जेठ दुपहरी
जेठ दुपहरी
गर्मी तो सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है। इस बार जला कर ही मानेगी ऐसा लग रहा है। वैसे नया कुछ भी नही इस मे, हर साल ऐसा ही लगता कि इस बार ज्यादा है।
प्रिया भी दोपहर में लेटी हुई एफ. एम. सुन रही है।
गाना चल रहा... जेठ की दुपहरी में पाँव जलें हैं राजा पाव जलें है.........
उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई, शर्मीली सी मुस्कान जैसे उस जमाने मे हुआ करती थी।
रूमानी घोड़े पंद्रह-सोलह साल पीछे की और भागने लगे।
कब कैसे, क्या-क्या हुआ था सोचकर उसकी आंखों की चमक बढ़ती जा रही थी।
वह दोनो पहली बार बिछुड़ने वाले थे, मतलब ये कि उसको पढ़ाई के लिए बाहर जाना था। जैसे ही उनका जाना निश्चित हुआ प्रिया बार-बार अपनी सहेली के घर जाने लगी, आखिर सहेली उनकी बहन जो थी। उनका घर भी पास में ही था तो कोई न कोई बहाना निकाल ही लेती थी उनके घर जाने का। दोनो को कभी-कभी एकांत के कुछ पल भी मिल जाते, उन पलों में आंखे न जाने कितने भावों का आदान प्रदान करतीं थी। उस रोज आज की तरह गर्मी भरा दिन था, वह सहेली के घर मे आई तो किसी को घर में न देख वापस जाने को मुड़ी ही थी कि समीर ने पीछे से पकड़ के अचरज में डाल दिया।
वह खुद को छुड़ाने की कोशिश में दबी आवाज में गुस्साई, "छोड़ो न कोई देख लेगा।"
"आज तो कोई है ही नही, कोई देखेगा कैसे?" समीर ने शरारत भारे लहजे में बोला।
"ओह ! कोई नही है तो मैं जा रही हूँ........."
"बड़ी आई जाने वाली! जैसे कोई से ही मिलनेआती हो?"
यह सुन के प्रिया शर्मा गई उसे समझ ही नही आ रहा था क्या बोले, पहली बार था जब दोनी इतना करीब थे।
"आज कितनी गर्मी है ना?" जब कुछ नही सूझा तो यही कह दिया प्रिया ने।
"गर्मी तो होगी ही आखिर जेठ की दुपहरी है, पर मुझे नही लग रही बिल्कुल भी।" समीर धीमे से बोले।
"मैं भी सुनू क्यों नही लग रही आपको?" शर्म को छुपाने का भरसक प्रयास किया प्रिया ने।
"जेठ की दुपहरी में मुझे सावन भाए, मेरा सावन जो मेरे पास है ,समझी बुद्धू।" एक चपत लगते हुए समीर बोला।
प्रिया छुड़ा के घर भाग गई। उस दिन के बाद से जब भी मौका मिलता, समीर सब के सामने प्रिया को देख के बोल ही देते।
" मुझे सावन भाये, आए लव सावन।"
प्रिया नजरे झुका लेती।
फिर तो कविता ही बना दी थी समीर ने, उसको देखते ही गा देता-
जेठ की दुपहरी अगन लगाए,
साजन मोहे सावन भाए।
यह कविता उस दिन की याद दिला देती और साजन का शब्द प्रिया को सकुचाने पर विवश कर देता।
फिर तो ऐसी आदत पड़ गई; प्रिया भी यही गुनगुनाती रहती उसको महसूस करने के लिए।
आज गाना सुन के प्रिया को वही सब याद आ गया।
जेठ की दुपहरी अगन लगाए,
साजन मोहे सावन भाये।
गुनगुनाते हुये आज भी आंखों मे प्रेम और लाज भर गई।
वह उठ के अपने श्रीमान अपने प्रेम समीर को फोन करने लगी लेकिन उन को पूरा माजरा रात को समझाएगी अभी फोन पर नही।