झूठी परम्पराएँ

झूठी परम्पराएँ

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आज करवा चौथ। है मैं शांत हूँ क्योंकि कुछ साल पहले बहू के समय मैंने एक गलती की थी। वह दिन में आज भी नहीं भूलती। उस बात को 5 साल हो गए, मगर सोच कर डर लगता है किसी पर अपने नियम व परंपराओं को थोपने से, हालांकि मैंने कभी गलत भाव से ना कहा, फिर भी जाने-अनजाने बहुत बड़ी गलती हो गई।

जब मेरी बहू सिम्मी इस घर में आई तो हम सब बहुत खुश थे। वह पढ़ी-लिखी बहुत सुंदर है, मगर छोटे बच्चे की तरह चुलबुली खाने की शौकीन।

शादी के कुछ महीनों बाद उसका पहला करवा चौथ आया। मेरी बहू सबसे सुंदर लग रही थी। पूरी सोसाइटी कह रही थी। हर कोई सिम्मी को ही देख रहा था। सच में किसी हीरोइन से कम नहीं थी मेरी बहू। मुझे अपने ऊपर गर्व होने लगा कि मैंने इतनी सुंदर बहू पसंद की है।

हर कोई कई दिनों तक उसकी तारीफ करता रहा। वह देखने में भी शांत, सरल स्वभाव की है। इस करवा चौथ के बाद मुझे अपनी बहू से ज्यादा प्यार हो गया या यूँ कहें कि उसकी हर चीज में मैं अपना हक जमाने लगी और जब दूसरा करवा चौथ आया तो मेरी बहू प्रेगनेट थी।

एक लंबे अरसे बाद घर में खुशियां आने वाली थी। खुशियों की शुरुआत सिम्मी के आने से हो चुकी थी। दूसरी बार मेरी दादी बनने की खुशखबरी से मैं इस बात को पचा नहीं पा रही थी। मैं इंतजार कर रही थी किसी मौके का, जब मैं बात सबको बताऊँ और दूसरा करवा चौथ था।

उसकी तबीयत ठीक नहीं थी। उसने मुझे कहा मम्मी- मुझे अच्छा नहीं लग रहा है, मैं व्रत नहीं रखूँ क्या ?

मगर मैंने उसे डाँट कर कहा- व्रत तो रखना पड़ता है, वह कैसे नहीं रखोगी। कुछ दिन पहले ही सोनोग्राफी रिपोर्ट आई थी सब तो नॉर्मल है। तुम मेरे साथ शाम को सोसायटी के प्रोग्राम में चलना, सब अपनी बहू को लेकर आते हैं।

आजकल पूजा-पाठ में भी दिखावा हावी हो गया है। सब पूजा के साथ-साथ एक-दूसरे के कपड़े, गहने, मेहंदी देखते हैं। इसका असर मुझ पर भी था। मैंने भी अपनी बहू को महंगी से महंगी ड्रेस लाकर दी। वह बार-बार मुझे कहती रही- प्लीज मम्मी मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। मैं नहीं चलूँगी।

मैं उसे कह रही थी तुम आजकल की लड़कियाँ नाजुक कलियाँ हो। कुछ हुआ नहीं कि नखरे चालू।

ना चाह कर भी वह तैयार हो गई और मेरे साथ प्रोग्राम में चली गई। उसने व्रत रखा था। उसके चेहरे में कमजोरी नजर आ रही थी। मुझे लगा खाने की शौकीन है, खाना नहीं खाया इसलिए मुँह छोटा हो गया है।

वहाँ नाचना-गाना, भजन-कीर्तन होता रहेगा। ऐसे माहौल में वह खुश हो जाएगी। मैं उसे लेकर चले गई। जाने से पहले मैंने बेटे को फोन किया कि तुम आज जल्दी आ जाना। एक तोह्फा भी ले आना मगर उसने फोन ही नहीं उठाया और मैं अपने काम में बिजी हो गई।

हम दोनों सोसायटी के प्रोग्राम में बिजी हो गए जहाँ ना केवल भजन, फिल्मी गानों में एक से बढ़कर एक डांस महिलाएँ कर रही थी देखने में बड़ा मजा आया। कुछ देर तक सिमी ने भी मजा लिया। वह एक जगह बैठी रही। वह चुलबुलापन आज उसमें नहीं था। उसकी पीठ में दर्द होने लगा। उसने मुझे कहा, मगर मैं लोगों से मिलने व सहेलियों को मेहमान की कुछ खुशखबरी लोगों को देने में व्यस्त थी।

आखिर सिमी मुझे बुलाने आई और कहने लगी- प्लीज चलो, मुझे अच्छा नहीं लग रहा है।

उसकी हालत देखकर मैं डर गई। मैं उसे तुरंत लेकर घर चली गई। उसका पहला बच्चा था शायद इसलिए छोटी-छोटी बातों में डर जाती है। मुझे ऐसा लगा लेकिन कुछ देर बाद उसे दर्द होने लगा उसका कारण शायद व्रत था।

छोटा बच्चा उसके गर्भ में और मैं उसे व्रत रखने को कहा। उसने भोजन नहीं खाया। उसका उसके शरीर में भी तो असर हुआ होगा। कुछ देर बाद बेटा आ गया बहुत खुश था। कुछ गिफ्ट भी लाया था। मेरे लिए भी और बहू के लिए भी मगर अंदर गया तो सिम्मी की हालत देखकर डर गया। कहने लगा- क्यों व्रत रखने को कहा। भगवान ने जितनी उम्र दी है उतनी ही होगी। व्रत रखने से उम्र नहीं बढ़ती। न खाने से बच्चे को जरूर फर्क पड़ सकता है। माँ, डॉक्टर को दिखाएँ।

उसके ऐसा कहते ही मेरी धड़कन बढ़ गई। मेरे मन में अजीब-अजीब से ख्याल आने लगे। बाहर लोग बुला रहे थे। डोरबेल बार-बार कोई बजा रहा था मगर मेरे दिमाग सुन्न हो चुका था। बार-बार बेल बज रही थी मैं अंदर परेशान हैरान थी।

हम सिमी को हॉस्पिटल लेकर गए। कुछ चेकअप के बाद डॉक्टर ने उसे एडमिट किया मगर उसका बी.पी. बहुत कम हो गया था जिसकी वजह से कई परेशानियां हुई और बच्चे को नहीं बचा सके। वह मासूम बच्ची मुझे निहार रही थी। बिन कहे उसने मुझे सब कुछ कह दिया। उसका शब्दों के द्वारा कुछ ना कहना मुझे बहुत चुभता रहा। कई दिनों तक। उसने मुझे माफ तो कर दिया मगर मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाई।

आज हमारे घर में एक प्यारी सी छोटी सी परी है ।हजारों खुशियाँ हैं मगर वह पल याद करके मैं सहम जाती हूँ। और मैं कभी किसी पर अपने नियम परंपराओं को नहीं थोपती। हर व्यक्ति का अपना शरीर और मान्यताएँ है। विचार हैं यह नियम, मान्यताएँ ,परंपरा इंसानों द्वारा बनाई गई है। जिसका उद्देश्य लोगों को आपस में मिलाना-खुशियों को बढ़ाना व जीवन में नयापन लाना है।

सच कहूँ तो व्रत रखने से उमर लंबी नहीं होती क्योंकि मैंने भी बड़े भक्ति भाव से सच्चे दिल से अपने पति के लिए व्रत कई सालों तक रखा मगर वह मुझे अकेला छोड़ कर जल़्दी चले गए।

एक सर्वे बताता है कि महिलाओं की उम्र पुरुषों की तुलना में ज्यादा है जबकि महिलाएँ पति के लिए व्रत रखती है। मगर महिलाओं के लिए पति कोई व्रत नहीं रखते फिर भी ऐसा क्यों ? किसी भी परिवार के सदस्य की लंबी उम्र या यूँ कहें अच्छा जीवन, ध्यान रखने प्यार व अपनेपन से बढ़ता है। ना की व्रत जबरदस्ती रखकर किसी को तकलीफ देने से।

अब मैं इन सब बातों से उठ चुकी हूँ। ये प्रथाएँ ऊपरी मन की खुशियाँ होती है। लोगों का मेल मिलाप का एक बहाना। जीवन में एक नयापन का तरीका।

मैं अपने जीवन में कभी भी किसी पर अपने नियम और मान्यताएँ बंधन नहीं रखती। कई बार हम लोगों से ज्यादा रिश्तो के पद को अहमियत देते हैं जो वाकई बहुत गलत है। आज भी करवा चौथ है और मैंने बहू को कुछ नहीं कहा और ना ही उसने व्रत रखा। आज हम सोसाइटी के प्रोग्राम में जा रहे हैं। कुछ लोग बदले और कुछ धीरे-धीरे बदल जाएंगे मगर आज हम सोच से कुछ ऊपर उठ चुके हैं मन से। डोरबेल फिर बज रही है लोग हमें बुला रहे हैं। चलिए..........


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