जीवन की अनगिणत भुमिकाएँ

जीवन की अनगिणत भुमिकाएँ

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"माँ, मैं स्कुल जा रहा हूँ, दरवाजा बंद कर लेना।"

कहते हुए सोहम बाहर निकल गया। "जरा ध्यान से जाना रात का बखत है।" शांति ने कहा,

"हाँ माँ।"

सोहम रात वाले स्कूल में जाता था पढ़ने, क्योंकि उसके पिता बीमार रहते थे, वो कोई काम नहीं कर सकते थे, इसलिए वो दिन में अपने पिता की सब्जी की दुकान पर बैठता और रात को पढ़ने जाता था।

वो सुबह सुबह को छोटी कक्षा के ट्युशन भी करता था, जिससे उसके पढ़ाई का खर्च निकल जाता। उसकी दो छोटी बहन भी तो है जिनकी पढ़ाई और शादी जिम्मेदारी भी उसे ही निभानी थी। शांति ने अपने पति से कहा-

बेटा रोज देर रात को जाता है मुझे डर लगा रहता है वो अभी छोटा ही है और जमाना खराब है, छोटी सी उम्र में उसके कंधो पर घर परिवार का बोझ आ गया है, तो मैं ये सोच रही थी कि दिन में थोड़ी देर मैं दुकान संभाल लेती तो वो रात की बजाय दिन में पढ़ लेता। 

सोहन के पिता ने कहा,

बात तो तेरी ठीक है पर मुझे कोन संभालेगा जब तू चली जाएगी।

उनकी बात सुन वो चुप हो गई पर मन बेटे की दोहरी भुमिका से दुखी था, 15 साल की उम्र में उसके कंधे पर सारा बोझ आ गिरा था पर सोहम ने अपना बचपन नहीं खोया था। वो समझदार था, वो अपने लिए भी समय निकाल ही लेता था किसी न किसी तरह। कभी कभी वो खेलता है कभी लिखता है। हाँ वो लिखता है कभी, कहानी कभी कविता, उसके लेखन में परिपक्वता थी, आखिर हो भी क्यों नहीं कम उम्र में उसे अनुभव काफी हो गए थे।

दुकान पर जरा भी खाली समय मिलता तो वो अपनी पढ़ाई करता या फिर लेखन करता। ऐसे ही एक दिन कोई सब्जी खरिदने आया और उसे कुछ लिखता देख वो पूछने लगा, क्या लिख रहे हो बेटे। जवाब में वो सिर्फ मुस्कुराया, फिर सब्जी तोलने लगा।

ग्राहक ने अपनी बात दोहराई। तब सोहम बोला- जी कभी कभी कहानी वगेरह लिख लेता हूँ। ग्राहक ने कहा-

कभी छपी भी है किसी अखबार या पत्रिका में।

नहीं जी हमारी कहाँ जान पहचान है। छपवाने का खर्च मैं नही उठा सकता अंकल जी।  

अरे भाई, छपवाने के पैसे नहीं लगते हैं और एक बात अगर तुम बहुत ज्यादा लिखते हो तो तुम्हारी किताब छप जाएगी। फिर उसकी बिक्री के आधार पर तुम्हें रोयल्टी मिलेगी। ये सुन उसकी आँखों में चमक आ गई। अंधा क्या चाहे दो आँख ही तो। वो ग्राहक सब्जी ले चला गया।

 रोहन की आँखों में चमक आई। अब रोहन के मन में बात आई, मैं तो शोकिया ही लिखता था, वाह इसके भी पैसे मिलेगे मुझे तो पता ही नहीं था।

अब वो इसके बारे में विस्तार से जानना चाहता था, क्यूंकि वो इन सब के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता था। उसने देखा की मैंने अब तक कितना लिखा है और कैसा, क्या लोगो को पसंद आएगा। उसने अपना सारा लिखा हुआ को एकत्र किया तो उसे लगा 4 किताब के जितना लिख रखा है। अब उसे एक ऐसे शख्स की जरुरत थी जो उसे इस बारे में सही राह दिखाएँ। अब वो बड़ी शिद्दत से उसी ग्राहक का इंतजार करने लगा। कहते हैं सच्चे मन से किसी को याद करो तो वो जरुर मिलता है।

