झगड़ालू बिल्लियाँ
झगड़ालू बिल्लियाँ
भूरी बिल्ली की तकदीर अच्छी थी, जो उस समय घर की मालकिन दरवाजा खुला छोड़कर कहीं गयी हुई थी। उसे ताजे मक्खन की खुशबू मिल रही थी, और उसके मुख में पानी भर आया था।
वह सूंघते-सूंघते उस कमरे में पहुंची, जहाँ मक्खन मौजूद था। कमरा खाली न था, वहाँ दो बिल्लियाँ तथा चार बिलौटे पहले से ही मौजूद थे तथा वे सभी मक्खन खाने की जुगत में लगे थे, जो छींके पर लटकी हुई मटकी में थी। छींक काफी ऊंचाई पर था और उसमें से ताजे मक्खन की खुशबू आ रही थी ।।
एक बिल्ली ऊपर की ओर जितनी छलांग लगा सकती थी। छींका उससे भी डेढ़ गुना अधिक ऊँचाई पर था। कोई भी बिल्ली उस तक भी नहीं पहुंच रही थी। भूरी बिल्ली को वहाँ आयी देख सभी बिल्लियाँ गुर्राने लगीं ! लो एक और चली आई हिस्सा बँटाने। छ: बिल्लियाँ कम थी क्या ?
बिल्लियों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया। यह देख कर भूरी बिल्ली ठठाकर हँस पड़ी।
एक बिलौटे ने उसे घूरकर देखा और सवाल किया – अरी भूरी ! तू क्यों हँसी ? तुरंत इसका सबब बता ! वरना ! हम तुम्हारा पेट फाड़ देंगे !
भूरी बोली – मटकी तक तो पहुंच नहीं रहे हो बड़े मियाँ और मेरा पेट फाड़ोगे ? वाह रे हिम्मत !!
हमारा मक्खन खाओगी तो क्या हम चुपचाप देखती रहेंगी – सबसे मोटी बिल्ली गुर्राई ।
तुम्हारा मक्खन ! ! कहाँ है तुम्हारा मक्खन ! ओहो ! उस छींके में है ! तुमने ही तो रखा है ? है ना ?—भूरी बिल्ली ने कहा।
सभी बिल्लियों ने इस अपमान का विरोध जोर-जोर से म्याऊँ-म्याऊँ करके किया।
गुर्राओ मत ! भूरी बिल्ली बोली – मुझे भी गुर्राना आता है। बल्कि ! मैं तुम सबसे बढ़िया गुर्रा सकती हूँ ! ऐसे तो पूरी जिंदगी निकल जायेगी, परन्तु मक्खन हाथ नहीं आने वाला।
तो क्या करें – अब तक चुप रहा काले बिलौटे ने सवाल किया।
हाँ ! यदि हम छींके तक पहुंच गईं तो हमारा वादा है कि तुम्हें भी थोड़ी सी मक्खन खाने को दिया जायेगा -घमंडी दिखने वाली बिल्ली बोली।
मक्खन खानी है तो झगड़ा छोड़कर सभी बिल्लियाँ एक हो जाओ !—भूरी बिल्ली उन्हें समझाया।
इससे क्या होगा - किसी ने पूछा ?
मक्खन मिलेगा – भूरी बिल्ली किसी अनुभवी टीचर की तरह उन्हें समझाने लगी – तुम सब अलग-अलग कूदकर अपनी ताकत बरबाद कर रही हो ! मेरी सलाह है कि तुम लोग अपनी शक्ति एक साथ लगाओ ! इससे छींके तक पहुंचने में मदद मिलेगी।
इतना सुनते ही सारे बिल्ले-बिल्लियाँ छींके के नीचे इकट्ठी हो गयीं। एक ने जोर से गिना ‘एक दो तीन’ !
और तीन की गिनती पर सब बिल्लियाँ ऊपर को उछलीं। नतीजा ! सब एक दूसरे के ऊपर गड्डम गड्ड होते हुई गिर पड़ीं।
भूरी बिल्ली की हँसी छूट गई। बोली – अरी बिल्लियों ! मेरे कहने का मतलब यह नहीं था।
तो क्या था – खामख्वाह गिरा दिया, मेरा सारा मेकअप खराब हो गया – मोटी बिल्ली पूँछ से धूल झाड़ती हुई गुस्सा होकर बोली।
जुगत लगाओ – भूरी बोली – मेरा कहने का मतलब था कि जुगत लगाओ ताकि मटकी तक पहुंच सको !
