जब मैं खुद से मिला
जब मैं खुद से मिला


लॉकडाउन क्वेरनटिन ऐ दो शब्द पता पहले से थे पर करुणा न होता तो अनुभब नहीं होता की असल मैं क्या होता हे एकेला रहना, भारत एक जाती बाद और भिन्न भासा सम्प्रदाय वाला देश है, पर इतना भिन्नो होने का बाबजूद प्यार काम नहीं है हम भारतीय समाजबादी बहुत है, गले मिलना किसीका घर जाना हमारा देश मैं आम सी बात है। तो इतना दिन करीब ६ मेहना किसी से मिला बिना रहना अकल्पनीय था पर जब सा श्री नरेंद्र मोदी जी ने जनता कर्फ्यू का एलान किया है इस को समर्थन किया है। मेरा नाम सागर मंडल है मैं असम का रहने वाला हु, असम मैं तू करुणा देरी से आया पर इसे फैलने मैं बहुत काम समय लगा, मैं पहले से आर्टिकल लिखता हु पर इस लोकडाउन मैं मुझे बहुत टाइम मिल गया, हम मैं से कुछ लोग ये सोचते हे की एकेला रहना सा इंसान डिप्रेस्ड हो जाता है पर असल बात ये है एकेला रहना से आप आपने आपको जानते हो, आप की छुपी हुई खूबियां बहार आती है।
यही वो वक़्त था जिसमे मैं खुद से मिला, हमेसा दोस्त और कॉलेज को टाइम देते देते लोग खुद को भूल जाता है। किया करना चाहते हे है और उनकी खूबी को भूल जाते है, वक़्त कुछ ऐसे आये थे मेरे ज़िन्दगी मैं जब मैं इंटरन
ेट को इतना टाइम दिया की मेरा फॅमिली से दूर जाना लगा यही लौक्डॉन था जिसमे मेने अपने परिवार का सात वक़्त बिताया। ये फितरत है लोगो की जब कोई जब कुछ करने का हो तब उससे बचना चाहते हे और कुछ नाह हो तो उसकी भी निंदा करते है। असम मैं सिर्फ करुणा ही नहीं था जो लोग को मार रहा था बारिश और ब्रह्मपुत्र नदी का पानी ने करुणा से जितना मौत नहीं हुई उससे दुगना लोगो को मारा। हज़ारो घर पानी मैं बेह गए लोग के घर नहीं थे खाना नहीं था पीने का पानी नहीं था असम सर्कार दोनों प्रॉब्लम से घिर चुकी थी करुणा की प्रॉब्लम ने बार की समस्या को लोगो के सामने लाने ही नहीं दिया।
इस लोकडाउन मैं मैंने आपने आप को जाना मेरा कर्त्यब्या सिर्फ मेरे परिबार तक सिमित नहीं है मैं उस देश का नागरिक हु जो स्वतंत्र ता मैं एक होकर लारा था मेरा कर्त्यब्या सिर्फ भारत का राष्ट्र्य ध्बज या राष्ट्रीय गान का सम्मान करने तक सिमित नहीं है मेरा देश के उन मजदुर का भी सम्मान करना है जो इस देश की ऊंची इमारतों का निब बनता है। मैं युबा हु और मुझसे भारत है हम सबसे भारत है इस लोकडाउन सिर्फ अपना नहीं सब के बनिए तभी देश बनेगा श्रेष्ट भारत।