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा- " साहित्य समाज के दर्पण और मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है। किसी क्षेत्र, समाज के किसी भी काल खण्ड के बारे में तत्कालीन साहित्य को पढ़कर कोई भी बेहतर ढंग से किसी के भी द्वारा जाना था सकता है। साहित्य उस समय की परिस्थितियों का उत्कृष्ट
वर्णन करता है।उस काल का प्रचुर मात्रा में साहित्य पाठन हमें उस काल काल में सामाजिक उन्नति-अवनति का भी चित्रण करता है। काल्पनिक रूप से किए गए सृजित साहित्य में निकट भविष्य में संभावित चढ़ाव- उतार का समय पूर्व ज्ञान का अहसास हो जाता है।जो किसी व्यक्ति के लिए लाभदायक अथवा संभावित क्षति को रोकने में सहायक हो सकता है।"
जिज्ञासा अपनी जिज्ञासा रोक न सकी और उसने यह जानकारी साझा किए जाने का आग्रह किया कि वर्तमान समय की किसी उत्कृष्ट पुस्तक का उदाहरण देते हुए इस विषय को स्पष्ट किया जाय। जिज्ञासा की इस समस्या का समाधान लेकर प्रकाश ने सारी कक्षा को अवगत कराते हुए 'स्टोरी मिरर इंफोटेक प्राइवेट लिमिटेड ,मुंबई 'से प्रकाशित 'यशस्वी युवा लेखक यश यादव' के एक उत्कृष्ट बहुचर्चित उपन्यास 'संयोग' के माध्यम से साहित्य क समाज के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने की बात समझाई। तैंतीस अध्यायों में विभाजित यह उपन्यास मुम्बई की एक सच्ची प्रेम कथा है।
उत्तर प्रदेश के छोटे गांव रहने वाला सके सपनों को साकार करने के लिए भारत की माया नगरी मुंबई होता है और उन जीवन की कठोर वास्तविकता से संघर्ष करता है।अपने मुम्बई प्रवास के दौरान उसे जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव होते हैं।इन अनुभवों के माध्यम से हम वर्तमान समय में महानगरों में छोटे-छोटे गांव से रोजी-रोटी की तलाश में भटकते युवकों के लिए एक आदर्श सीख है कि यदि हम पूरी इमानदारी परिश्रम के साथ संघर्षरत रहते हैं तो लाख मुसीबतें आती है और हमारी परीक्षा लेकर चली जाती हैं।
यदि व्यक्ति दृढ़ संकल्पित होकर युद्ध क्षेत्र में डटा रहता है तो अंततः उसे सफलता मिलती ही है।इस प्रेम कथा में चढ़ा उतार देखने को मिलते हैं कभी ऐसा लगता है कि यह प्रेम कथा अधूरी न रह जाए। यह भी एक संयोग ही कहा जाएगा कि जब प्रेमी युगल यश-प्रतिमा मिलन की संभावनाएं धूमिल होती हैं तो कुछ समय बाद गे उन्हें मिलते हैं उन्हें आने के बाद जो परिस्थितियां बनती हैं उनसे इसे सुखांत कथा के रूप में विकसित होने की संभावनाएं जगाती हैं उसी समय समय की संयोग भरी करवट इसे दुखांत कथा में बदल देता है जिसमें प्रतिमा यश को इस मृत्युलोक में छोड़कर देवलोक को चली आती है। जब व्यक्ति शहर में आता है तो इन संघर्षों के बीच मानवीय मूल्यों के भी प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं। उससे भारतीय समाज की सनातन परंपरा के अनुरूप 'वसुधैव कुटुंबकम ' की भावना परिलक्षित होती है और लोगों का यह कहना कि आज का जमाना बहुत खराब है यह धारणा निर्मूल साबित होती है । शहरों में आज भी दूसरों की सहयोग और सहायता करने वाले लोग मिलते हैं जिनके बीच में कहकर अजनबी को भी अपनेपन का एहसास होता है।कर के एक पांडे जी का यश के साथ सहयोग भरा व्यवहार इस बात का अनुपम उदाहरण है। दो परिवार जिनका पूर्व में कोई संबंध नहीं था केवल आपसी संपर्क के बहाने एक-दूसरे पर अटूट विश्वास करते हैं ।एक परिवार के सभी दूसरे परिवार के साथ इतने घुल-मिल जाते हैं कि एक परिवार के सभी सदस्य दूसरे परिवार को अपने ही परिवार का हितैषी और अपने परिवार मानते हैं।हर व्यक्ति परिवार के संबंधियों की तरह ही पारस्परिक सम्मान और आदर देता है। यश का प्रतिमा के परिवार के सभी सदस्यों के साथ परिवारिक संबंध इस पारस्परिक विश्वास भावनाओं को एक शक्ति प्रदान करता है। विभिन्न संयोग से गुजरते हुए यह कथा विविध स्थानों पर संयोगों से प्रभावित होती हुई आगे बढ़ती है।"
रीतू ने इसने अपनी बात जोड़ते हुए कहा- " इस दुनिया में बहुत से संयोग होते हैं ।अपना घर छोड़कर बाहर निकलने पर व्यक्ति को सामान्यतः विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना ही पड़ता है । कुछ व्यक्ति इन विषम परिस्थितियों में घबरा जाते हैं, टूट जाते हैं और उनकी हिम्मत जवाब दे जाती है। लेकिन जो अपने मजबूत इरादों के साथ वक्त के थपेड़ों से संघर्ष करते रहते हैं अन्ततः वे सफल होते ह हैं लेकिन इस सफलता में किसी की किस्मत भी विधि के विधान द्वारा संचालित होती है । अंततोगत्वा हाथ में आती हुई बाजी चले जाने पर यही कहा जाता है कि यह विधि का ही विधान था जिसे एक संयोग ही कहा जाएगा।"