कैसे जुगत लगायें ?
बताती हूँ ! बिल्लियों ध्यान से सुनो - ! तुमने कृष्ण जन्माष्टमी पर दही हाण्डी का खेल देखा है ना ?
भूरी बिल्ली ने सवाल के बदले सवाल किया।
हाँ ! हमने खूब देखा है – काली बिल्ली बोली।
तब तुमने देखा ही होगा कि दही-हाण्डी कितनी ऊँचाई पर लटकी होती है, जिसे गोविंदाओं की टोलियाँ लूटने की कोशिश करती है—
भूरी की बात अभी पूरी नहीं हुई थी कि काला बिलौटा बोल पड़ा – हाँ ! हाँ !! हमने देखा है । वे सब एक के ऊपर एक खड़े होते हैं और दही-हाण्डी तक पहुंचने की कोशिश करते हैं ।
बिल्कुल सही – भूरी बिल्ली बोली – उसी तरह तुम सब एक के ऊपर एक खड़ी हो जाओ और जो सबसे ज्यादा छलांग लगा सके वह सबसे ऊपर वाली बिल्ली की पीठ पर चढ़कर कूदे। ऐसा करने पर छींके तक पहुंचा जा सकता है। वरना सब मिलकर भजन करो ‘ ‘’छींका टूट जा—छींका टूट जा !! मक्खन नीचे आ ! मक्खन नीचे आ ! छींका टूट जा – मक्खन नीचे आ।’
मजाक मत करो ! हम भजन नहीं, उपाय करेंगे। बड़ी-बड़ी आँखों वाले बिल्ले ने कहा – आओ बिल्लियों सब एक के ऊपर एक खड़े हो जाओ ! मैं सबसे ऊपर रहूँगा ।
तुम नहीं, मैं ऊपर रहूँगा- काला बिलौटा बोला- तुम्हारा कोई भरोसा नहीं है । सब अकेले ही हड़प गये तो ?
और तुम्हें ईमानदारी की कोई ‘सनद’ मिली हुई है ! है ना ? -- घमंडी बिल्ली आगे आकर बोली- नहीं, सबसे ऊपर मैं रहूंगी ।
फिर क्या था। सभी ऊपर रहने के लिए म्याऊँ-म्याऊँ कर लड़ने लगी। उन्हें भूरी बिल्ली ने रोका और कहा – मैंने अभी बताया है ना कि जो सबसे ज्यादा कूदे, वह ऊपर रहे ! मक्खन खानी है, तो एकता दिखाओ ! वरना अपने-अपने घर जाओ !
ताकि तुम अकेले सारा मक्खन खा सको ! है ना ? तीसरे बिलौटे ने कहा।
आखिर सभी बिल्लियाँ बारी-बारी से कूदीं । भूरी बिल्ली भी। वह सबसे ज्यादा उछली थी।
कायदे के मुताबिक उसे ही सब से ऊपर रहना चाहिए था किंतु वे बिल्लियाँ थी, एक दूसरे पर भरोसा कैसे करतीं। उनमें पहले बहस छिड़ी। फिर वे सब झगड़ने लगी और एक दूसरे को नोचने-खसोटने लगीं। म्याऊँ-म्याऊँ का शोर भी बहुत बढ़ गया ।
वे अपनी महत्वाकांक्षा को छिपा भी नहीं रही थी और लड़ते समय कह रही थीं- मक्खन ‘मैं खाऊँ- मैं खाऊँ, मैं ही खाऊँ।‘
शोर सुनकर मकान मालिक कमरे में आया। उसने एक डंडा लिया और पहले झगड़ रही बिल्लियों को भगाया। इसके बाद उसने मटका नीचे उतारा और उसे लेकर चलते बना।
बेचारी बिल्लियाँ म्याऊँ-म्याऊँ करती रह गयीं । इसके सिवाय वे और कर ही क्या सकती थीं ।
