Harish Bhatt

Drama

1.0  

Harish Bhatt

Drama

झूठी शान और असली कर्ज

झूठी शान और असली कर्ज

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नेगी जी सुबह-सुबह अपने घर से बाहर निकले तो देखा रावत जी के घर के बाहर नई कार खड़ी थी। कार देखते ही नेगी का मुंह पिचक सा गया। रावत जी ने नई कार खरीद ली और बताया तक नहीं। नेगी जी घर से निकले तो थे मॉर्निंग वॉक करने, पर मूड खराब होने से वॉक पर जाने का इरादा बदल दिया।

वह वापस अपने कमरे में लौट आए। श्रीमती जी ने पूछा, क्या बात आज आप गए नहीं। अरे यह रावत अपने आप को क्या समझता है, नई कार ले आया और बताया भी नहीं, नेगी जी बोले। मूड तो उखड़ा ही था। बोले, कल शाम को ऑफिस से आते वक्त हम दोनों साथ ही आए थे, लेकिन रावत इतना घुन्ना है कि भनक तक नहीं लगने दी। पत्नी बोली, आप भी ले आइए कार। आप कौन सा कम है किसी से, सरकारी नौकरी में बाबू है। अब पत्नी कहे, नेगी मना करे, फिर बात आन की थी। नेगी जी अपनी जमा-पूंजी का हिसाब लगाने बैठ गए। जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया, नेगी जी का कार खरीदने का सपना परवान चढ़ने लगा। अनमने ढंग से दस बजे ऑफिस की ओर निकल पड़े। लंच तक ही बामुश्किल अपनी सीट पर थोड़ा बहुत काम निपटाया और फिर आधा दिन की छुट्टी लेकर जा पहुंचे कार के शोरूम में।

वहां पर मैनेजर से लेटेस्ट मॉडल की कार की डिटेल मालूम करने के बाद, लोन पर कार खरीदना निश्चित कर दिया। अब नेगी जी का मन शांत था। शाम को खुशी मन से घर पहुंचे तो देखा रास्ते में कार बड़ी शान से रावत जी के घर की शोभा बढ़ा रही थी। इधर नेगी जी का सीना भी फुल के कुप्पा हुआ जा रहा था, चार दिन की ही तो बात है, अपने घर के दरवाजे पर भी कार पहुंच जाएगी।

घर में घुसते ही श्रीमती को खुशी-खुशी कार खरीदने की बात कह सुनाई। नेगी जी बोले सिर्फ पांच साल में कार की सभी किश्त पूरी हो जाएगी। श्रीमती जी बोली सुनिए अब आप कार चलाना भी सीख लीजिए, तो वह बोले हां, हां क्यों नहीं। अब तो सीखना ही पड़ेगा, बाजार जाना होता ही है। जब कभी कही लंबा जाना होगा तो किसी को बुला लेंगे। यंू ही चार दिन बीत गए, इधर नेगी जी ने रावत से बोलचाल बंद कर दी थी।

वह तो दिखाना चाहते थे रावत जी को देखो हम भी किसी से कम नहीं। पांचवे दिन कार की डिलीवरी कंपनी ने कर दी। नेगी जी को कार चलानी आती नहीं थी और कोई उनको कार चलाने वाला मिला नहीं, लिहाजा कंपनी का ड्ाइवर नई कार नेगी के घर पर छोड़ गया।

अगले दिन नेगी जी बड़े मस्ताने ढंग से सुबह सुबह घर से बाहर निकले, तो रावत जी के घर के बाहर से गुजरते हुए आवाज दी, अरे रावत जी आइए जरा मॉर्निंग वॉक पर चलते है। जबकि नेगी जी को अच्छी तरह मालूम था कि रावत जी कभी भी मॉर्निंग वॉक पर नहीं जाते। इधर मामला तो इस बहाने शान दिखाने का था। दो चार दिन ही गुजरे होंगे कि एक दिन नेगी जी को रावत जी की कार नहीं दिखाई दी।

ऑफिस से लौटते हुए नेगी जी को रावत जी को रास्ते में मिल गए। अब नेगी जी से रहा नहीं गया, वह पूछ ही बैठे, भाई साहब क्या बात आपकी कार आजकल दिखाई नहीं दे रही है। रावत जी बोले, अरे नेगी जी मेरी कार, मैंने कब कार खरीदी थी, वह तो मेरे एक दोस्त की थी, उसे कुछ दिनों के लिए बाहर जाना था और उसके घर पर कार खड़ी करने की जगह नहीं थी, सो वह अपनी हमारे यहां खड़ी करके गया था। परसों जब वह लौटकर आया, तो अपनी कार ले गया। अब बेचारे नेगी जी क्या कहते, खामख्वाह शान दिखाने के चक्कर में बैंक के लाखों रुपए के कर्ज के नीचे दब गए।


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