जीवन भर की पूंजी
जीवन भर की पूंजी


जवानी कब चढ़ी पता नहीं चला। झुर्रिया वक़्त से पहले ही चेहरे पर आ गई। खुद को घिरसती मैं ऐसे बांध लिया की वक़्त का पता ही नहीं चला। ज़ब बच्चे होये तो सोचा की जैसी मेरी ज़िन्दगी है वैसा उनके साथ नहीं होने दूंगी भले ही मुझे कितने ही तकलीफ उठानी परे पर उन्हें पढ़ा लिखा कर एक अच्छा इंसान बना उंगी वक़्त गुज़रता गया बच्चे बड़े होते गए।
उसको पढ़ाने के लिए रुक्कैया ने तरह तरह की तकलीफे उठाये निक्कमा सौहर के साथ उसने बाइज्जत जिंदगी गुज़ारी किसी ने कभी उसके घर से कभी खट पट की आवाज नहीं सुनी।
खुद को मशीन बना डाला बड़े से बड़ा दुख उठा डाला पर बच्चो को किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने दी बकरिया पाली मुर्गी बतख और वो जो जो कर सकती थी सब किया। बरसात के रात मे उसके छप्पर से ऐसे पानी टपकता जैसे किसी ने बाल्टी भर भर के पानी उझल रहा हो। उसने कभी किस्मत को दोष नहीं दिया। ना ही कभी किसी के सामने कोई रोना रोती। रुक्कैया ने खुद को इतना मजबूत बना लिए था।
वो बड़े से बड़ा गम को भी बड़े आराम से झेल जाती जैसे कुछ होवा ही नहीं हो। वक़्त गुज़रता गया बच्चे बड़े हो गए। बच्चे अब शहर मे पढ़ाई करने लगे। और खुद को शहरी प्रवेश मे ढालने लगे। अब उन्हें अपनी माँ जाहिल और गवार दिखने लगी। उन्हें अपने दोस्तों के सामने अपने माँ को लाने मे शर्म लगती है।
वो कुछ सालों मे ही अपने माँ की क़ुर्बानी भूल गए। उन्हें अपने माँ की छुरियां नहीं दिखिए दी जो उनके वजह से वक़्त से पहले बन गई। एक गृहणी होकर बिना किसी नौकरी के या दुसरो के घर बिना काम कर उन्होंने कितने मुश्किल से अपने बच्चों को पाला।
ऐसे सिर्फ रुक्कैया नहीं हैं आज क़ल के बच्चे अक्सर अपने माँ बाप के साथ ऐसा करते है वो भूल जाते है की उनको अच्छी परवरिश करने के लिए माँ बाप ने कितनी तकलीफ उठाये। अपने कितने सपनो की कुरबानी दी ताकि आपके सपने पुरे हो।
तो प्लीज उनकी इज्जत करे उन्हें मान सम्मान दे। माँ बाप के लिए बच्चे उनके ज़िन्दगी भर की पूंजी होते हैं।