जीत की रीत
जीत की रीत
हार के बाद ही जीत है,
यही जीत की रीत है......
यह गाना प्रबोध बचपन से ही सुनते आ रहा था। उसे हमेशा यह गाना बहुत उत्साह वर्धक लगता था। उसके पिताजी बचपन में ही गुजर गए। उसने मेहनत को ही अपना धर्म माना। उसके मित्र उसे तरह तरह के प्रलोभन देते थे, पर उसकी अंतरात्मा उसे हमेशा समझाती रहती। उसने जीवन मे अनुशासन को स्थान दिया।
ऑफिस मे भी वो सदा सभी कार्य समय प्रबंधन के साथ करता था। प्रबोध को हमेशा सही गलत के बीच मर्यादा की रेखा उसने कभी नहीं लांघी। अतः उसे उस साल का बेस्ट कर्मचारी का अवार्ड उसे मिल गया। कहीं दूर उसके कानों मे वही गीत सुनाई दे रहा था....