थोड़ी देर में ही वो शख्स आता दिखा सोहन को उसे आता देख उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

 दुकान पर आते ही उसके सोहम मुस्कुराया और नमस्ते की। ग्राहक भी जवाब में मुस्कुराया और नमस्ते की।

क्या बात आज बड़े खुश लग रहे हो।

जी हाँ अंकल जी मैं आपका कई दिनों से इंतजार कर रहा था।

वो क्यूँ , उसने कहा।

आपने उस दिन लेखन की बात की थी न, उसी बारे में बस और जानना था।

अच्छा पूछो क्या पूछना है।

जी मैं अपनी किताब कैसे छपवाऊँ।

बहुत आसान है बेटे, इसके लिए प्रकाशक से मिलना होगा।

पर अंकल जी में तो किसी को नहीं जानता, सोहम बोला।

ठीक है मैं तुम्हारी पुरी मदद करुँगा इसमें, कल सुबह मेरे घर आ जाना, अपनी कुछ रचना भी साथ में ले आना, अपना कार्ड पकड़ाते हुए कहा। 

जी जरुर।

अगले दिन सोहम उन्हीं सेठ जी के घर पहुँच गया। सेठ जी उसे अपने साथ अपने मित्र के पास ले गए जो कि प्रकाशक थे। सेठ जी ने सोहम का परिचय कराया और उसके बारे में सब बताया।

प्रकाशक देवेंद्र जी ने कहा- हाँ तो तुम कब से लिख रहे हो।

  जी 2 साल धीमी आवाज में कहा।  

कुछ रचना लाए हो ?

जी लाया हूँ आगे हाथ बढ़ाते हुए कहा।

और रचना दे दी। थोड़ी देर तक उन कविता को देखते रहे, फिर कहा, वाह कितनी सुंदर रचना है, तुम इन सबको छोड़ जाओ, मैं इनको अच्छे से पढ़ कर जो त्रुटी होगी उन्हे ठीक करवा कर, इन्हें जल्द ही प्रकाशित करवा दूँगा और जो रोयल्टी तुम्हें मिलेगी उसमें से किताब की छपाई का खर्चा काट कर दे दिया जाएगा। वैसे मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारी किताब खूब बिकेगी, बहुत अच्छा लिखते हो, जहाँ तक मेरा ख्याल है एक महीने में ही खर्चा निकल जाएगा।

सोहम बहुत खुश था इस बात से क्यूंकि उसे पैसो की जरुरत तो रहती ही थी और अपने शोक के जरिये पैसे कमाना और भी मजेदार लगा उसे।

जब अपने घर में ये बताया कि वो अब लेखक के रुप में स्थापित हो रहा है, सुनकर दोनों बहनें, माता-पिता बहुत खुश हो गए।

जल्द ही वो दिन आ गया जब सोहम की किताब प्रकाशित हुई। धीरे-धीरे उसकी ख्याति बढ़ती गई। उसके लेखन की तारीफ दिल खोल कर होने लगी। किताब भी जोर शोर से बिक रही थी। जल्द ही काफी रुपये मिल गए उसे, उसने वो रोयल्टी अपनी बहन की शादी के लिए एकत्र कर ली ताकि समय पर पैसो की कमी न हो, और आगे के लिए भी उसने यही किया, अपनी लेखन से हुई कमाई को वो घर के दूसरे कामों के लिए जमा करने लगा। घर का रोजाना का खर्च तो दुकान से आराम से निकल जाता था।  जब उसकी तारीफ लेखन को लेके होने लगी तब सोहम की कलम की गति और बढ़ गई । धीरे धीरे वो लेखक के रुप में ही स्थापित हो गया। दुकान के साथ साथ पढ़ाई लेखन सब संभाल लिया उसने।

 सोहम ने अपने जीवन में एक साथ कई भुमिका निभाई है, आदर्श भाई, बेटा, सुलझा हुआ लेखक और सुशिक्षित नागरिक।   


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