जीतना है

जीतना है

1 min
566


जी तो चाह रहा है, आत्म हत्या कर लूं पर वसुधा इतनी कमजोर नहीं। भाग जाऊँ कहीं, पर कहाँ ? बचपन छीन लिया गया, हँसने बोलने पर पाबंदी, खेलने के भी नियम,आँखों में काजल डाल बाहर की ओर एक लकीर क्या खींची दादी बोल पड़ी, "पर्दे की पतुरिया न बनो, "साफ कर दिया काजल। दुपट्टा सिर पर डालो, फैशन में बावरी न बनो। पराये घर जाना है।" अम्मा की हिदायत।

गाय होती है बेटियाँ, जिस खूँटे बांधो, बँध जाती है। बँध गई वसुधा। सुबह से रात तक खटो और बिस्तर पर लीगल बलात्कार। एक दिन शरीर की टूटन थोड़ी देर और आराम चाहती थी कि ससुर जी ने बंद

दरवाजे के बाहर थाली बजाकर चाय बनना का फरमान दिया। वसुधा का मन कोई टटोले,वो क्या चाहती है।

अम्मा, दादी, सासूमाँ, दादी सास कोई कसूर नहीं इनका, ये सब अपनी भोगी वसीयत अपनी पीढ़ी को सौंपना चाहती है।

वसुधा ऐसा नहीं करेगी, आत्म हत्या नहीं करेगी, भागेगी भी नहीं, न ही अपनी भोगी वसीयत अपनी आने वाली पीढ़ी को देगी। इस जंग से जीतना है उसे।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational