झील सी गहरी आँखों वाली लड़की day-16
झील सी गहरी आँखों वाली लड़की day-16
उस बड़ी -बड़ी झील सी गहरी आँखों वाली लड़की को मैंने उस दिन पहली बार देखा था, जब पुलिस उसे मेरे पास यानी कि सरकारी मानसिक विक्षिप्तों के आवास गृह की अधीक्षिका के पास लेकर आयी थी। उसकी बड़ी -बड़ी आँखें बहुत कुछ कहना चाह रही थी । पुलिस को वह रेलवे स्टेशन के पास घूमते हुए मिली थी । पुलिस को किसी ने एक मानसिक विक्षिप्त महिला के रेलवे स्टेशन पर लावारिसों की तरह घूमते हुए पाए जाने की सूचना दी थी। वहाँ मौजूद लोगों से पूछताछ करने पर पुलिस को जानकारी मिली थी कि वह "चोखेर बाली '' वाले राज्य की राजधानी कोलकाता से आने वाली ट्रैन से उतरी थी।
मानसिक रूप से कमजोर लोग वैसे ही हमारे सामाजिक ताने -बाने में गूँठ नहीं पाते और अगर वे एक निर्धन परिवार में जनम लेते हैं तो उनकी स्थिति और भी दुःखदायी हो जाती है। परिवार वाले या तो उन्हें जंजीरों से बांधकर रखते हैं या ऐसे ही किसी ट्रैन या बस में बिठाकर उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते हैं। अगर कोई लड़की मानसिक रूप से विक्षिप्त है तो वह और भी दयनीय हो जाती है। मानसिक विक्षिप्त निर्धन लड़की अनेक प्रकार के शोषण का शिकार हो जाती है । हमारे अंदर का जानवर ऐसी पीड़ित लड़की को भी नहीं बख्शता।
अपनी लड़की की तकलीफों को कम करने के लिए मेरे पड़ोसी अंकल -आंटी ने तो अपनी मानसिक रूप से विक्षिप्त लड़की का ऑपरेशन करके गर्भाशय ही निकलवा दिया था। जब मैंने आंटी से इसका कारण पूछा तो आंटी के जवाब ने मुझे अंदर तक हिला दिया।
आंटी ने कहा ,"बेटा, यह दिमाग से भले ही बच्ची है, लेकिन इसका शरीर तो परिपक्व है। तुम तो जानती ही हो, यहाँ कदम -कदम पर इंसान की शक्ल में औरत के शरीर को नोचने वाले भेड़िये घूमते हैं। भगवान न करे कभी मेरी मासूम बेटी किसी की हैवानियत का शिकार हो गयी तो कम से कम गर्भ तो नहीं ठहरेगा। यह खुद ही बच्ची है, किसी और बच्चे को क्या सम्हालेगी। हम पता नहीं कब तक ज़िंदा रहेंगे। "
ऐसा कहकर आंटी सुबक -सुबक कर रोने लग गयी थी। मैं अपने आपसे पूछ रही थी कि," क्या हम इंसान कहलाने लायक हैं ?"
पुलिस ने ट्रैन जिन -जिन स्टेशन पर रुकती थी, वहां लड़की के गुमशुदा होने और उसके घरवालों को ढूंढ़ने के लिए सूचना भेज दी थी। लेकिन जब तक उस झील से गहरी आँखों वाली लड़की के घरवाले नहीं मिलते, उसे सरकारी आवास गृह में ही रहना था। उस लड़की की आँखों मैं एक मासूमियत थी। मैं जब भी उससे मिलती, वह हमेशा मुझे मुस्कुराकर देखती थी। हम दोनों के बीच एक मुस्कराहट का रिश्ता बन गया था। इसलिए मैंने उसे मुस्कान कहना शुरू कर दिया था।
मुस्कान को आवास गृह में रहते -रहते 2 महीने हो गए थे। लेकिन अभी तक भी उसके घरवालों का पता नहीं चला था। उसकी झील सी गहरी आँखों में कभी -कभी उदासी भी तैरती रहती थी।
तब ही एक दिन मुस्कान की तबीयत खराब हो गयी। डॉक्टर को दिखाया गया, डॉक्टर ने जो बताया उसको सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गयी। मुस्कान गर्भवती थी, अब प्रश्न यह था कि मुस्कान की इस हालत का ज़िम्मेदार कौन था। मैं स्वयं सरकारी आवास गृह में ही रहती थी। वहां किसी पुरुष का आना -जाना नहीं था, पूरे गृह में CCTV कैमरा लगे हुए थे। काफी छान बीन और पूछताछ करने पर हम इस नतीजे पर पहुंचे कि किसी हैवान ने यह कार्य ट्रैन में ही किया था। उसने मुस्कान की मासूमियत का फायदा उठा लिया था।
हम अपने लड़कों की परवरिश में कहाँ कमी छोड़ रहे हैं ? लड़कियों को तो बार -बार मर्यादा में रहने ,सुरक्षा का पाठ पढ़ाते रहते हैं। अगर लड़कों को 'न 'और 'आपसी सहमति 'का अर्थ ही समझा दें तो शायद हालत में थोड़े बदलाव हों। उन्हें समझाना होगा लड़कियां कोई वस्तु नहीं है ,बल्कि इंसान हैं। इंसान को जितना सम्मान मिलना चाहिए, उसकी हकदार हैं। हम किस दौर में पहुंच गए हैं ? एक मानसिक रूप से अपंग लड़की तक को अपनी हवस का शिकार बना दिया। क्या हम इंसान कहलाने के लायक भी हैं ? अब मुझे अपनी पड़ोसी ऑन्टी की फ़िक्र समझ आ रही थी ।
मुझे मुस्कान की हालत पर कैसे रियेक्ट करूँ, समझ ही नहीं आ रहा था । मुस्कान को तो कुछ पता ही नहीं था। उसके साथ किसी ने इतनी घटिया हरकत की है ।न ही मुस्कान को यह पता था कि उसके अंदर एक और ज़िन्दगी मौजूद है। यह ज़िन्दगी किसी की हैवानियत का परिणाम है ।मुस्कान की मानसिक स्थिति को देखते हुए, मैंने उसकी प्रेगनेंसी टर्मिनेट करवाने की अनुमति के लिए कोर्ट में एप्लीकेशन भी लगवाई। लेकिन अनुमति मिलने में थोड़ा ज्यादा समय लग गया, जब तक अनुमति मिली तब तक मुस्कान 5 माह की गर्भवती हो गयी थी। डॉक्टर ने एबॉर्शन करने से मुस्कान की जान भी जा सकती है, ऐसा कहकर एबॉर्शन करने से इनकार कर दिया।
मुस्कान ने हंसती -मुस्कुराती एक प्यारी सी गुड़िया को जनम दिया। मुस्कान के साथ -साथ अब उसकी बेटी से भी मेरा एक रिश्ता जुड़ गया था। मैंने बच्ची का नाम रौशनी रखा, मुझे उम्मीद थी कि यह मुस्कान की ज़िन्दगी में रोशनी लाएगी। मुस्कान और रौशनी दोनों आवास गृह में ही रह रहे थे। रोशनी एक साल की हो गयी थी। वक़्त कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता।
मेरा ज्यादातर समय रोशनी के साथ ही व्यतीत होता था। मुस्कान तो उसकी देखभाल कर नहीं पाती थी। रोशनी की यशोदा माँ तो मैं ही थी, मुस्कान तो देवकी माँ थी, जिसने रोशनी को जनम दिया था। मैं तो यह भी भूल चुकी थी कि मुस्कान ट्रैन में भटकते -भटकते यहाँ आ गयी थी, उसका घर और घरवाले तो कहीं दूसरे शहर में थे।
लेकिन मेरे भूलने से सच्चाई थोड़े न बदल जाती। आख़िरकार एक दिन मुस्कान के घरवाले मिल ही गए। मुस्कान एक अच्छे खाते -पीते परिवार की बेटी थी, मुस्कान के घरवाले उसे लेने के लिए आ गए, उन्हें जब पता चला कि मुस्कान की एक बेटी भी है तो उन्होंने कहा ,"हम मुस्कान को तो वापस ले जाएंगे। लेकिन इसकी बेटी को नहीं। न जाने किसका पाप है ? किसका गन्दा खून है ? हमारी अपने शहर में इज़्ज़त है, इसकी नाज़ायज़ औलाद के कारण हम अपनी इज़्ज़त तो मिट्टी में नहीं मिला सकते। "
मुस्कान को तो अभी तक भी माँ होने का अर्थ नहीं पता था, उसके लिए तो रोशनी एक खिलौना ही थी। लेकिन मेरे लिए रोशनी मेरी जान से भी बढ़कर थी। मुस्कान के घरवालों को मैंने सिर्फ इतना कहा ,"रोशनी आपका भी खून है। बच्चे नाज़ायज़ नहीं होते, बच्चे सिर्फ बच्चे होते हैं। किसी घटिया इंसान की गलती की सजा मासूम रौशनी क्यों भुगते। अगर आप इसे ले जाना नहीं चाहते, तो मैं इसे गोद ले लेती हूँ। "
मुझे आज भी नहीं पता मेरे अंदर उस दिन इतनी हिम्मत कहाँ से आ गयी थी, मैं अविवाहित थी और जानती थी मेरे घरवाले इस निर्णय में कभी मेरा साथ नहीं देंगे। उन्होंने दिया भी नहीं, मुस्कान के घरवाले तुरंत मान गए थे और उन्होंने रोशनी को हमेशा के लिए मेरी गोदी में डाल दिया था ।
वह झील सी आँखें मेरी ज़िन्दगी हमेशा के लिए बदलकर आज मुझसे दूर अपना एक हिस्सा हमेशा के लिए मुझे सौंपकर चली गयी थी। उन आँखों को अब मैं कभी देख नहीं पाऊंगी क्यूंकि मुस्कान के घरवालों की यह शर्त भी थी कि मैं और रोशनी कभी मुस्कान से मिलने की कोशिश नहीं करेंगे।
